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बाल विज्ञानियों ने चिता की राख से बनाई जैविक खाद, नदियों में प्रदूषण भी होगा कम

स्कूल की अटल टिंकरिंग लैब में मोक्षा मशीन का निर्माण किया गया है। इस मशीन के जरिये चिता की राख से खाद बनाई जा रही है। इस खाद को भी बाल विज्ञानियों ने मोक्षा नाम दिया है। एक चिता की राख से 10 से 12 किलोग्राम खाद बन जाती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 04 Jun 2021 08:16 AM (IST)Updated: Fri, 04 Jun 2021 08:16 AM (IST)
मोक्षा मशीन में चिता की राख से बनी खाद दिखाते बाल विज्ञानी। जागरण

राधाकिशन शर्मा, बिलासपुर। आजकल जैविक खेती पर काफी चर्चा हो रही है। प्रगतिशील किसान रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का प्रयोग कर फसलें उगा रहे हैं। अब छत्तीसगढ़ के एक स्कूल के विद्यार्थियों ने जैविक खेती को नया स्वरूप देने की दिशा में कदम बढ़ाया है। बिलासपुर जिले के गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल के बाल विज्ञानियों ने चिता की राख से जैविक खाद बनाने में सफलता हासिल की है।

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स्कूल की अटल टिंकरिंग लैब (एटीएल) में मोक्षा मशीन का निर्माण किया गया है। इस मशीन के जरिये चिता की राख से खाद बनाई जा रही है। इस खाद को भी बाल विज्ञानियों ने मोक्षा नाम दिया है। एक चिता की राख से 10 से 12 किलोग्राम खाद बन जाती है।

पौधों के लिए मौजूद 22 प्राकृतिक तत्व: मोक्षा मशीन में फिटकरी युक्त पानी के जरिए राख को परिष्कृत किया जाता है। इसे सुखाने के बाद आधा और एक किलोग्राम की र्पैंकग की जा रही है। इस खाद में पौधों के पोषण के लिए 22 प्रकार के प्राकृतिक रासायनिक तत्व मौजूद हैं। खाद बनाने के लिए स्कूल की लैब को चिता की राख नगर निगम की ओर से उपलब्ध कराई जा रही है।

दुबई में मिला रोबोटिक्स पुरस्कार: एटीएल के प्रभारी डा. धनंजय ने बताया कि हम अभी सिर्फ उद्यानिकी विभाग को ही खाद उपलब्ध करा रहे हैं। बाल विज्ञानियों द्वारा बनाई गई मोक्षा मशीन को वर्ष 2019 में दुबई में आयोजित अंतरराष्ट्रीय रोबोटिक्स चैंपियनशिप में पहला स्थान प्राप्त हुआ था। बाल विज्ञानियों ने खाद की उपयोगिता जांचने के लिए एक प्रयोग किया। मधुबन मुक्तिधाम के पास अरपा नदी के किनारे दो कतारों में फलदार पौधों का रोपण किया गया। एक कतार के पौधों में चिता की राख से बनी मोक्षा खाद का उपयोग किया गया और दूसरी कतार के पौधों में रासायनिक खाद डाली गई। मोक्षा खाद वाले पौधों के विकास की गति रासायनिक खाद वाले पौधों की अपेक्षा दोगुनी थी।

जैविक बनाम रासायनिक खाद: अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि रासायनिक खाद के ज्यादा उपयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट होती है। रासायनिक खाद मिट्टी में मौजूद जीवाणुओं और सूक्ष्मजीवियों के लिए घातक साबित होती है। जैविक खाद के प्रयोग से जमीन में पोषक तत्वों का विकास होता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। इसके अलावा रासायनिक खाद में मौजूद तत्व खाद्यान्नों के जरिये मानव शरीर में पहुंचकर धीरे धीरे कई प्रकार के दुष्प्रभाव उत्पन्न करते हैं। रासायनिक खाद भूगर्भ जल को भी प्रदूषित करती है। वहीं, चिता की राख से बनी खाद के प्रयोग से उगाए गए खाद्यान्न मानव शरीर के लिए सुरक्षित व पोषक होंगे। चिता की राख में पाए जाने वाले तत्वों की जांच नीति आयोग ने दिल्ली स्थित केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के माध्यम से कराई है। एटीएल के प्रभारी डा. धनंजय पांडेय ने बताया कि अमेरिकी विज्ञानी जेल ओनिल ने चिता की राख में मिलने वाले तत्वों पर शोध किया है। पुष्टि हुई है कि चिता की राख में फास्फेट बड़ी मात्रा में पाया जाता है।

नदियों में प्रदूषण कम होगा: चिता की राख से बनी खाद नदियों को भी प्रदूषण से बचाएगी। अंतिम संस्कार के बाद चिता की राख स्वजन नदी या जलाशय में प्रवाहित कर देते हैं। यह राख नदी और जलाशय के जल को प्रदूषित करती है। इसके अलावा राख धीरे-धीरे बाल विज्ञानियों ने चिता की राख से बनाई जैविक खाद नदी की तलहटी में जम जाती है और धरती के उन पोरों को बंद कर देती हैं, जहां से जल नीचे रिसता है। बाल विज्ञानियों के नवोन्मेष से प्रदूषण रोकने में मदद मिलेगी और धरती के पोर भी खुले रह सकेंगे।


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