आम आदमी बनकर चीफ जस्टिस ने पकड़ा बिल्डर का झूठ
बंबई हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लुर ने आम आदमी बनकर एक बिल्डर का झूठ पकड़ा है।
मुंबई, जेएनएन। दक्षिण मुंबई में जमीन का एक बड़ा हिस्सा फिर से आम जनता के लिए खुल जाएगा। यह फैसला तब लिया गया जब बॉम्बे हाई कोर्ट की मुख्य न्यायधीश मंजुला चेल्लुर 'आम नागरिक' बनकर औचक निरीक्षण के लिए पहुंच गईं। हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस ने पाया कि डिवेलपर पर गैरकानूनी रूप से जमीन पर कब्जा करने का आरोप सही है।
जस्टिस चेल्लुर जब एक आम नागरिक की तरह मुंबई के कफ परेड स्थित डीएसके दुर्गामाता लग्जूरिअस अपार्टमेंट के पार्क में जाने लगीं तो उन्हें वहां मौजूद एक सिक्यॉरिटी गार्ड ने रोक लिया। न्यायमूर्ति चेलूर ने इसके बाद परिसर को सार्वजनिक खुली जगह के रूप में बहाल करने और बीएमसी द्वारा परिसर की सुरक्षा को वापस लिए जाने के लिए कहा। मामले की अगली सुनवाई जून में होगी।
मामला प्रकाश पेथे मार्ग पर 16 हजार स्क्वेयर फीट प्लॉट का है। जहां डीएसके डिवेलपर्स को जमीन के 33 प्रतिशत हिस्से पर जिम्नाजियम बनाने की इजाजद दी गई। बाकी के बचे 67 प्रतिशत हिस्से (11 हजार स्क्वेयर फीट जमीन) को पब्लिक के इस्तेमाल के लिए छोड़ा गया था।
इस मामले में एक्टिविस्ट संजय कोकाटे ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि बिल्डर ने क्लब हाउस बनाने के लिए जमीन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है, उसमें से छोटी सी जमीन ही पब्लिक के लिए छोड़ी गई है। याचिका में कहा गया है कि बीएमसी के साथ किए गए अग्रीमेंट की कई शर्तें बिल्डर ने तोड़ी हैं।
याचिका दायर करने के 8 महीने बाद हाई कोर्ट ने मार्च में टेक्निकल एक्सपर्ट टीम को प्लॉट का निरीक्षण करने के लिए कहा। शुक्रवार को टीम ने मामले की रिपोर्ट सब्मिट की, जिसमें जस्टिस चेल्लुर ने खुद पाया कि जमीन के इस टुकड़े का इस्तेमाल पब्लिक को नहीं करने दिया जा रह है। हाई कोर्ट ने तुरंत जमीन को 'पब्लिक स्पेस' के तौर पर डिवेलप करने के लिए कहा।
जहां डीएसके डिवेलपर्स ने इस मामले में कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, वहीं इन्सपेक्शन कमिटी ने कहा कि मौके पर उन्हें आम जनता के लिए कोई जगह नजर नहीं आई। अपनी सात पेज की रिपोर्ट में कमिटी ने कहा, 'हमें वहां बच्चों के खेलने के लिए कोई इंतजाम नजर नहीं आए, यहां तक कि किसी के बैठने के लिए कोई बेंच तक नहीं थी।'
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौके पर ऐसा कोई बोर्ड भी नहीं लगा था, जिस पर लिखा हो कि यह जमीन आम जनता के इस्तेमाल के लिए है। जबकि एंट्री के वक्त ने यह कहकर जाने से रोक दिया कि यह जगह प्रतिबंधित है। रिपोर्ट में कहा गया, 'हमें गेट पर एंट्री करने से रोका गया,। जब हमने अपनी पहचान बताई उसके बाद ही हमें अंदर जाने दिया गया।'
याचिकाकर्ता कोकाटे के वकील 'युसुफ इकबाल ने कहा कि किसी पब्लिक प्रॉपर्टी के निजी इस्तेमाल का यह बेतहरीन उदाहरण है। जब चीफ जस्टिस अपनी पहचान छुपाकर प्रॉपर्टी पर जाने लगी तो उन्हें भी वहां जाने से रोक दिया गया। कोर्ट जून में मामले को लेकर अंतिम फैसला सुनाएगी।
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