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    छत्तीसगढ़: युवाओं ने तैयार की गोबर की पुट्टी, घर के अंदर सर्दी-गर्मी की छुट्टी, शोध को पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू

    By TaniskEdited By:
    Updated: Tue, 09 Mar 2021 10:54 AM (IST)

    छत्तीसगढ़ के दो युवाओं ने परंपरागत मिट्टी-गोबर से पुताई को प्लास्टर के रूप में बदलने के लिए नवाचार किया। शोध को पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गोबर पीली मिट्टी चूना और जिप्सम को मिलाकर एक खास तरह की पुट्टी तैयार की गई है।

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    दायें से शोधार्थी अभय दुबे और उनके सहयोगी चिकित्सक डा. पुरुषोत्तम। बगल में पुट्टी से दीवार पर किया गया प्लास्टर।

    संदीप तिवारी, रायपुर। किसी व्यक्ति के आसपास का वातावरण उसके भविष्य निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है। छत्तीसगढ़ योजना आयोग के मार्गदर्शन में कार्य कर रहे सहायक शोधार्थी (कोविड सेल) अभय दुबे और उनके सहयोगी चिकित्सक (बीडीएस) डा. पुरुषोत्तम सिंह भी गांव में घरों और दीवारों की गोबर-मिट्टी से होती लिपाई-पुताई को देखते हुए बड़े हुए और यही उनके लिए शोध और नवाचार का विषय भी बन गया। दोनों युवाओं ने गोबर, पीली मिट्टी, चूना और जिप्सम को मिलाकर एक खास तरह की पुट्टी तैयार की है, जो कमरे का तापमान पांच से दस डिग्री तक नियंत्रित करने में सक्षम है। खर्च भी रासायनिक पुट्टी के मुकाबले एक तिहाई ही आता है। राज्य खादी ग्रामोद्योग विभाग ने ‘वोकल फार लोकल’ के तहत इस उत्पाद को अपनाया है।

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    अमेरिकी विश्वविद्यालयों के शोध कार्यो से जुड़े रायपुर के पं. रविशंकर विश्वविद्यालय में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर डा. शम्स परवेज ने बताया कि गोबर और मिट्टी के मेल से बनने वाले लेप में ऐसे रासायनिक गुण विकसित हो जाते हैं, जो घरों को ठंडा रखने में सक्षम होते हैं। जिप्सम इंसुलेटर का काम करता है, जो अंदर के तापमान को बाहरी तापमान के प्रभाव से बचाता है। चूना रोशनी को परिवर्तित कर देता है। चारों तत्व मिलकर कमरे के तापमान को नियंत्रित रखते हैं। अभय ने बताया कि यूनिसेफ की सहायता से किए गए उनके शोध को पेटेंट के लिए राज्य खादी ग्रामोद्योग विभाग ने आवेदन भी कर दिया है।

    राज्य योजना आयोग के नवाचार कार्यक्रम में उनके शोध को शामिल करने के लिए प्रस्ताव दिया है। वहीं, योजना आयोग के सदस्य के. सुब्रमणियम का कहना है कि नवाचार कार्यक्रम के तहत मदद की जा सकती है। अभय के मुताबिक औसतन एक वर्गफीट में एक किलो प्लास्टर लगता है, जिसका खर्च 30 से 40 रुपये आता है, जबकि उनकी पुट्टी पर यह खर्च 10 रुपये प्रति वर्गफीट तक ही होता है। भारत में उष्णकटिबंधीय जलवायु होने से भवनों को ऊष्मारोधी पदार्थ से लीपकर ऊर्जा का बड़ा हिस्सा बचा सकते हैं।

    इनसे बनाई पुट्टी, आधे घंटे में उपयोग रहता है बेहतर

    पुट्टी के लिए गाय के गोबर का पाउडर, जिप्सम (हरसौंठ या सैलेनाइट) चूना पाउडर, बाइंडर (सभी को जोड़ने वाला पदार्थ, इसी के फार्मूले को पेटेंट कराया जा रहा है। ) और साइटिक अम्ल आदि मिलाकर पेस्ट तैयार किया जाता है। तैयार पुट्टी का उपयोग आधे घंटे के भीतर करना बेहतर होता है।

    इनमें कर सकते उपयोग, तराई की भी ज्यादा जरूरत नहीं

    इस पुट्टी का उपयोग लाल ईंट, फ्लाईऐश ईंट व पत्थर आदि की दीवारों पर किया जा सकता है। इसके बाद सीमेंट के प्लास्टर की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें पानी की ज्यादा तराई भी नहीं करनी पड़ती। दुर्गंधरहित होने के कारण किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती है।