7 साल की अथक मेहनत, विश्वविद्यालय ने बनाया सत्यबामा सेटेलाइट
20 सेटेलाइट के सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो के खाते में एक और कामयाबी जुड़ गई है। वहीं चेन्नई के एक विश्वविद्यालय ने कमाल कर दिया।
चेन्नई। बुधवार का दिन इसरो और भारत के लिए यादगार दिन बन गया। एक साथ 20 सेटेलाइट की सफल लॉन्चिंग के बाद भारत अब अमेरिका और रूस के इलीट क्लब में शामिल हो गया है। लेकिन इस कामयाबी के पीछे चेन्नई की सत्यभामा विश्वविद्यालय की भूमिका भी कम नहीं है। ग्रीन हाउस गैसों के अध्ययन के लिए विश्वविद्यालय के छात्रों ने करीब 1.5 करोड़ रुपए की लागत से 1.5 किलो का सत्यबामासेट सेटेलाइट को बनाया था। इस सेटेलाइट को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया गया है।
सेटेलाइट मिशन से जुडे़ हुए सदस्यों का कहना है कि सात साल की अथक परिश्रम के बाद इस कामयाबी को हासिल किया गया है। विश्वविद्यालय की छत पर सेटेलाइट के लिए बेस स्टेशन बनाया गया था। इस परियोजना से जुडे़ छात्र नेहाल का कहना है कि वो इलेक्ट्रॉनिक्स का छात्र है। लेकिन अब वो स्पेस टेक्नॉलजी में करियर बनाने की सोच रहा है।
PSLV-C34 से एक साथ 20 सेटेलाइट लॉन्च, जानें कुछ खास बातें
सत्यबामा सेटेलाइट पर काम कर रहे निदेशक डॉ वसंत का कहना है कि इस परियोजना से जुड़ी आधारभूत मामलों की जानकारी पहले से थी। लेकिन उसे मूर्तरूप में उतारना कठिन था। विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ बी शीला रानी का कहना है कि इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करना अपने आप में गौरव की बात है। अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत स्पेस टेक्नॉलजी में बेहतर काम कर रहा है। और इस क्षेत्र में जबरदस्त संभावनाएं हैं। सत्य़बामा सेटेलाइट की जीवन अवधि 6 महीने की है।
विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि इस सेटलाइट के जरिए प्रदूषण से संबंधित आंकड़ों को इकठ्ठा किया जाएगा। इन आंकड़ों को विश्वविद्यालय दूसरे कॉलेजों के साथ-साथ मौसम विभाग से साझा करेगा। कुलपति डॉ शीला रानी ने कहा कि ये विश्वविद्यालय के संस्थापक डा. जेपिय्यार का सपना था। हालांकि उनके निधन से वो इस सच होते हुए सपने को साकार होते नहीं देख सके।