भारतीयता से ओतप्रोत ऋतु पर्व चातुर्मास में संस्कृति के रंगों संग प्रकृति की छटाओं का भी समावेश
सनातन उत्सव भारतीय साहित्य और भक्ति से जुड़ा एक संपूर्ण भारतीय विकल्प है। भारतीयता से ओतप्रोत ऋतु पर्व चातुर्मास में संस्कृति के रंगों संग प्रकृति की छटाओं का भी समावेश है। यह पूरे चार महीने चलने वाला सबसे लंबा सनातन उत्सव है।
अमिय भूषण। इन दिनों चातुर्मास पर्व चर्चा में है। इसे एक परंपरा के रूप में प्रसिद्धि दिलाने में सर्वाधिक भूमिका साधु संतों की है। वर्षा के इस ऋतु में पूरे चार माह वे किसी स्थान विशेष पर ठहरकर भारत विद्या का प्रचार-प्रसार करते हैं। वास्तव में वर्षा की ऋतु हरियाली संग अनेक दुश्वारी भी लाती है। इस समय यात्राएं कम हो जाती हैं और सार्वजनिक आयोजन थम जाते हैं। शादी विवाह भी इन दिनों नहीं आयोजित होते हैं। ऐसे में उत्सवों की भूमि भारत से इस अनूठे पर्व का चलन शुरू हुआ। इस अनुष्ठान पर्व में व्रत और तप दोनों है। वहीं इसके संकल्पों द्वारा आरोग्य और आत्मनियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। बारिश का यह समय सुरों की साधना और साहित्य सृजन का है।
पुरातन काल में जहां संत लोग पुस्तकों की अनेक हस्तलिखित प्रतियां बनाते थे, वहीं बदलते समय ने अब लेखन और अनुवाद के लिए कहीं अधिक समय उपलब्ध कराया है। वाल्मीकि रामायण में भगवान राम इसे सामवेदीय साधकों का अध्ययन काल कहते हैं। जबकि पुराण ग्रंथ इसे देवताओं के स्मरणार्थ प्रस्तुतियों के लिए उपयुक्त समय मानते हैं। वास्तव में यह गीत, काव्य रचना संग नृत्य नाट्य और संगीत के अभ्यास हेतु उपयुक्त समय है।
महाकवि कालिदास का दूतकाव्य मेघदूतम वर्षा के इसी ऋतु के ऊपर रचा गया है। पुरातन पर्व चातुर्मास उत्सव सभी भारतीय मत पंथों में समान रूप से लोकप्रिय है। हिंदू जहां इसे देवशयनी से देवोत्थान एकादशी तक मनाते हैं, वहीं बौद्ध परंपरा में यह आषाढ़ पूर्णिमा से आरंभ होकर अश्विन पूर्णिमा को समाप्त होता है। जबकि जैन आचार्य आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को आरंभ कर दीपावली पर विश्राम देते हैं। इससे संबंधित जानकारी बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रंथ सुत्तपिटक से लेकर जैन साहित्य के पुरातन भाग आगम के समवायांगसूत्र तक में वर्णित है। जैन बौद्ध साहित्यों में भगवान बुद्ध एवं तीर्थंकर महावीर के चातुर्मास उत्सवों का पूरा वर्णन है।
हिंदू सिख मान्यताओं में भगवान राम, देवर्षि नारद और नानकशाही परंपरा में बाबा श्रीचंद एवं उदासी निर्मल संतों के चौमासे का जिक्र मिलता है। यह वाणी विचार संयम और धर्मोपदेश का एक उपयुक्त समय है। जैन आचार्य और बौद्ध भिक्षु इसे एक सामुदायिक जुड़ाव के अवसर के तौर पर लेते हैं, वहीं हिंदू साधु संतों में इस भावना की स्पष्टतः कमी दिखती है। इस अवसर पर अधिकांश साधु संत केवल बड़े नगरों एवं तीर्थों तक सीमित हैं।
नए प्रयास : वैसे इस दिशा में नए तरीके से प्रयास भी किए जा रहे हैं। इस्कान के संन्यासियों ने इसे भक्ति और गीता के प्रचार के अवसर के तौर पर लिया है। वहीं मां अमृतानंदमयी इसे सेवा सुश्रुता के तौर पर लेती हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण उनके द्वारा हाल ही में दिल्ली के निकट फरीदाबाद में शुरू किया गया एक सुव्यवस्थित कैंसर सेवार्थ अस्पताल है, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है।
सांस्कृतिक विस्तार : कर्नाटक के गणपति सच्चिदानंद स्वामी ने इस दौरान अमेरिका के डलास में लाखों लोगों के बीच हजारों बच्चों से गीता पाठ करा कर सांस्कृतिक विस्तार का संदेश दिया है। हाल में दिवंगत शिव चर्चा सत्संग प्रणेता स्वामी हरिन्द्रानंद भी कुछ ऐसा ही जादू करते रहे हैं। पिछले कुछ दशक और ऐसे चातुर्मास का उपयोग उन्होंने समाज के आखिरी पायदान पर खड़े लोगों को जोड़ने लिए किया है। इसका परिणाम करोड़ों दलित आदिवासियों में सांस्कृतिक चेतना और सनातन संस्कृति से प्रेम के रूप में सामने है। वैसे चातुर्मास अपने आप में आयुर्वेद, योग शास्त्र, नृत्य संगीत, भारतीय साहित्य और भक्ति से जुड़ा एक संपूर्ण भारतीय विकल्प है।
सूचनाओं के संजाल और सुगम हुई यात्राओं ने इस परंपरा की तरफ दुनिया भर का ध्यान खींचा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर समग्र विश्व में फैले परंपरावादी, किंतु प्रगतिशील हिंदू गुरुओं ने भी इसे एक जीवनचर्या और उत्सव के रूप में लोकप्रिय किया है। ऐसे में अब इसे भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से निकाल वैश्विक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। परंपरा
[अध्येता, भारतीय संस्कृति परंपरा]