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यहां आज भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का एकमात्र जरिया हैं बैलगाड़ियां, नंबर प्लेट के साथ अनोखा सिस्टम

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में एक ऐसा गांव है जहां वाहन तो चलते हैं लेकिन उनसे प्रदूषण की कोई समस्या नहीं है।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Tue, 05 Nov 2019 01:41 PM (IST)Updated: Tue, 05 Nov 2019 01:41 PM (IST)
यहां आज भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का एकमात्र जरिया हैं बैलगाड़ियां, नंबर प्लेट के साथ अनोखा सिस्टम

बीजापुर, जेएनएन। राजधानी दिल्ली में वाहनों की भीड़ के चलते हो रही समस्या और प्रदूषण की चुनौती को देखते हुए इन दिनों ऑड-इवन नंबर सिस्टम अपनाया जा रहा है। इससे वाहनों की सड़क पर भीड़ और प्रदूषण दोनों कम हो रहा है। दूसरी तरफ देश की राजधानी से करीब 12 सौ किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में एक ऐसा गांव है जहां वाहन तो चलते हैं, लेकिन उनसे प्रदूषण की कोई समस्या नहीं है।

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बैलगाड़ियां ही पब्लिक ट्रांस्पोर्ट का साधन

दरअसल, यहां आज भी कार्बनिक फ्यूल से चलने वाले वाहनों की जगह बैलगाड़ियां ही पब्लिक ट्रांस्पोर्ट का एकमात्र साधन हैं। जिस तरह पब्लिक ट्रांस्पोर्ट सिस्टम को चलाने के लिए आरटीओ जैसे विभाग होते हैं, ठीक उसी तरह यहां भी बैलगाड़ी परिवहन व्यवस्था के लिए पूरा का पूरा सिस्टम काम कर रहा है। प्रत्येक बैलगाड़ी की अपनी अलग पहचान के लिए बकायदा इनके यूनिक नंबर भी हैं। 

छत्तीसगढ़ में तेजी से बढ़ रहा ऑटोमोबइल सेक्टर का व्यापार

छत्तीसगढ़ समेत देश के लगभग सभी हिस्सों में उपयोगिता के चलते ऑटोमोबइल सेक्टर का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, वहीं देश के कई राज्यों में नया ऑटोमोबाइल एक्ट भी लागू हो चुका है। जिसके चलते वाहनों पर चालानी कार्रवाई के मामले भी तेजी से सामने आ रहे हैं। ऐसे में चालान पर ली जा रही चुटकियों को ठेंगा दिखाती एक तस्वीर छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थित इंद्रावती नेशनल पार्क में देखने को मिली है।

जहां विकास की चकाचौंध से दूर चार पंचायतों के 33 गांवों के लिए यातायात का जरिया सिर्फ और सिर्फ बैलगाड़ी हैं मगर इनमें जो दिलचस्प है वह यह कि परिवहन के लिए उपयोग लाई जा रही कई बैलागाड़ियों में गाड़ी के मालिक के नाम के साथ नंबर भी लिखे होते हैं, जो सड़क परिवहन के नियम से मेल खाते हैं। 

 बैलगाड़ियों पर नंबर और मालिक का पूरा नाम 
हालांकि बैलगाड़ियों पर नंबर, गाड़ी मालिक का पूरा नाम और पता के पीछे चालानी कार्रवाई से बचना उद्देश्य नहीं है, बल्कि 33 गांवों के लिए यह एक व्यवस्था है ताकि जरूरत पड़ने पर गाड़ी के लिए मालिक से सीधा संपर्क स्थापित किया जा सके, चूंकि इलाके में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है ऐसे में गाड़ी के लिए मालिक को ढूंढना मुश्किल हो सकता है, लेकिन नाम, पता और गांव में गाड़ियों की मौजूदगी की संख्या से परेशानी हल हो सकती है, इसलिए नेशनल पार्क के दायर में बसे गांवों में यह नजारा आम है। 
 
जिला मुख्यालय से लगभग 125 किमी दूर इंद्रावती नेशनल पार्क में सेण्डरा, पिल्लूर समेत चार पंचायत और 33 गांव आते हैं। बीते तीस वर्षों में सरकारी उपेक्षा के चलते देश-प्रदेश से अलग-थलग पड़े गए इस इलाके में साढ़े पांच हजार की आबादी आज भी आवाजाही के लिए बैलगाड़ियों पर निर्भर है, लेकिन गांव का हर परिवार बैलगाड़ी संपन्न् नहीं हैं, इसलिए उन्हें सफर करना हो या अनाज ढुलवाना हो, बैलागाड़ी मालिक को किराया चुकाना ही पड़ता है। 
पूरे इलाके में आते है 33 गांव

छोटेकाकलेर के येलादी सुरैया एक बैलगाड़ी के मालिक है। पिल्लूर से सेण्डरा के रास्ते करीबी एक गांव में बैलगाड़ी और उसके मालिक मिले। गाड़ी में दो मुसाफिर भी सवार थे, जो एक गांव से दूसरे गांव जाने बैलागाड़ी पर सवार हुए थे। गाड़ी के पिछले हिस्से में मालिक का नाम और नंबर लिखा हुआ था। पूछने पर गाड़ी हांक रहे सुरैया के अलावा मौजूद ग्रामीणों ने बताया कि पूरे इलाके में 33 गांव आते हैं, रिश्तेदारियों से लेकर राशन के लिए उन्हें लम्बा सफर भी तय करना होता है। 

बैलगाड़ियों से सफर 

पहाड़ियों और पगडंडियों के कारण बैलगाड़ियों से सफर करना होता है, जिसके चलते लगभग सभी गांवों में बैलगाड़ियां मौजूद हैं, लेकिन कौन से बैलगाड़ी किसकी है, इसकी जानकारी देने गाड़ी मालिकों ने यह व्यवस्था बना रखी हैं, गाड़ी पर मालिक का नाम के साथ गांव का नाम भी लिखा होता है और नंबर भी। इससे गांव का नाम, गाड़ी मालिक और फलां गांव में कितनी गाड़ियां हैं, दूसरे गांवों को इसकी जानकारी आसानी से होती है। 

 
यकीनन नेशनल पार्क के इस इलाके में ट्रांसपोर्ट के लिए बैलगाड़ी को छोड़ दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है, ऐसे में 33 गांवों की साढ़े पांच हजार आबादी पर कितनी बैलगाड़ियां हैं, जानकारी निश्चित ही आसानी से जुटाई जा सकती है और जरूरत पड़ी तो बैलगाड़ी के लिए संपर्क भी आसानी से किया जा सकता है। 

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