Chardham Yatra: मन, विचार और आत्मा की शुद्धि का सफर
कहते हैं कि भाव के साथ की गई चार धाम यात्रा अंतरात्मा को बदलने की ताकत रखती है। आज से शुरू चार धाम यात्रा पर विशेष...
देहरादून, दिनेश कुकरेती। 'ऐतरेय ब्राह्मण’ के अनुसार, जब मनुष्य सोया रहता है, वह कलियुग में होता है। जब बैठ जाता है, तब द्वापर में तथा जब उठ खड़ा होता है, तब त्रेतायुग में होता है। वहीं जब वह चलने लगता है, तो वह सतयुग को प्राप्त करता है। इसलिए कलियुग में हिमालय की चार धाम यात्रा को सतयुग तुल्य माना गया है, क्योंकि चलना ही जीवन है और ठहर जाने का नाम मृत्यु। चार धाम यानी यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ की यात्रा का सीधा संबंध मन, विचार और आत्मा की शुद्धि से है।
कहते हैं कि भाव के साथ की गई चार धाम यात्रा अंतरात्मा को बदलने की ताकत रखती है। इसने इंसानियत को कई स्तरों पर जोड़ने का संदेश दिया है। यही वजह है कि जब हम चार धाम की यात्रा पर होते हैं, तो प्रकृति के स्वच्छ-निर्मल एवं नयनाभिराम नजारों के बीच सभी सांसारिक उलझनों को पीछे छोड़ देते हैं। ये ऐसे क्षण हैं, जब हम न सिर्फ तनावमुक्त हो जाते हैं, बल्कि अंतर्मन में खुशी की अनुभूति भी करने लगते हैं। खुलकर जीने की उत्कंठा पैदा हो जाती है। इसीलिए चार धाम यात्रा को जीवन की यात्रा भी कहा गया है, जिसका शुभारंभ आज अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ हो रहा है।
हरिद्वार से शुरू होती है यात्रा
चार धाम यात्रा का शुभारंभ गंगाद्वार हरिद्वार से माना गया है, जिसे श्रीविष्णु के साथ शिव का द्वार भी माना जाता है। पहाड़ की कंदराओं से उतरकर गंगा पहली बार यहीं मैदान में दृष्टिगत होती हैं। कहते हैं कि अंतर्मन में भक्ति का संचार होने पर ही ज्ञान के चक्षु खुलते हैं और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं, साक्षात सरस्वती स्वरूपा मां गंगा। ज्ञान ही जीव में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही संभव है, ऐसा माना जाता है। जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष, जो मान्यता के अनुसार श्रीहरि के चरणों में मिल सकता है। पुराण कहते हैं कि जीवन में जब कुछ पाने की उत्कंठा शेष न रह जाए, तब भगवान बदरी नारायण की शरण में चले जाना चाहिए।
प्रथम पड़ाव यमुनोत्री
उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से करीब 3235 मीटर (10610 फीट) की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री धाम को यमुना नदी का उद्गम माना गया है। यमुनाजी को भक्ति का उद्गम माना गया है, इसलिए पुराणों में सर्वप्रथम यमुनाजी के दर्शन की सलाह दी गई है। हालांकि यमुना का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई झील और हिमनद चंपासर ग्लेशियर है। यह समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊंचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में देवी यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजमान है। यहां चट्टान से गिरती जलधाराएं ‘ॐ’ सदृश ध्वनि उत्पन्न करती हैं।
गंगोत्री में गंगा का स्पर्श
उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से 3102 मीटर (10176 फीट) की ऊंचाई पर वृहद हिमालय स्थित गंगोत्री धाम को पतित पावनी गंगा का उद्गम माना गया है। हालांकि गंगा का उद्गम स्रोत यहां से लगभग 19 किमी. दूर गोमुख स्थित गंगोत्री ग्लेशियर में 3892 मीटर की ऊंचाई पर है। मान्यता है कि श्रीराम के पूर्वज एवं रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां भगवान शिव के लिए कठोर तप किया था। शिव की कृपा से देवी गंगा ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। यहीं 18वीं सदी में गढ़वाल के गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया। यह सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। मंदिर की बनावट में राजस्थानी शैली की झलक दिखती है। यहां शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है।
केदारनाथ में आदि शंकराचार्य की समाधि
रुद्रप्रयाग जिले में समुद्र तल से 3553 मीटर (11654 फीट) की ऊंचाई पर मंदाकिनी व सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ ही हिमालय के चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। कहा जाता है कि भूरे रंग के विशालकाय पत्थरों से निर्मित कत्यूरी शैली के इस मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था। मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में भगवान शिव का वाहन नंदी बैल विराजमान है। कहते हैं कि आठवीं सदी में चारों दिशाओं में चार धाम स्थापित करने के बाद 32 वर्ष की आयु में आद्य शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम में ही समाधि ली थी। उन्हीं के द्वारा यहां मंदिर बनवाया गया। केदारनाथ धाम के पुजारी मैसूर (कर्नाटक) के जंगम ब्राह्मण होते हैं। वर्तमान में 337वें रावल केदारनाथ धाम की व्यवस्था संभाल रहे हैं।
भगवान विष्णु को समर्पित बदरीनाथ
उत्तराखंड के चमोली जिले में समुद्र तल से 3133 मीटर (10276 फीट) की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित है। विष्णु पुराण, महाभारत व स्कंद पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसे देश के चार धामों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। माना जाता है कि बदरीनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं से नौवीं सदी के मध्य हुआ। शंकुधारी शैली में बने 15 मीटर ऊंचे इस मंदिर के शिखर पर गुंबद है और गर्भगृह में श्रीविष्णु के साथ नर-नारायण ध्यान अवस्था में विराजमान हैं। मान्यता है कि इसे आद्य शंकराचार्य ने आठवीं सदी के आसपास नारद कुंड से मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया था। इस मूर्ति को श्रीविष्णु की आठ स्वयंभू प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। मंदिर के मुख्य पुजारी केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं। इन्हें भी रावल कहा जाता है। यह व्यवस्था स्वयं आद्य शंकराचार्य ने की थी। एक अन्य संकल्पना के अनुसार, इस मंदिर को बदरी विशाल के नाम से भी पुकारते हैं। श्री विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मंदिरों में योग-ध्यान बदरी, भविष्य बदरी, वृद्ध बदरी और आदि बदरी के साथ जोड़कर पूरे समूह को पंच बदरी के रूप में जाना जाता है।
कपाट खुलने के दिन
- यमुनोत्री : 7 मई को दोपहर 1.15 बजे
- गंगोत्री : 7 मई को दोपहर 11.30 बजे
- केदारनाथ : 9 मई को सुबह 5.35 बजे
- बदरीनाथ : 10 मई को सुबह 4.15 बजे
केदारनाथ के दर्शन आवश्यक
हिमालय में केदार नामक शृंग पर अवस्थित यह मंदिर हिमालय में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित एकमात्र धाम है। भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग रूप में यहां सदा वास करने का वचन श्रीविष्णु को दिया। ‘स्कंद पुराण’ में उल्लेख है कि जो केदारनाथ के दर्शन किए बिना बदरीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है।’
भीमाशंकर लिंग
रावल, केदारनाथ धाम
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