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धरती की कक्षा छोड़ चंद्रमा की ओर रवाना हुआ Chandrayaan-2, पार की सबसे कठिन बाधा

Chandrayaan-2 आज तड़के पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर चंद्रमा की कक्षा की ओर कूच कर गया। पृथ्वी की कक्षा से चंद्रमा की कक्षा के बीच की यह यात्रा सात दिनों की होगी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 14 Aug 2019 08:15 AM (IST)Updated: Wed, 14 Aug 2019 08:38 AM (IST)
धरती की कक्षा छोड़ चंद्रमा की ओर रवाना हुआ Chandrayaan-2, पार की सबसे कठिन बाधा

बेंगलुरु, एजेंसी। Chandrayaan-2 आज यानी बुधवार को तड़के पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर चंद्रमा की कक्षा की ओर कूच कर गया। वैज्ञानिकों की मानें तो पृथ्वी की कक्षा से चंद्रमा की कक्षा के बीच के गलियारे की यह यात्रा लगभग सात दिनों की होगी। यह 20 अगस्‍त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर जाएगा। उसके बाद 31 अगस्त तक चंद्रमा की कक्षा में परिक्रमा करता रहेगा। फिर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की आर बढ़ेगा। सात सितंबर को यह चंद्रमा पर लैंड करेगा।

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, ISRO) के मुताबिक, 14 अगस्त को चंद्रयान-2 का सबसे कठिन कक्षा परिवर्तन किया गया। वैज्ञानिकों ने इस कक्षा परिवर्तन को ट्रांस-लूनर इंजेक्शन नाम दिया था। यह चंद्रयान-2 के रास्‍ते की सबसे कठिन चुनौती थी। लॉन्चिंग के 23 दिन बाद चंद्रयान-2 ने ट्रांस-लूनर इंजेक्शन को सुबह 2:21 बजे सफलता पूर्वक पूरा कर लिया। इस कक्ष परिवर्तन के बाद यह पृथ्वी की कक्षा से निकलकर चंद्रमा की कक्षा की तरफ कूच कर गया है।

धरती की कक्षा से निकलने के बाद चंद्रयान-2 को चंद्रमा की कक्षा में स्‍थापित कराया जाएगा। चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद एक बार फिर कक्षा में बदलाव की प्रक्रिया शुरू होगी। इस तरह तमाम बाधाओं को पार करते हुए यह सात सितंबर को यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा जिस हिस्‍से में अभी तक कोई यान नहीं उतरा है। इसरो वैज्ञानिकों ने बताया कि चंद्रयान-2 अभी तक तय कार्यक्रम के मुताबिक काम कर रहा है। इसके सभी उपकरण सही तरीके से काम कर रहे हैं। 

इसरो ने 22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-2 को सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-मार्क-3 की मदद से प्रक्षेपित किया था। इस रॉकेट को बाहुबली नाम दिया गया है। चंद्रयान-2 में तीन हिस्से हैं - ऑर्बिटर, लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान'। ऑर्बिटर करीब सालभर चांद की परिक्रमा कर शोध को अंजाम देगा। वहीं, लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरकर प्रयोग का हिस्‍सा बनेगा। चांद की सतह पर लैंडिंग के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा।

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