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चंडीगढ़ टेक्नोलॉजी पार्क का भूमि अधिग्रहण निरस्त

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। चंडीगढ़ प्रशासन को तगड़ा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चंडीगढ़ टेक्नालॉजी पार्क के लिए फेज-3 परियोजना का अधिग्रहण निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जमीन अधिग्रहण के पीछे दिया गया जनहित का उद्देश्य वास्तविक नहीं था, बल्कि प्रशासन आइटी पार्क के लिए भूमि अधिग्रहण की आड़ में बिल्डरों को फायदा प

By Edited By: Published: Thu, 11 Oct 2012 09:42 PM (IST)Updated: Thu, 11 Oct 2012 09:47 PM (IST)
चंडीगढ़ टेक्नोलॉजी पार्क का भूमि अधिग्रहण निरस्त

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। चंडीगढ़ प्रशासन को तगड़ा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चंडीगढ़ टेक्नालॉजी पार्क के लिए फेज-3 परियोजना का अधिग्रहण निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जमीन अधिग्रहण के पीछे दिया गया जनहित का उद्देश्य वास्तविक नहीं था, बल्कि प्रशासन आइटी पार्क के लिए भूमि अधिग्रहण की आड़ में बिल्डरों को फायदा पहुंचाना चाहता था।

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चंडीगढ़ प्रशासन ने 2006 में टेक्नोलॉजी पार्क के विस्तार के लिए फेज-3 योजना में मनीमाजरा गांव की कुल 272.30 एकड़ जमीन अधिगृहीत की थी। पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट से निराश होने के बाद भूस्वामियों ने अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने उनकी अपील स्वीकार करते हुए अधिग्रहण को सही ठहराने वाला हाई कोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया। कोर्ट ने भू अधिग्रहण की 26 जून, 2006, 2 अगस्त, 2006 व 28 फरवरी, 2007 की अधिसूचनाएं भी निरस्त कर दीं। पीठ ने भू-अधिग्रहण रद करते हुए कहा कि उन्हें यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि भू-अधिग्रहण अधिकारी [एलएओ] अपने विधायी कर्तव्य के पालन में नाकाम रहा। उसने अधिग्रहण के खिलाफ भूस्वामियों की आपत्तियां सुनकर रिपोर्ट तैयार करने के अपने कर्तव्य का सही ढंग से निर्वहन नहीं किया। भू-अधिग्रहण कानून में भूस्वामियों की आपत्तियां सुने जाने और उन पर ठीक से विचार करने के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है।

पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने भी याचिकाकताओ की ओर से अधिग्रहण के खिलाफ भू-अधिग्रहण अधिकारी के समक्ष उठाई गई आपत्तियों पर गंभीरता से विचार नहीं किया। याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि इस अधिग्रहण का क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिक संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। एलएओ ने इस आपत्ति पर ध्यान देने के बजाय मशीनी तौर पर जमीन के अधिग्रहण को मंजूरी दे दी। एलएओ की रिपोर्ट को सक्षम अधिकारी के समक्ष विचार के लिए नहीं रखा गया। सलाहकार ने भी बस सचिव [वित्त] की ओर से तैयार नोट पर अपने हस्ताक्षर कर दिए।

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