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बीहड़ों से निकलकर बॉर्डर तक पहुंचे चंबल के लड़ाके, 40 हजार जवान सेना में पहुंचे

यहां की मिट्टी के कुछ खास तत्व इस पानी में मिल जाते हैं। कहते हैं कि इस पानी को पीने वाले चंबल के लोगों में फाइटिंग जीन पनपता है, जो उन्हें लड़ने के लिए प्रेरित करता है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Sat, 11 Aug 2018 08:56 AM (IST)
बीहड़ों से निकलकर बॉर्डर तक पहुंचे चंबल के लड़ाके, 40 हजार जवान सेना में पहुंचे
बीहड़ों से निकलकर बॉर्डर तक पहुंचे चंबल के लड़ाके, 40 हजार जवान सेना में पहुंचे

शिवप्रताप सिंह जादौन, मुरैना। सेना में रहकर वीरगति पाने वाले मध्यप्रदेश के कुल शहीद सैनिकों में से 45.1 फीसद चंबल के भिंड और मुरैना से हैं। बंजर बीहड़ के बीच से गुजरी चंबल नदी ने इस इलाके के नौजवानों को एक अनोखे फाइटिंग जीन (आनुवांशिक कारक) से नवाजा है।

अपने स्वाभिमान के लिए अत्याचार और अन्याय के खिलाफ बंदूक उठा बीहड़ में कूद जाने वाले यहां के युवा बागी हो जाया करते थे। इन युवाओं के हाथों में बंदूक तो अब भी है, लेकिन उनके पांव बीहड़ की बजाय बॉर्डर की ओर बढ़ गए हैं। यहां के 40 हजार युवा सेना में हैं।

इंदौर के जानापांव पहाड़ी से निकलकर मध्यप्रदेश के मुरैना और भिंड जिले तक आने वाली चंबल नदी जब बीहड़ों से गुजरती है तो यहां की मिट्टी के कुछ खास तत्व इस पानी में मिल जाते हैं। कहते हैं कि इस पानी को पीने वाले चंबल के लोगों में फाइटिंग जीन पनपता है, जो उन्हें लड़ने के लिए प्रेरित करता है।

बहरहाल, यहां के अधिकांश युवा 12वीं पास करते ही सेना में जाने के लिए तैयारी शुरू कर देते हैं। सेना के ग्वालियर रिक्रूटमेंट सेंटर से हर साल मध्यप्रदेश के जिन 13 जिलों के युवाओं की भर्ती की जाती है, उनमें आधे से ज्यादा सिर्फ भिंड और मुरैना से चयनित होते हैं। वर्तमान में भिंड जिले के करीब 25 हजार और मुरैना जिले के 14 हजार युवा सेना में रहकर सेवा दे रहे हैं।

शहादत का गौरवमय इतिहास
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने 14 अगस्त से शहीद सम्मान अभियान शुरू करने की घोषणा की है। इसके लिए शहीदों के बारे में जानकारी एकत्रित की गई। शासन ने जो जानकारी जुटाई, उसके अनुसार अब तक प्रदेश के 312 जवान सेना में रहते हुए शहीद हुए। खास बात यह है कि इनमें से 137 शहीद चंबल के रहने वाले थे। इनमें से सर्वाधिक 81 शहीद सैनिक चंबल के भिंड जिले से हैं और दूसरी बड़ी संख्या मुरैना से 56 शहीदों की है। दोनों ही जिलों में 16-16 गेलेंट्री अवार्डी भी हैं। जिनमें सर्वोच्च वीरता पदक विजेता भी हैं।

भिंड में बसानी पड़ी वीरांगनाओं की अलग कॉलोनी
चंबल के शहीदों की संख्या इतनी अधिक है कि उनके परिवारों के लिए सरकार को अलग से कॉलोनियां बसानी पड़ी हैं। भिंड जिले में तीन सैनिक कॉलोनियां हैं। इनमें से दो कॉलोनियों में पूर्व सैनिकों के परिवार रह रहे हैं। यहां एक वीरांगना कॉलोनी भी है। जहां शहीद हुए जवानों के परिवारों को एक साथ बसाया गया है। ताकि यहां उन्हें सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें।

गांव जहां हर परिवार में एक से दो फौजी 
चंबल के मुरैना जिले के तरसमा गांव में वर्तमान में 400 घर हैं। यहां हर घर से कम से कम दो युवा सेना और अर्धसैनिक बलों में हैं। यहां सवा आठ सौ से ज्यादा रिकॉर्ड युवा सेना में हैं। मुरैना का ही काजी बसई गांव भी करीब 380 घरों की बस्ती है। यहां 458 युवा सेना में सेवा दे रहे हैं।

क्या है फाइटिंग जीन
'चंबल इंदौर से निकलकर जब भिंड और मुरैना के बीहड़ों से बहती है तो यहां की मिट्टी से पानी में वे सभी तत्व मिल जात हैं जो हमारे शरीर की अंत:स्त्रावी ग्रंथियों को उद्विप्त करने में सहयोगी होती हैं। यह सब कुछ हार्मोन पर निर्भर होता है। हार्मोन को एक्टिव करने वाले इन तत्वों की पूर्ति चंबल का पानी करता है। यही वजह है कि यहां के लोग पल में उग्र हो जाते हैं। इसका सकारात्मक प्रयोग यहां के युवा सेना में जाकर कर रहे हैं।'

-डॉ. विनायक तोमर, चंबल के पानी और मिट्टी पर शोध करने वाले प्रोफेसर