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बिजली क्षेत्र में भी अब सब्सिडी देने के लिए डीबीटी की तैयारी, संशोधन विधेयक का मसौदा जारी

केंद्र सरकार ने बिजली क्षेत्र में बड़े सुधार की ओर कदम बढ़ाते हुए बिजली संशोधन विधेयक 2020 को मंजूरी दे दी है। जानें इसमें क्‍या किए गए हैं प्रावधान...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 18 Apr 2020 11:58 PM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2020 12:01 AM (IST)
बिजली क्षेत्र में भी अब सब्सिडी देने के लिए डीबीटी की तैयारी, संशोधन विधेयक का मसौदा जारी

नई दिल्ली, एजेंसियां। बिजली क्षेत्र में बड़े सुधार की ओर कदम बढ़ाते हुए बिजली मंत्रालय ने बिजली संशोधन विधेयक, 2020 को मंजूरी दे दी है। इसके तहत समाज के बेहद गरीब तबके के लोगों और इस वक्त सब्सिडी का लाभ ले रहे लोगों तक सीधे लाभ पहुंचाने के लिए बिजली क्षेत्र में भी सब्सिडी वितरण के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी का तरीका अपनाने का प्रावधान किया गया है।

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विधेयक के मुताबिक बिजली के टैरिफ का निर्धारण आयोगों द्वारा सब्सिडी को ध्यान में रखे बगैर किया जाएगा और सब्सिडी सीधे लक्षित ग्राहकों के खातों में डाल दी जाएगी। सरकार ने शनिवार को विधेयक का मसौदा आम लोगों की सलाह आमंत्रित करने के लिए जारी कर दिया है। लोगों को इस पर अपनी राय देने के लिए 21 दिनों की मोहलत दी गई है। पारित हो जाने की सूरत में यह विधेयक बिजली कानून, 2003 का स्थान लेगा।

समाचार एजेंसी आइएएनएस के मुताबिक परामर्श आमंत्रित करने के बाद मंत्रालय एक कैबिनेट नोट जारी करेगा और फिर संसद के अगले सत्र में इसे अंतिम अनुमोदन के लिए पेश किया जाएगा। बिजली क्षेत्र में डीबीटी लागू होने के बाद न केवल राज्य सरकारों के खजाने से बिजली सब्सिडी का बोझ हटेगा, बल्कि कॉमर्शियल और इंडस्टि्रयल बिजली दरों में भी बड़ी कमी आएगी और उद्योगों को लाभ होगा।

इसकी वजह यह है कि राज्य सरकारें बिजली पर जितनी भी सब्सिडी देती हैं, उसकी भरपाई वे कॉमर्शियल और इंडस्टि्रयल ग्राहकों से ही करती हैं। डीबीटी की व्यवस्था होने के बाद उद्योगों और कारोबारी जगत की बिजली दरों में 40 प्रतिशत तक की गिरावट संभव हो सकेगी।

समाचार एजेंसी प्रेट्र के मुताबिक वर्ष 2014 के बाद से यह बिजली संशोधन विधेयक का चैथा मसौदा है। इसमें इलेक्टि्रसिटी कांट्रैक्ट एन्फोर्समेंट अथॉरिटी यानी ईसीईए की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा गया है। इस अथॉरिटी को बिजली खरीद करार के मुदृदे पर बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियों के बीच विवाद के निपटारे के लिए सिविल कोर्ट जैसे अधिकार देने का भी प्रस्ताव रखा गया है। हालांकि इस अथॉरिटी के फैसलों को बिजली अपीलीय आयोग और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

इस बारे में ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन एआइपीईएफ के वीके गुप्ता ने प्रेट्र को बताया कि कोविड-19 से पस्त हुई इस हालत में सरकार से उम्मीद थी कि वह देशभर में बिजली समेत सभी सेक्टर का राष्ट्रीयकरण करती। लेकिन इस मसौदे के माध्यम से सरकार ने बिजली क्षेत्रा के पूरी तरह निजीकरण का फैसला कर लिया है जो उचित कदम नहीं है।


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