बिना किसी करारनामे के सौंप दी अरबों की जिम्मेदारी
देश की आजादी के बाद केंद्र सरकार को सिंधिया राजघराने से जो संपत्तियां प्राप्त हुई थीं, उनकी देखरेख की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने बिना किसी करारनामे के मध्य प्रदेश की कंपनी प्रॉविडेंट इन्वेस्टमेंट कंपनी लि.(पीआइसीएल) को सौंप दी थी। इस जिम्मेदारी के एवज में केंद्र से पीआइसीएल को इन संपत्तियों से होने वाली
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। देश की आजादी के बाद केंद्र सरकार को सिंधिया राजघराने से जो संपत्तियां प्राप्त हुई थीं, उनकी देखरेख की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने बिना किसी करारनामे के मध्य प्रदेश की कंपनी प्रॉविडेंट इन्वेस्टमेंट कंपनी लि. को सौंप दी थी। इस जिम्मेदारी के एवज में केंद्र से पीआइसीएल को इन संपत्तियों से होने वाली आमदनी का तीन फीसद मिलना तय हुआ था।
दैनिक जागरण को सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत मिली जानकारी के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पीआइसीएल की देखरेख में चल रही सिंधिया की सभी अचल संपत्तियों को केंद्र सरकार ने अपने अधीन ले लिया था। इन संपत्तियों में वह अचल संपत्तियां भी शामिल थीं जो सिंधिया के पास उद्योगपति मथुरादास गोकुलदास ने गिरवी रखी थीं। मुंबई और ठाणे स्थित इन संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी केंद्र ने मध्य प्रदेश सरकार के माध्यम से पीआइसीएल के पास ही रहने दी। यह और बात है कि अरबों की अचल संपत्तियों की देखरेख के लिए पीआइसीएल और केंद्र के बीच कोई लिखित करारनामा नहीं हुआ। यह बात पीआइसीएल स्वयं स्वीकार करती है। वह यह भी मानती है कि इन संपत्तियों की देखरेख के एवज में केंद्र से इन संपत्तियों से होने वाली आय पर तीन फीसद कमीशन उसे प्राप्त होता है, लेकिन ये संपत्तियां वास्तव में केंद्र के किस विभाग के अंतर्गत आती हैं, यह स्पष्ट नहीं है। पीआइसीएल भी मानती है कि इन संपत्तियों के स्वामित्व का निर्धारण अभी तक नहीं हो सका है।
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गौरतलब है कि केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा 13 जनवरी, 1994 को एक पत्र पीआइसीएल को लिखा गया था। विभाग केअवर सचिव चंदन सिंह के हस्ताक्षर से भेजे गए इस पत्र में 20 फरवरी, 1965 के किसी आदेश का जिक्र किया गया है। यह आदेश किसी अचल संपत्ति के निस्तारण को लेकर है, लेकिन इस पत्र के संबंध में दैनिक जागरण द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के वित्त मंत्रालय से आरटीआइ के जरिए मांगी गई विस्तृत जानकारी का कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ। गृह मंत्रालय के इसी पत्र में 10 अक्टूबर, 1994 को इन संपत्तियों के संबंध में हुई किसी बैठक का जिक्र भी किया गया है, लेकिन इस बैठक का विवरण उपलब्ध नहीं है। दूसरी ओर पीआइसीएल केंद्र से उसे प्राप्त होने वाले तीन फीसद कमीशन की जानकारी देने से भी यह कहकर कतरा रही है कि संपत्तियों का मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। गौरतलब है कि पीआइसीएल मुंबई उच्च न्यायालय में विचाराधीन जिस मुकदमे का जिक्र कर रही है, वह इन संपत्तियों के मूल मालिक मथुरादास गोकुलदास के वारिसों द्वारा दायर किया गया है।
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