परिवार नियोजन से मोदी सरकार ने मोड़ा मुंह, नसबंदी करा चुका सिपाही पहुंचा कैट
दिल्ली पुलिस के सिपाही बाबूलाल मिठरवाल ने वकील ज्ञानंत सिंह के जरिये याचिका दाखिल कर परिवार नियोजन भत्ता बंद किये जाने को चुनौती दी है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। जनसंख्या नियंत्रण देश के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है, लेकिन केन्द्र सरकार ने बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने की मुहिम में शामिल हुए अपने कर्मचारियों से मुंह मोड़ लिया है। सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी कराने वाले कर्मियों को पिछले 39 वर्षों से दिया जा रहा परिवार नियोजन भत्ता बंद कर दिया है। नसबंदी कराकर भत्ता ले रहे दिल्ली पुलिस के सिपाही बाबूलाल मिठरवाल ने परिवार नियोजन भत्ता बंद किये जाने को चुनौती दी है। बाबूलाल ने इसके खिलाफ केन्द्रीय प्रशासनिक ट्रिब्युनल (कैट) में याचिका दाखिल की है जिस पर 16 मार्च शुक्रवार को सुनवाई होनी है।
केन्द्र सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण हेतु परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए 4 दिसंबर 1979 को एक आफिस मैमोरेन्डम जारी कर दो या तीन बच्चों के बाद नसबंदी कराने वाले केन्द्रीय कर्मचारियों को विशेष प्रोत्साहन देते हुए परिवार नियोजन भत्ता देने की घोषणा की थी। ये भत्ता नसबंदी कराने वाले सभी कर्मियों को समान रूप से मिलता था और पूरी नौकरी के दौरान मिलना था। लेकिन सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिश स्वीकार करते हुए गत 1 जुलाई से परिवार नियोजन भत्ता बंद कर दिया है। वेतन आयोग का कहना था कि अब जनसंख्या नियंत्रण के लिए अलग से परिवार नियोजन भत्ता देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि छोटे परिवार के प्रति लोगों में स्वयं ही जागरुकता बढ़ गई है।
दिल्ली पुलिस के सिपाही बाबूलाल मिठरवाल ने वकील ज्ञानंत सिंह के जरिये याचिका दाखिल कर परिवार नियोजन भत्ता बंद किये जाने को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि उसने 2003 में नौकरी ज्वाइन की। उसने 1979 के सरकार के आफिस मैमोरेन्डम में परिवार नियोजन भत्ते के लिए दी गई शर्त के मुताबिक 2 बच्चों के बाद 1 मार्च 2011 को अपनी नसबंदी करा ली। नसबंदी कराने का प्रमाणपत्र जमा कराने के बाद उसे 2 मार्च 2011 से वेतन के साथ 210 रुपये परिवार नियोजन भत्ता मिलने लगा जो कि जून 2017 तक जारी रहा। लेकिन जुलाई से ये भत्ता बंद हो गया।
भत्ता बंद करने के आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया है कि ये भत्ता उसे नसबंदी कराने के कारण मिल रहा था और जारी आदेश के मुताबिक पूरी नौकरी के दौरान मिलना था। उसने परिवार नियोजन भत्ता पाने के लिए नसबंदी करा कर जनसंख्या नियंत्रण का स्थाई तरीका अपनाया है। भत्ता बंद किया जाना उसके जीवन के मौलिक अधिकार का हनन है। भत्ता बंद करने का आदेश रद करने की मांग करते हुए कहा है कि उसने नसबंदी करा कर सरकारी आदेश में दिये गए दायित्व का निर्वाह किया है अब सरकार अपने दायित्व से मुंह नहीं मोड़ सकती। नसबंदी के जरिए उसने शरीर में स्थाई बदलाव कराया है, जिसे बदला नहीं जा सकता। ऐसे में सरकार उसे लाभ से वंचित नहीं कर सकती। ये भी कहा है कि परिवार नियोजन भत्ता बंद किया जाना जनसंख्या नियंत्रण मुहिम को बड़ा झटका है। इससे सिर्फ लाभार्थी ही प्रभावित नहीं होंगे, बल्कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या से निबटने के प्रति गलत संदेश भी जाएगा।
उसका कहना है कि परिवार नियोजन भत्ता बंद करने की वेतन आयोग की सिफारिश ठीक नहीं है, क्योंकि आयोग ने स्वयं रिपोर्ट में दर्ज किया है कि केन्द्रीय कर्मियों ने परिवार नियोजन भत्ता बढ़ाने की मांग की थी।