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दिल्ली के सिपाहियों का मेट्रोपोलिटन भत्ता बंद करने पर नाराज कैट ने मांगा केंद्र सरकार से जवाब

मैट्रोपोलिटन भत्ता बंद करने का फैसला भेदभाव वाला और समानता के अधिकार के खिलाफ है। जब नौकरी की स्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है तो फिर भत्ता कैसे बंद किया जा सकता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 01 Sep 2019 08:35 PM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 10:10 PM (IST)
दिल्ली के सिपाहियों का मेट्रोपोलिटन भत्ता बंद करने पर नाराज कैट ने मांगा केंद्र सरकार से जवाब
दिल्ली के सिपाहियों का मेट्रोपोलिटन भत्ता बंद करने पर नाराज कैट ने मांगा केंद्र सरकार से जवाब

माला दीक्षित, नई दिल्ली। केन्द्रीय प्रशासनिक ट्रिब्युनल (कैट) ने दिल्ली पुलिस के गैर-राजपत्रित कर्मचारियों (सिपाही से लेकर सब इंस्पेक्टर तक) का मैट्रोपोलिटन भत्ता बंद किये जाने पर केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है। पिछले 50 साल से नौकरी के दौरान कठिनाइयों का सामना करने के लिए यह भत्ता दिया जाता था। इसे हार्डशिप भत्ता भी कहते हैं, जो राष्ट्रीय राजधानी में काम करने की दुश्वारियों की वजह से दिया जाता है।

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भत्ता बंद होने से दिल्ली पुलिस के सिपाही, हेड कान्सटेबिल, सहायक सब इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर तक के करीब 80000 कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। यह अलग-अलग पद पर 120 से लेकर 180 रुपये प्रतिमाह तक मिलता था।

केंद्र सरकार ने 6 जुलाई 2017 को अधिसूचना जारी कर मैट्रोपोलिटन भत्ता रद कर दिया था। फिर वित्त मंत्रालय ने 11 जुलाई 2017 को आफिस आदेश जारी किया जिसमें सभी संबंधित विभागों को एक जुलाई 2017 से रद भत्तों का भुगतान रोकने का आदेश दिया गया। इन दोनों आदेशों को दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबिल बाबूलाल मिठारवाल ने कैट में चुनौती दी है।

कैट ने गत बुधवार को मिठारवाल के वकील ज्ञानंत सिंह को सुनने के बाद केन्द्र और दिल्ली पुलिस को दो सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया। इससे पहले ज्ञांनत सिंह ने मैट्रोपोलिटन भत्ता बंद करने का आदेश रद करने की मांग करते हुए कहा कि भत्ता बंद करने का फैसला मनमाना है। भत्ता बंद करने की सातवें वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने से पहले भत्तों पर विचार करने वाली वित्त मंत्रालय की समिति ने इस भत्ते की समीक्षा नहीं की।

याचिका में कहा गया है कि समिति ने सिर्फ उन्हीं भत्तों पर विचार और समीक्षा की जिनके बारे में नोडल मिनिस्ट्री या विभाग ने अपना पक्ष रखा था। दिल्ली पुलिस के गैर-राजपत्रित कर्मचारियों को यूनियन बनाने का अधिकार नहीं है इसलिए उनकी ओर से कोई पक्ष नहीं रखा जा सका और अधिकारियों ने भी उनके लिए समिति के सामने पक्ष नहीं रखा।

सातवें वेतन आयोग ने नवंबर 2015 में यह कहते हुए भत्ता बंद करने की संस्तुति की थी कि संबंधित मंत्रालय ने इसे जारी रखने का जो आधार दिया है वह पर्याप्त नहीं है। आयोग ने विभिन्न तरह के भत्तों की समीक्षा करते हुए रिपोर्ट में कहा था कि वक्त के साथ कई तरह के बदलाव आये हैं जिन्हें देखते हुए कुछ भत्ते महत्वहीन हो गए हैं। इसके बाद सरकार ने वित्त सचिव की अध्यक्षता मे भत्तों पर विचार करने के लिए जुलाई 2016 में एक समिति गठित की।

समिति ने अप्रैल 2017 में दी गई रिपोर्ट में मैट्रोपोलिटन भत्ता बंद करने की वेतन आयोग की सिफारिश को हरी झंडी देते हुए कहा कि जिन मामलों में उसके सामने ज्ञापन और पक्ष रखे गए उन्हीं पर विचार किया गया है। समिति ने एक लिस्ट भी जारी की जिसमें उन भत्तों का जिक्र था जिनके बारे में कोई पक्ष समिति के सामने नहीं आया इस सूची में मैट्रोपोलिटन भत्ता 17वें नंबर पर दर्ज है।

याचिका में कहा गया है कि इसे बंद करने का फैसला भेदभाव वाला और समानता के अधिकार के खिलाफ है। यह भत्ता 1967 से चल रहा था जिसमें दो बार, चौथे और छठे वेतन आयोग की सिफारिश पर बढ़ोत्तरी भी हुई थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि जब नौकरी की स्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है तो फिर भत्ता कैसे बंद किया जा सकता है।


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