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निजी कॉलेजों का कैपिटेशन फीस मांगना गैरकानूनी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी तकनीकी और मेडिकल कॉलेजों का छात्रों से कैपिटेशन फीस मांगना अवैध एवं अनैतिक है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को उस चलन को समाप्त करने के लिए कानून बनाने को कहा है जिसके तहत मेधावी लेकिन गरीब छात्रों को ऐसे संस्थानों में दाखिला देने से इन्कार कर दिया जाता है।

By Edited By: Published: Sun, 08 Sep 2013 10:11 PM (IST)Updated: Sun, 08 Sep 2013 10:45 PM (IST)
निजी कॉलेजों का कैपिटेशन फीस मांगना गैरकानूनी

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी तकनीकी और मेडिकल कॉलेजों का छात्रों से कैपिटेशन फीस मांगना अवैध एवं अनैतिक है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को उस चलन को समाप्त करने के लिए कानून बनाने को कहा है जिसके तहत मेधावी लेकिन गरीब छात्रों को ऐसे संस्थानों में दाखिला देने से इन्कार कर दिया जाता है।

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बरेली के एक मेडिकल कॉलेज की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने यह आदेश पारित किया। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) ने इस मेडिकल कॉलेज की सीटें बढ़ाने की इजाजत नहीं दी थी। इसी के विरोध में एमसीआइ के खिलाफ यह कॉलेज शीर्ष अदालत पहुंचा था।

न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन एवं एके सिकरी की पीठ ने कहा कि बहुत सारे स्व वित्त पोषित संस्थानों में एमबीबीएस और स्नातकोत्तर की सीटों के लिए कैपिटेशन फीस, अत्यधिक फीस और डोनेशन के रूप में करोड़ों रुपये वसूलने से गरीब मेधावी छात्र उन संस्थानों से वंचित रह जाते हैं। विभिन्न संस्थानों को अतिरिक्त दाखिला लेने के लिए दबाव बनाते भी देखा जाता है। यह हमेशा छात्रों के लाभ के लिए नहीं होता बल्कि ये अपनी बेहतरी के लिए करते हैं। अदालत ने कहा उन निजी कॉलेजों की शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आई है जो छात्र वित्तपोषित संस्थान बन रहे हैं। सरकारी एजेंसियों को इस मुद्दे पर उचित कानून बनाने के लिए आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। पीठ ने यह भी कहा कि वह इस सचाई से आंखें बंद नहीं रख सकती कि ये चीजें हमारे देश में इसके बावजूद हो रही हैं जब इस अदालत ने टीएमए पई फाउंडेशन मामले यह संवैधानिक घोषणा कर रही है कि किसी तरह की मुनाफाखोरी या कैपिटेशन फीस आदि अस्वीकार्य है। केंद्र सरकार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो या इंटेलिजेंस विंग को इस तरह के अनैतिक प्रचलन को नष्ट करने के लिए प्रभावी कदम उठाने हैं नहीं तो स्व वित्तपोषित संस्थान छात्र वित्तपोषित संस्थान में बदल जाएंगे। अदालत ने कहा कि कुकुरमुत्ते की तरह बड़ी संख्या में खुल रहे मेडिकल, इंजीनियरिंग, नर्सिग और फार्मेसी संस्थानों से निश्चित रूप से देश की शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। खासकर मेडिकल क्षेत्र गंभीर आत्मनिरीक्षण की मांग करता है। अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि निजी मेडिकल संस्थान अपने कॉलेजों में एमबीबीएस और स्नातकोत्तर में दाखिला के लिए लाखों और कभी-कभी करोड़ों रुपये की मांग करते हैं।

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