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बिल्डर-बायर करार के खिलाफ खरीदार पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, की गई ये मांग

सुप्रीम कोर्ट में बिल्डर-बायर और एजेंट-बायर करार का समान प्रारूप निर्धारित करने की मांग। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका कनार्टक के बेंगलुरु में डीएलएफ के वेस्टएंड हाइट्स के 62 खरीदारों ने दाखिल की है। आग्रह किया- राज्य सरकारों को यूनिफॉर्म एग्रीमेंट प्रारूप लागू कराने का निर्देश दिया जाए।

By Nitin AroraEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 07:25 PM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 07:25 PM (IST)
बिल्डर-बायर करार के खिलाफ खरीदार पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, की गई ये मांग
बिल्डर-बायर करार के खिलाफ खरीदार पहुंचे सुप्रीम कोर्ट।

नई दिल्ली, माला दीक्षित। बिल्डरों की मनमानी के खिलाफ 62 फ्लैट खरीदार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। उन्होंने याचिका दाखिल कर बिल्डर-बायर और एजेंट-बायर एग्रीमेंट का समान प्रारूप निर्धारित करने की मांग की है ताकि व्यवस्था पारदर्शी हो और खरीदारों को बिल्डर की किसी मनमानी का शिकार होने से बचाया जा सके। मांग है कि रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) कानून की तर्ज पर खरीदारों के हित संरक्षित किए जाएं।

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सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका कनार्टक के बेंगलुरु में डीएलएफ के वेस्टएंड हाइट्स के 62 खरीदारों ने दाखिल की है। इसमें यह आग्रह भी किया गया है कि राज्य सरकारों को यूनिफॉर्म एग्रीमेंट प्रारूप लागू कराने का निर्देश दिया जाए। ऐसी ही एक जनहित याचिका वकील अश्वनी उपाध्याय ने भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर रखी है, जिसमें उन्होंने बिल्डरों की मनमानी से परेशान खरीदारों का मुद्दा उठाते हुए मॉडल बिल्डर-बायर एग्रीमेंट और एजेंट-बायर एग्रीमेंट तय करने का निर्देश मांगा है। इन याचिकाओं पर सुनवाई की अभी कोई तिथि तय नहीं है लेकिन इनमें उठाए गए मुद्दे देश भर में फ्लैट खरीदने वाले लोगों की परेशानियों को उजागर करते हैं।

फ्लैट खरीदारों की याचिका में वादे के वर्षो बाद फ्लैट मिलने और किसी न किसी बहाने बिल्डर द्वारा ज्यादा रकम वसूलने का मुद्दा उठाया गया है। बिल्डर-बायर एग्रीमेंट के तहत खरीदार समय से फ्लैट की किस्त चुकाने में चूक जाता है तो उसे 18 प्रतिशत की दर से ब्याज चुकाना होगा। लेकिन अगर बिल्डर फ्लैट की डिलिवरी में देरी करता है तो वह सिर्फ पांच रुपये प्रति वर्गगज की दर से देरी का मुआवजा देगा। याचिका में खरीदारों ने उनसे वसूली गई ज्यादा कीमत भी वापस कराने की मांग की है क्योंकि बिल्डर ने रकम भुगतान के बाद प्रोजेक्ट की लागत 51 प्रतिशत घटा दी। कहा गया है कि 2009 में परियोजना लागत 536 करोड़ थी, जिसे बिल्डर ने खरीदारों से रकम एकत्र करने के बाद वर्ष वर्ष 2012 में 264 करोड़ कर दिया। उनकी मांग है कि बिल्डर द्वारा टैक्स अदायगी के नाम पर वसूली गई रकम भी उन्हें वापस दिलाई जाए। याचिका में बिल्डर के साथ हुए करार की मनमानी शर्तो को अनुचित अनुचित कारोबारी गतिविधि बताया गया है।


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