जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। निजीकरण को लेकर इस बार केंद्रीय बजट में बहुत कोई 'बिग टिकट' घोषणा होने की संभावना कम ही है। वैसे भी मोदी सरकार के इस कार्यकाल का प्रदर्शन निजीकरण के मोर्चे पर बहुत खास नहीं रहा है। कोरोना महामारी और वैश्विक माहौल एक बड़ी वजह है लेकिन यह सच है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2019-20 के बाद से विनिवेश का जो भी लक्ष्य रखा है वह हासिल नहीं हो सका है।
सरकारी बैंकों के निजीकरण पर कदम बढ़ाये जाए
चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकारी कंपनियों को बेच कर 65 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य बजट प्रपत्र में रखा गया था जबकि अभी तक 31 हजार करोड़ रुपये का लक्ष्य हासिल हुआ है। यही नहीं सरकारी क्षेत्र के बैंक, बीमा व तेल कंपनियों के निजीकरण की जो घोषणा की गई थी उन्हें भी अधूरा छोड़ दिया गया है।
विनिवेश और निजीकरण को लेकर सरकार की रफ्तार धीमी होने के पीछे एक वजह यह भी बताया जा रहा है कि वर्ष 2023 में नौ राज्यों में चुनाव हैं और इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक जैसे बड़े राज्य भी शामिल हैं। अगले वर्ष आम चुनाव भी है।
कांग्रेस व दूसरी विपक्षी पार्टियां सरकारी कंपनियों के निजीकरण को लगातार चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश में है। संकेत इस बात के हैं कि कांग्रेस की तरफ से इन चुनावों में पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) और निजीकरण का विरोध एक बड़ा मुद्दा होगा।
कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान मोदी सरकार के निजीकरण की नीति का कई बार विरोध कर चुके हैं। इसके अलावा पूर्व में भी हमने देखा है कि किस तरह से सरकारी क्षेत्र के दो बैंकों और एक बीमा कंपनी का बड़ा ऐलान इसलिए आगे नहीं बढ़ सका कि हर वर्ष किसी न किसी बड़े राज्य में चुनाव की वजह से इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दिया गया। इस बारे में वर्ष 2021-22 के आम बजट में घोषणा हुई थी।
नीति आयोग की तरफ से किस तरह से सरकारी बैंकों के निजीकरण पर कदम बढ़ाये जाए, इसका रोडमैप भी तैयार किया गया लेकिन सरकार की तरफ से कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया जा सका है। हालांकि काफी मशक्कत के बाद आइडीबीआइ बैंक के निजीकरण का मामला जरूर आगे बढ़ा है और इसकी प्रक्रिया फरवरी-मार्च, 20223 में ही पूरा होने की उम्मीद है। वैश्विक हालात भी एक बड़ी वजह है कि निजीकरण से जुड़ी सरकार की कुछ बड़ी घोषणाएं परवान नहीं चढ़ सकी।
इसमें सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) भी है। नवंबर, 2019 में केंद्रीय कैबिनेट ने इस बारे में नीतिगत फैसला किया था लेकिन उसके बाद पहले कोरोना और फिर यूक्रेन-रूस युद्ध से ऊर्जा सेक्टर की स्थिति ने कई तरह की दिक्कतें पैदा कर दी।
मई, 2022 में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने बीपीसीएल में विनिवेश की प्रक्रिया ही टाल दी। सरकार पिछले वित्त वर्ष के दौरान एयर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया को पूरा करने में निश्चित तौर पर सफल रही थी लेकिन इससे राजस्व के लिहाज से कोई खास उपलब्धि नहीं माना जा सकता।
वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के लिए नई सार्वजनिक लोक उपक्रम नीति का ऐलान किया था जिसमें सिर्फ चार सेक्टर को रणनीतिक मानते हुए अन्य सभी सेक्टरों में सरकारी उपक्रमों को बंद करने का रास्ता साफ कर दिया है।
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ये चार सेक्टर हैं परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष व रक्षा, यातायात व संचार, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला व खनिज और अंतिम है बैं¨कग, बीमा व वित्तीय सेवाएं। बताते चलें कि वर्ष 2016 के बाद से केंद्र सरकार की तरफ से सार्वजनिक क्षेत्र के 35 इकाइयों की रणनीतिक बिक्री (कंपनी की परिसंपत्तियों समेत उनका प्रबंधन भी निजी सेक्टर को देना) का फैसला किया गया है लेकिन तकरीबन दर्जन भर उपक्रमों में ही यह प्रक्रिया पूरी हो पाई है।

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