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मध्य प्रदेश में गैर भाजपाई वोटों को लामबंद करने की कवायद में है बसपा

मध्य प्रदेश में पांच माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा विरोधी वोट को लामबंद करने की कवायद तेज हो गई है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 03 Jun 2018 11:08 AM (IST)Updated: Sun, 03 Jun 2018 06:14 PM (IST)
मध्य प्रदेश में गैर भाजपाई वोटों को लामबंद करने की कवायद में है बसपा

भोपाल [नई दुनिया ब्यूरो]। मध्य प्रदेश में पांच माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा विरोधी वोट को लामबंद करने की कवायद तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के असर वाले जिलों में कांग्रेस ने बसपा से समझौता के प्रयास तेज कर दिए हैं। 2013 के चुनाव में बसपा 4 सीटें जीतकर करीब एक दर्जन सीटों पर दूसरे स्थान पर थी। यही वजह है कि बसपा की ताकत को देखते हुए कांग्रेस ने वोटों का बिखराव रोकने का निर्णय किया है।

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बसपा के प्रभाव वाले जिले

पिछले चुनाव में मुरैना जिले के अंबाह और दिमनी में बसपा ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा रैगांव (सतना) और मनगवां (रीवा) सीट भी उसके खाते में आईं। रीवा जिला मुख्यालय पर बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर था। 12-13 सीटें ऐसी थीं जहां बसपा मामूली अंतर से ही पीछे रही। इनके अलावा सीधी, सिंगरौली, कोलारस, श्योपुर, अशोकनगर, भिंड, ग्वालियर ग्रामीण, दतिया, रीवा, सतना, छतरपुर और टीकमगढ़ जिले की सीटों पर बसपा नतीजे प्रभावित करने की स्थिति बना चुकी है।

बसपा को बढ़त दिलाने वाले फैक्टर

बसपा का जनाधार बढ़ाने वाले कारणों में मुख्य रूप से उसका जातिगत वोट बैंक है। खासतौर पर अनुसूचित जाति वर्ग के जाटव और अहिरवार समाज में उसकी जबरदस्त पैंंठ है। मुरैना, भिंड और विंध्य के कुछ जिलों में बसपा ने सवर्ण जातियों विशेष रूप से ब्राह्मण समाज को अपने टिकट पर मैदान में उतारा। परशराम मुद्गल, बलवीर दंडोतिया अथवा रीवा में केके गुप्ता इसके उदाहरण हैं। कुछ और सीटों पर बसपा ने यह प्रयोग दोहराया। इससे क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण उसके पक्ष में रहे। बसपा का टिकट पाने वाले सवर्ण नेता की पृष्ठभूमि कांग्रेस अथवा भाजपा की रही जिससे उसे स्थानीय और पूर्व पार्टी के जनाधार का लाभ मिला। जातिगत वोट के अलावा बसपा का पारंपरिक वोट भी उसके खाते में जुड़ गया। इस तरह की राजनीतिक परिस्थितियों में त्रिकोणीय अथवा चतुष्कोणीय मुकाबले की स्थिति में बसपा फायदे में रही।

आगामी चुनाव की रणनीति

मप्र की विंध्य, बुंदेलखंड, भिंड, मुरैना और ग्वालियर अंचल की सीटों पर विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने  के  लिए गैर भाजपाई दलों को एकजुट करने की कवायद तेज हो गई है। नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष इसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, बसपा सुप्रीमो मायावती से उनके राजनीतिक संबंधों के चलते वह समझौते की जमीन तैयार करने में जुटे हैं। बसपा के राजनीतिक विश्लेषक ऐसी सीटों पर ज्यादा फोकस कर रहे है जहां उसका मजबूत जनाधार है और पिछली बार मतों के थोड़े अंतर से उनकी पार्टी पिछड़ गई थी। संभावित सीटों पर राजनीतिक समीकरण खंगाले जा रहे हैं।

गैर भाजपाई दलों को करेंगे एकजुट

मध्‍यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग अध्‍यक्ष मानक अग्रवाल का कहना है कि यहां कांग्रेस गैर भाजपाई दलों को एकजुट करके ही चुनाव लड़ेगी। इस संबंध में प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पहले ही स्पष्ट शब्दों में यह बात कह चुके हैं। हम वोटों का बिखराव नहीं होने देंगे।

निर्णायक भूमिका निभाएगी बसपा 

वहीं मध्‍यप्रदेश बसपा इकाई के अध्‍यक्ष नर्मदा प्रसाद का कहना है कि  2013 में हम डेढ़ दर्जन सीटों पर जीत के बिल्कुल करीब थे। इस बार प्रदेश के कई जिलों में बसपा चुनावी नतीजों से चौंकाएगी और अपना खाता खोलेगी। सरकार बनाने में बसपा निर्णायक भूमिका निभाएगी।

2013 में यह था मिले मतों का प्रतिशत

गौरतलब है कि भाजपा को कुल 1 करोड़ 51लाख 89 हजार 894 वोट, कांग्रेस को 1 करोड़ 23 लाख 14 हजार 196 वोट और बसपा को 21लाख 27 हजार 959 वोट मिले थे।

भाजपा - 44.85 प्रतिशत

कांग्रेस- 36.38 प्रतिशत

बसपा- 6.29 प्रतिशत


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