Move to Jagran APP

अनूठी परंपरा: छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में दूल्हा नहीं, बारात लेकर जाती है दुल्हन

भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से संरक्षति माड़िया जनजाति ने आज भी अपनी पुरातन संस्कृति और परंपराओं को सहेजकर रखा है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 16 Apr 2020 04:10 PM (IST)Updated: Thu, 16 Apr 2020 06:31 PM (IST)
अनूठी परंपरा: छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में दूल्हा नहीं, बारात लेकर जाती है दुल्हन
अनूठी परंपरा: छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में दूल्हा नहीं, बारात लेकर जाती है दुल्हन

अनिल मिश्रा, जगदलपुर। अबूझमाड़ में निवासरत माड़िया जनजाति की आदिम संस्कृति आज भी जीवंत है। इस संस्कृति की कई विशिष्टताएं हैं। इन्हीं में से एक है विवाह की परंपरा। इस जनजाति में दुल्हन अपनी बारात लेकर दूल्हे के घर जाती है।

loksabha election banner

आदिवासी बहुल बस्तर संभाग में 44 सौ वर्ग किमी मेें विस्तृत अबूझमाड़ के जंगल आज भी अबूझ ही बने हुए हैं। ऊंचे पहाड़ों, सघन वनों, कल कल बहते झरनों और नदियों से घिरे अबूझमाड़ में माड़िया जनजाति निवास करती है। विशेष रूप से संरक्षित माड़िया जनजाति ने आज भी अपनी पुरातन संस्कृति और परंपराओं को सहेजकर रखा है। माड़िया जनजाति को दो उपजातियों में विभक्त किया गया है। अबूझमाड़िया व बायसन हार्न माड़िया।

अबूझमाड़िया जनजाति ऊंचे पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है जबकि बायसन हार्न माड़िया इंद्रावती नदी के किनारे। बायसन हार्न जनजाति का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि ये परंपरागत नृत्य के दौरान बायसन की सींग लगाकर नाचते हैं। यौन शिक्षा व सांस्कृतिक गतिविधि के केंद्र के रूप में मशहूर घोटुल प्रथा अबूझमाड़ के इलाके में ही पाई जाती है।

वधु पाने के लिए वर को चुकाना पड़ता है मूल्य

वधु पाने के लिए वर को उसका मूल्य चुकाना पड़ता है। समाज के लोग आपस में बैठक कर मूल्य तय करते हैं। अगर वर मूल्य अदा करने में असमर्थ रहता है तो उसे अपने ससुर के घर काम करके यह कर्ज उतारना पड़ता है। काम करवाने की यह अवधि तीन से पांच साल तक होती है। माड़िया जनजाति में विवाहित जोड़े को पहले एक साल तक आपस में संबंध बनाने की अनुमति नहीं होती। माड़िया जनजाति में युवतियों को अपना वर चुनने की पूरी आजादी होती है। यहां व्यवस्था मातृसत्तात्मक है।

विवाह की रजामंदी होने के बाद लड़की वाले लड़के के घर जाते हैं। यहां उन्हें विवाह के आयोजन के लिए बनी विशेष झोपड़ी में ठहराया जाता है। रात के खाने- पीने में महुए की शराब, मुर्गा व सूअर का मांस अनिवार्य है। अगले दिन पूरे गांव की दावत होती है। इस अवसर पर माड़िया समूह नृत्य का आयोजन किया जाता है जिसमें दुल्हन अंतिम बार भाग लेती है। इसके बाद दुल्हन का पिता उसे दूल्हे के घर ले जाता है और कहता है कि अब वह अकेले मायके नहीं आ सकती।

विधवा विवाह व पति बदलने की आजादी

माड़िया जनजाति में महिला अगर अपने पति से खुश न हो तो वह बिना किसी विरोध के दूसरा पति चुन सकती है। शर्त यह होती है दूसरा पति पहले पति को विवाह के लिए खर्च की गई रकम अदा कर दे। इस जनजाति में अनैतिक संबंधों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाता। विधवा विवाह की भी अनुमति होती है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.