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BooK Review : जीवन की जटिलता को सुलझाती पद्धति जेन, एक सरल जीवनशैली का है आधार

वास्तव में जेन एक सरल जीवनशैली का आधार है। लेखक ने उसी आधार को विस्तार देते हुए यह पुस्तक लिखी है। चार खंडों में यह पुस्तक सौ विभिन्न सूत्रों को समाहित किए हुए है जो मानव के व्यक्तिगत सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन को स्पर्श करते हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Sun, 26 Sep 2021 11:01 AM (IST)Updated: Sun, 26 Sep 2021 11:01 AM (IST)
वास्तव में जेन एक सरल जीवनशैली का आधार है

प्रणव सिरोही। यदि आप इस प्रश्न का उत्तर खोजने के प्रयोजन में जुटें कि-विश्व में सबसे बेहतर जीवन प्रत्याशा दर किस देश में है? तो संभवत: शीर्ष तीन देशों में कम से कम एक नाम जापान का अवश्य आएगा। ऐसे में जापानी जीवनशैली को लेकर एक उत्सुकता जगना स्वाभाविक है कि जापानियों को ऐसे कौन-से रहस्य मालूम हैं कि जटिलताओं में उलझे मानव जीवन का इतना सरस और सुगम हो पाना भी संभव है। जेन बौद्ध मठ के एक प्रमुख भिक्षु शुनम्यो मसुनो की पुस्तक 'जेन-सरल जीवन जीने की कला' इन्हीं सूत्रों पर कुछ प्रकाश डालती है।

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वास्तव में जेन एक सरल जीवनशैली का आधार है। लेखक ने उसी आधार को विस्तार देते हुए यह पुस्तक लिखी है। चार खंडों में यह पुस्तक सौ विभिन्न सूत्रों को समाहित किए हुए है, जो मानव के व्यक्तिगत, सामाजिक एवं व्यावसायिक जीवन को स्पर्श करते हैं। यूं तो मसुनो इसे जापानी जीवन पद्धति बताते हैं, लेकिन यह भारतीय संस्कृति और दर्शन से बहुत अधिक साम्य रखती है। जैसे मसुनो कहते हैं कि परिवर्तन से भयभीत न हों तो हमारी संस्कृति में परिवर्तन को प्रकृति का शाश्वत नियम कहा गया है। इसी प्रकार जेन में उल्लिखित है कि आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का परित्याग ही हितकारी है, इसी संदर्भ में भारतीय परंपरा में अपरिग्रह की अवधारणा रही है।

उपयोगिता, स्वच्छता, कृतज्ञता, चिंता, लचीलापन, इच्छाओं पर अंकुश, लोभ-क्रोध-अज्ञान से मुक्ति, प्राणायाम की महत्ता से लेकर समय प्रबंधन पर जेन की शिक्षाएं कहीं न कहीं भारतीय दर्शन एवं संस्कृति का ही प्रतिबिंब लगती हैं। ये बिंदु पाठक को स्मरण कराते हैं कि यही बातें हमारे मनीषियों ने कही हैं। जैसे व्यस्तता और आपाधापी को लेकर जो बात मसुनो कहते हैं, कुछ वैसा ही स्वामी विवेकानंद ने इन शब्दों में कहा था कि 'जो हमेशा कहे कि मेरे पास समय नहीं, असल में वह व्यस्त नहीं, बल्कि अस्त-व्यस्त है।

फिर भी अपने विचारों और उनके प्रस्तुतीकरण में यह पुस्तक अनूठी है। लेखक ने बहुत सरलता से अपनी बातों को समझाया है। कई स्थानों पर इसके लिए बोध कथाओं या जीवन के उदाहरणों का प्रयोग किया है। ऐसे कई उदाहरण बहुत सामयिक और स्वयं से जुड़े हुए लगते हैं। जैसे भोजन को लेकर वह कहते हैं, 'नाश्ते के समय आपको इतनी जल्दी होती है कि आप घर के दरवाजे से बाहर निकलते-निकलते नाश्ता करते हैं। दोपहर का खाना सहकर्मियों के साथ बातें करते हुए खाते हैं और रात का खाना टीवी देखते हुए। इसमें खाने का काम पूरी तरह उपेक्षित रहता है। यह भोजन के भाव और जीवन के आनंद का अवमूल्यन करता है। इसी प्रकार वह कहते हैं कि यदि आपका घर और दफ्तर एक ही इमारत में हो तो यह आपको सुविधाजनक भले ही लगे, लेकिन यह घर से दफ्तर के बीच की यात्रा ही होती है, जो आपको कामकाज की दूसरी मनोदशा के लिए तैयार करती है। संप्रति 'वर्क फ्राम होम' की उबाऊ होती कार्य संस्कृति के संदर्भ में यह विचार समीचीन प्रतीत होता है।

प्रत्येक पाठ का आरंभ बाएं पृष्ठ पर एक विचार एवं उसके चित्रांकन और दाएं पृष्ठ पर उसके विस्तार को समर्पित किया गया है। इस प्रकार आमने-सामने के पृष्ठों पर एक विचार की समग्र प्रस्तुति से पुस्तक का संयोजन बहुत आकर्षण एवं प्रवाह लिए हुए है। पुस्तक बताती है कि जापान में अभिव्यक्ति के लिए शब्दों से अधिक चित्रों के महत्व का क्या अर्थ है? इसके साथ ही आप शिनरेई, जाजेन, उजीमीचू, कुआन, शिकानतजा, जाजेनकाई, होजो, कारेसानसुई, शोजो और टोकोनामा जैसे जापानी शब्दों के अर्थ एवं जापानी संस्कृति से भी परिचित होते जाते हैं। 'द्वार' का 'द् वार' के रूप में टंकण को छोड़कर कोई गलती नहीं अखरती। रचना भोला 'यामिनी' का अनुवाद भी बहुत बढ़िया है। वस्तुत: 'सरल जीवन जीने के लिए बस अपनी आदतों और नजरिये में बदलाव' का आह्वान करने वाली यह पुस्तक किसी परिचित को भेंट करने के दृष्टिकोण से भी एक अच्छा विकल्प है।

पुस्तक : जेन: सरल जीवन जीने की कला

लेखक : शुनम्यो मसुनो

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस

मूल्य : 350 रुपये


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