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Book Review : युवा पीढ़ी का प्रेरित होना राष्ट्र की उन्नति के लिए सर्वाधिक आवश्यक कारक

पुस्तक में लेखक ने स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं से प्राप्त सबक को कुशलता से संजोया है। पुस्तक में औसतन डेढ़ से दो पृष्ठों के छोटे-छोटे 77 अध्याय हैं जिनके आरंभ में दी गई सूक्तियां बहुत ही व्यावहारिक और प्रेरणास्पद हैं।

By Neel RajputEdited By: Published: Sun, 26 Sep 2021 12:01 PM (IST)Updated: Sun, 26 Sep 2021 12:01 PM (IST)
Book Review : युवा पीढ़ी का प्रेरित होना राष्ट्र की उन्नति के लिए सर्वाधिक आवश्यक कारक
पुस्तक में लेखक ने स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं से प्राप्त सबक को कुशलता से संजोया है

कन्हैया झा। वर्तमान में मनुष्य स्वयं को भौतिकवादी परिवेश में घिरा हुआ पाता है। साथ ही उसका दायरा अपने और अपने परिवार के इर्द-गिर्द सिमटता जा रहा है। उपभोक्तावाद की बढ़ती प्रवृत्ति के बीच आज की पीढ़ी में सही-गलत, सत्य-असत्य, नैतिकता-अनैतिकता, सदाचार-दुराचार आदि को जानने और समझने की क्षमता कम होती जा रही है। विविधताओं को भिन्नता यानी भेद समझा जा रहा है। ऐसे में मानवीय संवेदनाएं बिखर न जाएं, इसकी हम सभी को चिंता करनी होगी। इस लिहाज से इस पुस्तक की विषय-वस्तु सार्थक कही जा सकती है, जिसमें लेखक ने अपने अनुभवों से नई पीढ़ी को कुशल व्यक्तित्व निर्माण के साथ-साथ स्वार्थ से नि:स्वार्थ यानी समाज और राष्ट्र की ओर बढ़ाने का बेहतर प्रयत्न किया है।

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आज देश-समाज में युवाओं के समक्ष व्यावहारिक जीवन में जिस प्रकार की समस्याएं आ रही हैं, उसे ध्यान में रखते हुए लेखक ने खासतौर पर उनके लिए ही यह पुस्तक लिखी है। युवा पीढ़ी का प्रेरित होना और सही दिशा में ऊर्जावान होना किसी राष्ट्र की उन्नति के लिए सर्वाधिक आवश्यक कारक है। पुस्तक में लेखक ने स्वयं के जीवन में घटित घटनाओं से प्राप्त सबक को कुशलता से संजोया है। पुस्तक में औसतन डेढ़ से दो पृष्ठों के छोटे-छोटे 77 अध्याय हैं, जिनके आरंभ में दी गई सूक्तियां बहुत ही व्यावहारिक और प्रेरणास्पद हैं। मसलन- स्वयं द्वारा निर्धारित दायित्व का निर्धारण सबसे कठिन काम है, क्योंकि भटकाव इसका मूल कारण है, फिर भी दृढ़ इच्छाशक्ति से यह सरल हो सकता है। व्यक्तित्व का विकास सदैव समूह में ही होता है, यह निजता का अथवा व्यक्तिगत विषय कदापि नहीं है।

कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि एक ऐसे दौर में, जब व्यक्ति निरंतर समाज के एक बड़े हिस्से से कटता जा रहा है या उसका दायरा सिमटते हुए डिजिटल प्रारूप में परिवर्तित होता जा रहा है, ऐसे में हमें यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए, जिसमें समग्र व्यक्तित्व निर्माण में समाज के विभिन्न अवयवों की भूमिका के बारे में स्पष्टता से विविध आयामों को दर्शाया गया है।

पुस्तक : व्यक्ति-निर्माण से राष्ट्र-निर्माण

लेखक : अरविंद पांडेय

प्रकाशक : प्रभात पेपरबैक्स

मूल्य : 200 रुपये


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