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छत्‍तीसगढ़ में इस मछली को राज मछली कहकर पूजा जाता है, जानें इस बारे में

बोध मछली की आदिवासी समुदाय पूजा जाता है। दरअसल यह कैटफिश हैं जिसे बस्तर में बोध या गुंज मछली कहा जाता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 11:53 PM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 11:53 PM (IST)
छत्‍तीसगढ़ में इस मछली को राज मछली कहकर पूजा जाता है, जानें इस बारे में
छत्‍तीसगढ़ में इस मछली को राज मछली कहकर पूजा जाता है, जानें इस बारे में

हेमंत कश्यप, जगदलपुर। भारत सहित दुनिया के कई क्षेत्रों में काफी आबादी मछली के ऊपर निर्भर है। वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में सिर्फ बस्तर की इंद्रावती नदी में पाई जाने वाली तथा तेजी से खत्म हो रही बोध मछली को राज मछली का दर्जा देकर इसे संरक्षित किया जाना जरूरी है। इस मछली की आदिवासी समुदाय पूजा जाता है। दरअसल, यह कैटफिश हैं जिसे बस्तर में बोध या गुंज मछली कहा जाता है। छोटी को बोध और गुंज तथा बड़ी को भैसा बोध कहा जाता है। यह मछली भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के अलावा छत्तीसगढ़ की इंद्रावती नदी में चित्रकोट वाटरफॉल के नीचे से लेकर गोदावरी संगम के मध्य तक पाई जाती है। इस मछली का वजन 150 किलो किलोग्राम तक पाया गया है। 

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जात्रा आयोजित कर बोध मछली की पूजा करते हैं मछुआरे 

बोध मछली को बस्तरवासी सम्मान दिया जाता है। इसके नाम पर ही बारसूर के पास बोध नामक गांव है। लंबित पनबिजली परियोजना का नाम भी बोधघाट रखा गया है। जगदलपुर शहर की एक कॉलोनी और थाना का नाम बोध मछली के नाम पर क्रमश: बोधघाट कॉलोनी और बोधघाट थाना हैं। यह मछली आक्रामक होती है और भूखी होने पर कभी- कभी नदी में उतरे व्यक्ति पर भी हमला कर देती है, इसलिए जान माल की सुरक्षा के हिसाब से इंद्रावती नदी किनारे बसे दर्जनों गांवों के रहवासी बोध मछली की पूजा करते हैं। बोध मछली के नाम पर चित्रकोट जलप्रपात के पास एक खोह में सैकड़ों वर्ष पुराना बोध मंदिर है। यहां कूड़क जाति के मछुआरे प्रति वर्ष जात्रा आयोजित कर बोध मछली की पूजा करते हैं। 

अब जमकर हो रहा शिकार

बस्तर के अधिकांश रहवासी इस मछली को नहीं खाते परंतु बेचने के लिए नदी से पकड़ते जरुर हैं। चित्रकोट, बारसूर, बिंता घाटी, मुचनार, भैरमगढ़ आदि इलाके में इस मछली का जमकर शिकार होता है। बारसूर, लोहंडीगुड़ा, मारडूम, जगदलपुर, गीदम बाजारों में यह बेचने के लिए लाई जाती है। उत्तर बस्तर के पखांजूर, कापसी के बाजारों में बोध मछली की जमकर बिक्री होती है। पखांजूर इलाके में इस मछली का मांस 500 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है। पखांजूर क्षेत्र में बढ़ी मांग के चलते ही बोध मछली का शिकार तेजी से बढ़ा है, इसलिए यह इंद्रावती नदी में कम होने लगी है।

बोध को संरक्षित करना जरूरी 

प्रदेश सरकार ने विभिन्न विशेषताओं और दुर्लभता के आधार पर ही साल, पहाड़ी मैना, वनभैंसा को क्रमश: राजवृक्ष, राजपक्षी और राजपशु का दर्जा दिया है। बोध मछली की संकटग्रस्त स्थिति को देखते हुए इसे संरक्षित करना बेहद जरूरी है। बोध मछली को बचाने का बेहतर तरीका यह है कि इंद्रावती में पाई जाने वाली इस मछली को राज्य मछली का दर्जा देकर इसके संरक्षण व संवर्धन की विशेष योजना बनाए जाने की मांग उठने लगी है। 


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