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वेतन रिपोर्ट के खिलाफ 27 को यूनियनों का काला दिवस

केंद्रीय कर्मचारियों से जुड़े श्रम संगठनों ने सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। केंद्रीय कर्मचारियों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए विभिन्न यूनियनों व महासंघों के मेल से बनी संस्था-नेशनल ज्वाइंट काउंसिल (एनजेसीए) ने रिपोर्ट के विरोध में 27 नवंबर को काला दिवस मनाने

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2015 08:11 PM (IST)Updated: Fri, 20 Nov 2015 08:22 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्रीय कर्मचारियों से जुड़े श्रम संगठनों ने सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। केंद्रीय कर्मचारियों के अधिकारों के लिए लड़ने के लिए विभिन्न यूनियनों व महासंघों के मेल से बनी संस्था-नेशनल ज्वाइंट काउंसिल (एनजेसीए) ने रिपोर्ट के विरोध में 27 नवंबर को काला दिवस मनाने तथा राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन का एलान किया है।

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एनजेसीए के सचिव शिवगोपाल मिश्रा ने बयान में सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट को एकदम वाहियात और कर्मचारियों के हितों के विरुद्ध बताया। उन्होंने कहा रिपोर्ट खास तौर पर इसलिए और भी आपत्तिजनक है क्योंकि जहां पीएसयू व बैंकों का वेतन पांच साल में पुनरीक्षित होता है वहीं केंद्रीय कर्मचारियों का वेतन पुनरीक्षण दस साल में होता है।

इसके बावजूद आयोग ने यूनियनों की एक बात नहीं सुनी है। एक तो न्यूनतम वेतन महज 18 हजार रखा गया है, उस पर न्यू पेंशन स्कीम, जीपीएफ, सीजीईआइजीएस आदि की कटौतियां लागू की गई हैं जिनसे वास्तविक वेतन ऋणात्मक बनेगा।

जनता को 23.5 फीसद की वृद्धि कहकर गुमराह किया जा रहा है। जबकि वास्तविक बढ़ोतरी केवल 14.29 फीसद की बनती है। न्यूनतम वेतन महज 18 हजार रखा गया है, जबकि सचिव स्तर के अधिकारियों का वेतन सवा दो लाख और कैबिनेट सचिव का वेतन ढाई लाख रुपये कर दिया गया है।

इस तरह न्यूनतम व अधिकतम वेतन के बीच लगभग चौदह गुने का अंतर हो गया है। जबकि काउंसिल ने आयोग को इस अंतर को आठ गुना से ज्यादा न रखने की सलाह दी थी। हाउस रेंट एलाउंस की दरें घटा दी गई हैं और अनेक अन्य भत्तों को खत्म करने की सिफारिश की गई है। केंद्रीय कर्मचारी पूरी तरह क्षुब्ध हैं।


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