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शिवसेना से मजबूत लग रहा भाजपा का सामाजिक गणित

करीब 25 वर्षो तक साथ निभानेवाले अपने ही साथी दल से लोहा लेने जा रही शिवसेना इस बार सामाजिक गणित में भाजपा से पिछड़ती दिखाई दे रही है। अब तक शिवसेना और भाजपा एक-दूसरे की पूरक बनकर लड़ती रही हैं। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में दोनों आमने-सामने हैं। भाजपा ने हाल के लोकसभा चुनाव से पह

By Edited By: Published: Sun, 28 Sep 2014 08:01 PM (IST)Updated: Sun, 28 Sep 2014 08:01 PM (IST)

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। करीब 25 वर्षो तक साथ निभानेवाले अपने ही साथी दल से लोहा लेने जा रही शिवसेना इस बार सामाजिक गणित में भाजपा से पिछड़ती दिखाई दे रही है।

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अब तक शिवसेना और भाजपा एक-दूसरे की पूरक बनकर लड़ती रही हैं। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में दोनों आमने-सामने हैं। भाजपा ने हाल के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथ जुड़े तीन छोटे दलों और शिवसेना के साथ रही रिपब्लिकन पार्टी (अठावले) को साथ लेकर अपना सामाजिक गणित शिवसेना से मजबूत कर लिया है। भाजपा और शिवसेना दोनों का जनाधार मूलत: शहरी क्षेत्रों में माना जाता रहा है। इसमें भी शिवसेना ज्यादातर मराठीभाषियों एवं भाजपा गुजरातियों-मारवाड़ियों, उच्चवर्ण के मराठियों एवं ¨हदीभाषियों के बीच पैठ रखती है। 1985 के बाद भाजपा ने माली, धनगर और वंजारी समाज को अपने साथ जोड़कर माधव समीकरण को मजबूत किया था। इस बार रिपब्लिकन नेता रामदास अठावले सहित चार छोटे दलों को जोड़कर उसने ग्रामीण क्षेत्रों में अपने सामाजिक समीकरण को और मजबूती प्रदान की है। खासतौर से स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे का उपयोग इस समीकरण को और मजबूत करने के लिए किया जा रहा है।

भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव से पहले स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता सांसद राजू शेट्टी, राष्ट्रीय समाज पक्ष के नेता महादेव जानकर एवं शिवसंग्राम सेना के मराठा नेता विनायक मेटे जुड़ गए थे। इन तीनों दलों का जनाधार पूरे महाराष्ट्र में भले न हो, लेकिन अपने सीमित क्षेत्रों में ये अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं। जैसे राजू शेट्टी पश्चिम महाराष्ट्र के गन्ना और दूध डेयरी से जुड़े किसानों में लोकप्रिय हैं। जानकर धनगर समाज के नेता हैं और विनायक मेटे मराठवाड़ा के मराठा समाज में पैठ रखते हैं। अब अठावले के भी भाजपा के साथ जुड़ जाने के बाद इन चारों दलों से भाजपा को सम्मिलित रूप से 14 फीसद मतों का फायदा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसके अलावा राज्य में जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित 25 सीटों पर भी इस बार भाजपा की पकड़ मजबूत दिख रही है। क्योंकि भाजपा अपने दो जनजातीय सांसदों डॉ. हिना गावित एवं चिंतामणि वनगा के जरिए इन सीटों पर अपनी पकड़ बनाने में लगी है।

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