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सत्ता की सियासत शुरू, निकलने लगा राम मंदिर का जिन्न

चुनाव आते ही भाजपा को राम मंदिर का भूत याद आने लगता है। इलाहाबाद का कुंभ भाजपा के सियासत को रास्ता दिखा रहा है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपने बयान के जरिए भाजपा के नेताओं को रोड मैप बता दिया। राजनाथ सिंह ने कहा है कि राम मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था है। राम जन्मभूमि पर ही राम मंदिर बनना चाहिए। सत्ता की सियासत में धर्म

By Edited By: Published: Thu, 07 Feb 2013 12:50 PM (IST)Updated: Thu, 07 Feb 2013 04:31 PM (IST)
सत्ता की सियासत शुरू, निकलने लगा राम मंदिर का जिन्न

नई दिल्ली। चुनाव आते ही भाजपा को राम मंदिर का भूत याद आने लगता है। इलाहाबाद का कुंभ भाजपा के सियासत को रास्ता दिखा रहा है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपने बयान के जरिए भाजपा के नेताओं को रोड मैप बता दिया। राजनाथ सिंह ने कहा है कि राम मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था है। राम जन्मभूमि पर ही राम मंदिर बनना चाहिए।

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सत्ता की सियासत में धर्म और राजनीति का कॉकटेल भाजपा से बेहतर कौन जानता है? दो सांसदों वाली पार्टी राम मंदिर आंदोलन के जरिए 180 सांसदों तक पहुंच गयी। भाजपा को केंद्र में पहुंचाने में राम मंदिर मुद्दा अहम रहा है। कहते हैं कि काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती । यूपी में विधानसभा चुनावों में लगातार हार और पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को जनता ने नकार दिया। इसके बावजूद भाजपा धारा 370 और राम मंदिर मुद्दा को समय-समय पर जिन्दा करती रहती है। गुजरात विधानसभा को भाजपा ने लिटमस टेस्ट के रूप में लिया है। भाजपा भावनात्मक मुद्दों के साथ ही विकास की राजनीति करना चाह रही है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण वुधवार का दिन रहा। दिल्ली में मोदी पैकेजिंग और ब्रांड की बात करते हैं। युवाओं को देश की ताकत बताते हुए गुजरात के विकास का गुणगान करते हैं तो कुंभ में राजनाथ संतों को अपना नाथ बनाने में तुले हैं। मंदिर निमार्ण के लिए संतों से आशीर्वाद मांगते हुए भाजपा अध्यक्ष ने विश्व हिंदु परिषद को भी साधने की कोशिश की। भाजपा अध्यक्ष वीएचपी के जरिए हिन्दुत्व की भावना जगाने की कोशिश कर रहे हैं तो मोदी खुद को विकास पुरूष के ब्रांड रूप में स्थापित करने की लगातार कोशिश में जुटे हुए हैं। इतना तो अब तय लगता है कि मोदी को यदि भाजपा ने पीएम के रूप में प्रोजेक्ट किया तो राम मंदिर और विकास दोनों ही अहम मुद्दा होगा। खैर, यह तो भविष्य के गर्भ में है कि जनता राम मंदिर को अपना रही है या नकार रही है। चलिए हम आपको बता रहे हैं क्या है अयोध्या विवाद?

-क्या है विवाद?

हिंदुओं के मुताबिक भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुजारियों से हिंदू ढांचे या निर्माण को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। 1940 से पहले, मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहा जाता था। हिंदुओं का तर्क है कि बाबर के रोजनामचा में विवादित स्थल पर मस्जिद होने का कोई जिक्र मौजूद नहीं है। लेकिन मुस्लिम समुदाय ऐसा नहीं है। उनके मुताबिक बाबर ने जिस वक्त यहा पर आक्रमण किया और मस्जिद का निर्माण करवाया उस वक्त यहां पर कोई मंदिर मौजूद नहीं था।

मुस्लिम समुदाय के मुताबिक 1949 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मस्जिद में रामलला की मूर्तियां रखवाने पर अपनी गहरी नाराजगी जताई थी और इस बाबत सूबे के मुखिया जेबी पंत को एक पत्र भी लिखा था। लेकिन पंत ने उनकी सभी आशकाओं को खारिज करते हुए अपना काम जारी रखा था।

1908 में प्रकाशित इंपीरियल गजेट ऑफ इंडिया में भी कहा गया है कि इस विवादित स्थल पर बाबर ने ही 1528 में मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस ढांचे को लेकर होने वाले विवाद के कई पन्ने भारतीय इतिहास में दर्ज किए जा चुके हैं। 1883, 1885, 1886, 1905, 1934 में इस जगह पर विवाद हुआ और कुछ मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप भी करना पड़ा। आजाद भारत में 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाधी ने जब इस विवादित स्थल के ताले खोलने के आदेश दिए तो यह मामला एक बार फिर से तूल पकड़ा। प्रधानमंत्री ने यहां पर कुछ खास दिनों में पूजा करने की अनुमति दी थी।

1989 में विश्व हिंदू परिषद को यहां पर मंदिर के शिलान्यास की अनुमति मिलने के बाद यह मामला हाथ से निकलता हुआ दिखाई दे रहा था। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने रामजन्म भूमि के मुद्दे को भुनाया भी। अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण को लेकर रथ यात्रा शुरू की। छह दिसंबर को डेढ़ लाख कारसेवकों की भीड़ ने इस विवादित ढांचे को जमींदोज कर दिया। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की और प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। राज्य में इस सरकार की कमान कल्याण सिंह के हाथों में थी।

-मामले में कब क्या हुआ

- विवाद की शुरुआत साल 1987 में हुई। 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं। 1947 में भारत सरकार ने मुस्लिम समुदाय को विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया, जबकि हिंदू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा।

- विश्व हिंदू परिषद ने 1984 में मंदिर की जमीन को वापस लेने और दोबारा मंदिर का निर्माण कराने को एक अभियान शुरू किया।

- 1989 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। साप्रदायिक ज्वाला तब भड़की जब विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया। जब भारत सरकार के आदेश के अनुसार इस स्थल पर नए मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब मुसलमानों के विरोध ने सामुदायिक गुस्से का रूप लेना शुरू कर दिया।

- 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही यह मुद्दा साप्रदायिक हिंसा और नफरत का रूप लेकर पूरे देश में फैल गया। देश भर में हुए दंगों में दो हजार से अधिक लोग मारे गए। विवादित ढांचे के विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जाच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।

- 2003 में हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरात्ताव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले। 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 574 पेज की नक्शों और समस्त साक्ष्यों सहित एक रिपोर्ट पेश की गयी।

हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

12 सितंबर 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल बाबरी मस्जिद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस स्थल को राम जन्मभूमि घोषित कर दिया। हाईकोर्ट ने इस मामले में बहुमत से फैसला करते हुए तीन हिस्सों में बाट दिया।

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