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पावर के लिए पार्टी से किनारा

नई दिल्ली [अजय पांडेय]। दिल्ली विधानसभा की बैठकों में सत्ता पक्ष के खिलाफ सबसे बुलंद आवाज स्वास्थ्य मंत्री डा. अशोक कुमार वालिया के ठीक सामने वाली कुर्सी पर बैठने वाले हरशरण सिंह बल्ली की सुनाई देती थी। उनसे कुछ दूर पीछे बैठने वाले मोहम्मद आसिफ भी कांग्रेसी सरकार पर हमले का कोई मौका चूकते नहीं थे। कई मौको

By Edited By: Published: Thu, 14 Nov 2013 07:32 PM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2013 07:40 PM (IST)
पावर के लिए पार्टी से किनारा

नई दिल्ली [अजय पांडेय]। दिल्ली विधानसभा की बैठकों में सत्ता पक्ष के खिलाफ सबसे बुलंद आवाज स्वास्थ्य मंत्री डा. अशोक कुमार वालिया के ठीक सामने वाली कुर्सी पर बैठने वाले हरशरण सिंह बल्ली की सुनाई देती थी। उनसे कुछ दूर पीछे बैठने वाले मोहम्मद आसिफ भी कांग्रेसी सरकार पर हमले का कोई मौका चूकते नहीं थे। कई मौकों पर बदरपुर के विधायक रामसिंह नेताजी भी सत्ता पक्ष की मुखालफत करते नजर आते थे। आज ये सभी कांग्रेस में हैं। आसिफ और नेताजी पार्टी के उम्मीदवार बनाए जा चुके हैं और बल्ली का भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना प्राय: तय है।

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पूर्व विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी का कांग्रेस में आना लगभग पक्का हो गया था लेकिन अब वे बदरपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस के पार्षद मोहम्मद दानिश जनता दल के टिकट पर ओखला में कांग्रेस को चुनौती देंगे। कभी कांग्रेस के पार्षद रहे जगदीश प्रधान मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी हैं। गांधी नगर में शहरी विकास मंत्री अरविंदर सिंह लवली को भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनौती देने उतरे आर. सी. जैन कभी कांग्रेस के मंच से भाषण देते नजर आते थे। उधर, कृष्णा नगर में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार डा. हर्षवर्धन के खिलाफ कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए गए डा. वी. के. मोंगा कभी भाजपा के कद्दावार पार्षदों में गिने जाते थे।

दिल्ली विधानसभा के चुनावी मुकाबले में ऐसे नामों की कोई कमी नहीं है। कल तक भाजपा के लिए जीने मरने की कसमें खाने वाले आज कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, तो कांग्रसी पटका गले में लटकाए फिरने वाले आज भाजपा के उम्मीदवार हैं।

सियासी पंडितों की मानें तो, कांग्रेस और भाजपा के बीच होने वाली दिल्ली की सियासी लड़ाई में ऐसे नेताओं के पाला बदल से यह साफ हो गया है कि सत्ता के इस शहर में पार्टी नहीं, पावर ज्यादा मायने रखता है। नेताओं को जिस पार्टी में जाने से सत्ता पास आती दिखती है, वे उसकी दामन थाम लेते हैं। जाहिर तौर पर, इस पावर गेम में पार्टी की नीतियां, विचारधारा आदि की अहमियत कम होती जा रही है।

जानकारों की मानें, तो कांग्रेस व भाजपा से ताल्लुक रखने वाले कई नेता आम आदमी पार्टी में शामिल होकर भी चुनाव लड़ रहे हैं। अन्य दलों में भी ऐसे प्रत्याशियों की कमी नहीं है। नेता अपनी पुरानी पार्टी का चोला ऐसे उतार फेंका, मानों उससे उनका कभी कोई वास्ता ही नहीं रहा। बल्ली ने तो कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने से पहले यह भी कहा था कि शुरू शुरू में वह कांग्रेस के लिए ही काम करते थे।

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