Move to Jagran APP

आपात काल के दौरान रहे सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने देश के PM, वेंकटरमण ने बनाया रिकॉर्ड

गुजराल के बारे में कहा जाता है कि वे उस गुट में शामिल थे जिसने इंदिरा गांधी को वर्ष 1966 में प्रधानमंत्री बनने में मदद की थी।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 04 Dec 2018 10:56 AM (IST)Updated: Tue, 04 Dec 2018 03:21 PM (IST)
आपात काल के दौरान रहे सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने देश के PM, वेंकटरमण ने बनाया रिकॉर्ड
आपात काल के दौरान रहे सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने देश के PM, वेंकटरमण ने बनाया रिकॉर्ड

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। देश के दो महान नेताओं का जन्‍म आज के ही दिन हुआ था। इन दोनों नेताओं ने आजादी की जंग में बढ़चढ़ कर हिस्‍सा लिया और आजाद भारत में दोनों प्रमुख पदों पर आसीन रहे। इन दोनों नेताओं ने पांच दशकों से ज्‍यादा का वक्‍त देश की सक्रिय राजनीति में बिताया और इनका पूरा राजनीतिक जीवन बेदाग रहा। आइए जानते हैं आखिर वो दोनों नेता कौन हैं और उनका राजनीतिक योगदान क्‍या रहा।

loksabha election banner

1 - रामास्वामी वेंकटरमण देश के 9वें राष्‍ट्रपति

रामास्वामी वेंकटरमण देश के नौवें राष्‍ट्रपति थे। वह एक भारतीय विधिवेत्ता और स्‍वतंत्रता सेनानी भी थे। राष्‍ट्रपति पद पर रहते हुए उन्‍होंने निष्‍पक्ष भूमिका का निर्वाह किया। यही कारण है कि वह सत्‍ता पक्ष और विपक्ष दोनों के प्रिय थे। राष्‍ट्रपति रहते हुए उन्‍होंने दया याचिकाओं पर सुनवाई का रिकॉर्ड बनाया। अपने पांच साल के लंबे सियासी सफर के दौरान उन्होंने चार प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य किया।

दया याचिकाओं पर सुनवाई के मामले में रिकॉर्ड बनाया

पूर्व राष्‍ट्रपति आर वेंकटरमण ने दया याचिकाओं पर सुनवाई के मामले में रिकॉर्ड बनाया था। 1987 से 1992 तक उन्होंने कुल 39 दया याचिकाओं पर फ़ैसला किया, जिनमें से सिर्फ़ छह को ही मंज़ूर करते हुए फ़ाँसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदला। साल 1982 से 1987 तक राष्ट्रपति रहे ज्ञानी जैल सिंह ने कुल 22 दया याचिकाओं पर फ़ैसला किया, जिनमें से तीन को उन्होंने मंज़ूर किया था। साल 1997 से 2002 तक राष्ट्रपति रहे केआर नारायणन ने सिर्फ़ एक ही दया याचिका पर फ़ैसला लिया। उन्होंने जीवी राव और एससी राव की फ़ाँसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया था, जबकि 1992 से 1997 तक राष्ट्रपति रहे शंकर दयाल शर्मा ने कुल 12 दया याचिकाओं पर फ़ैसला किया जिनमें से सभी को उन्होंने नामंज़ूर कर दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्‍सा लिया

आजादी की जंग के दौरान 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में बढ़चढ़ कर हिस्‍सा लिया। युवा रामास्वामी वेंकटरमण ने अंग्रेजी हुकूमत का जमकर विरोध किया। भारत छोड़ो आंदाेलन के दौरान पुलिस ने उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया। वह दो वर्षों तक जेल में रहे। वह संविधान सभा के सदस्य भी चुने गए। 1947 में मद्रास प्रोविंशियल बार फेडरेशन के सचिव चुने गए। 1949 में उन्‍होंने लेबर लॉ जर्नल की स्थापना की थी।

बेदाग रहा पांच दशक का राजनीतिक सफर

क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपने करियर की शुरुआत वकालत से शुरू की। उन्‍होंने मद्रास हाई कोर्ट से वकालत की शुरुआत की बाद में वह दिल्‍ली आए और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। सन 1950 में उन्हें स्वतंत्र भारत के स्थायी संसद (1950-52) के लिए चुना गया। सन 1953-54 में वे कांग्रेस संसदीय दल के सचिव भी रहे। इसके बाद उन्हें देश की प्रथम संसद (1952-1957) के लिए भी चुना गया। इस दौरान वे न्यूज़ीलैंड में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मलेन में भारतीय संसदीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य रहे। सन 1957 में लोकसभा में निर्वाचित हुए।

मद्रास राज्य में उन्होंने 1957 से लेकर 1967 तक विभिन्न मंत्रालयों में कार्य किया। इस दौरान वे राज्य के ऊपरी सदन मद्रास विधान परिषद् के नेता भी रहे। 1977 व 1980 में लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए। 1980 में इंदिरा गाँधी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री बनें। बाद में उन्हें भारत का रक्षा मंत्री बनाया गया। रक्षा मंत्री के तौर पर उन्होंने भारत के मिसाइल विकास कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। वह एपीजे अब्दुल कलाम को अंतरिक्ष कार्यक्रम से मिसाइल कार्यक्रम में लेकर आए। 1984 में भारत के उप-राष्ट्रपति चुने गए। 1987 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने चार प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य किया। वह संयुक्त राष्ट्र संघ समेत कई महत्वपूर्ण संस्थाओं के सदस्य और अध्यक्ष रहे। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष, अंतरराष्‍ट्रीय पुननिर्माण और विकास बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक के गवर्नर का कार्यभार भी संभाला।  2009 में 98 वर्ष की उम्र में नई दिल्ली में उनका निधन हो गया।

2- इंद्र कुमार गुजराल, देश के 12वें प्रधानमंत्री

21 अप्रैल 1997 को जनता दल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में आईके गुजराल देश के 12वें प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल महज 11 महीनों का रहा। 1999 में चुनाव के लिए नामांकित नहीं हुए और इस तरह उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। गुजराज को उनके ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ के लिए याद किया जाता है।

आपातकाल के दौरान सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे

देश में 25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल लगाया गया था और प्रेस पर पाबंदी लगाई गई थी, तब गुजराल ही सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। अप्रैल 1964 में वे राज्य सभा के सदस्य बने थे। गुजराल के बारे में कहा जाता है कि वे उस गुट में शामिल थे जिसने इंदिरा गांधी को वर्ष 1966 में प्रधानमंत्री बनने में मदद की थी। गुजराल सरकार ने उत्तर प्रदेश में वर्ष 1997 में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा की थी। उस वक्‍त केआर नारायणन भारत के राष्ट्रपति थे, जिन्होंने इस अनुशंसा पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था।

‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ के लिए याद किए जाते हैं गुजराल

आईके गुजराल अपने ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ के लिए याद किए जाते हैं। इस पुस्‍तक में उन्होंने भारत के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते बरकरार रखने के आधारभूत सिद्धांत निर्धारित किए हैं। यह पुस्तक भारत के पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्तों की अहमियत पर बल देती है। उनके कार्य को विश्व के नेताओं से बहुत सम्मान मिला। ये पांच सिद्धांत हैं- पहला- बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से भारत पारस्परिकता की अपेक्षा नहीं रखता बल्कि आश्रय और मदद करता है जिससे परस्पर विश्वास बढ़ सकता है। दूसरा- कोई दक्षिण एशियाई देश अपनी भूमि का इस्तेमाल क्षेत्र के अन्य देश के खिलाफ नहीं करेगा न होने देगा। तीसरा- कोई भी देश एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देंगे। चौथा- सभी दक्षिण एशियाई देश एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करें। पांचवां- उन्हें अपने सभी विवादास्पद मुद्दों का हल विचार विमर्श तथा बातचीत से निकालना चाहिए।

उनके प्रशासनिक कौशल से प्रभावित हुई इंदिरा

इंद्र कुमार गुजराल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वह राजनीति के क्षेत्र में आए थे। वह लाहौर छात्रसंघ के सदस्य थे और संघ के अध्यक्ष बने। इसके साथ ही वह कम्युनिस्ट पार्टी का हिस्सा बन गए। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने तक वह कम्युनिस्ट पार्टी कार्ड धारी सदस्य बन गए थे। भारत-पाक युद्ध के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। उनका प्रशासनिक कौशल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देखा और उन्हें विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी। 1975 में जब देश अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था तब उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री का पद दिया गया।

कांग्रेस से तोड़ा नाता, वीपी से जुड़े

1980 में गुजराल कांग्रेस पार्टी छोड़कर जनता दल में शामिल हो गए। वीपी सिंह की सरकार में वह 1989-1990 तक विदेश मंत्री बने। इसके बाद 1996 में एचडी देवगोड़ा सरकार में यही जिम्मेदारी फिर निभाई। इस दौरान भारत ने पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्ते बेहतर करने का प्रयास किया। 1996 में राज्यसभा के नेता बने। 21 अप्रैल 1997 को जनता दल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में आईके गुजराल देश के 12वें प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनका कार्यकाल महज 11 महीनों का रहा। 1999 में चुनाव के लिए नामांकित नहीं हुए और इस तरह उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। देश के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के अलावा 1967-1976 तक उन्होंने संचार व संसदीय मंत्री, सूचना एवं प्रसारण मंत्री तथा कार्य व आवास मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दीं।

अविभाजित पंजाब में हुआ जन्‍म

इंद्र कुमार गुजराल का जन्म 4 दिसंबर, 1919 को झेलम के एक कस्बे में हुआ था। यह स्थान पहले अविभाजित पंजाब के अंतर्गत आता था, वर्तमान में पाकिस्तान में है। उनका जन्म स्वतंत्रा सेनानियों के परिवार में हुआ था और उनके अभिभावकों ने पंजाब में स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रियता से भाग लिया था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में उन्हें जेल जाना पड़ा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.