चंद्रधर शर्मा गुलेरी जयंती: 'उसने कहा था' के अमर पात्र लहना सिंह ने बिना कुछ कहे बहुत कुछ कहा
गुलेरी जी पालि प्राकृत संस्कृत हिंदी और अंग्रेजी के अलावा कई भाषाओं के जानकार थे। उसने कहा था हीरे का हीरा बुद्धू का कांटा और सुखमय जीवन जैसी कहानियां भी उन्होंने ही लिखी हैं।
शिमला, नवनीत शर्मा। आम तौर पर संवाद की खूबी यह होती है कि जो कहा जाए, वह सुन लिया जाए। कुछ विरले लोग होते हैं जो वह भी सुन लेते हैं जो कहा नहीं गया होता। 105 साल पुरानी अमर कहानी 'उसने कहा था' का मुख्य पात्र लहना सिंह हो या रेशम से कढ़े पल्लू वाली अमृतसर के बाजार में उसे मिली लड़की जो कालांतर में सूबेदारनी बन कर फिर कुछ कहती है। दोनों ने एक दूसरे को बिना कहे भी बहुत कुछ कहा, और कहे हुए के अलावा वह सब भी ठीक से सुना गया जो कहा नहीं गया था। आज इस कहानी के लेखक पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की जयंती है।
गुलेरी जी पालि, प्राकृत, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा कई भाषाओं के जानकार थे। हीरे का हीरा, बुद्धू का कांटा और सुखमय जीवन जैसी कहानियां भी उन्होंने ही लिखी हैं, कई निबंध लिखे हैं, समालोचना में अनुकरणीय कार्य किया है लेकिन जब जिक्र 'उसने कहा था' का आता है तो और कुछ कहने को बचता नहीं।
बेशक गुलेरी जी 1883 में पैदा होकर 1922 में ही 39 वर्ष की आयु में शरीर छोड़ गए थे लेकिन जयपुर राजघराने से लेकर वाराणसी और प्रयागराज के बौद्धिक और शैक्षणिक जगत के बीच रोशनी देता रहा यह दीपक मूल रूप से गुलेर का था। गुलेर रियासत... जहां से कांगड़ा कलम का उद्भव हुआ। जहां सेऊ पंडित के बेटों नैनसुख और मानकू ने ऐसे गाढ़े रंग जमाए कि उतरना तो दूर, विदेश तक और पक्के हो रहे हैं।
जब हम 'उसने कहा था' का पाठ कर रहे होते हैं तो कभी अपने अंदर के लहना सिंह से मिल रहे होते हैं, कभी हम सूबेदारनी हो जाते हैं, कभी वजीरा सिंह, कभी बोधा सिंह और कभी अमृतसर। हम प्रेम के साथ उसके असल रूप में मुखातिब हो रहे होते हैं जो अब दिल के लाल निशानों से अटे संदेशों में गुम दिखता है।
जो वैलेंटाइन दिवस से एक सप्ताह पहले एक पूरी नस्ल को हरियाली के बुखार से ग्रस्त कर देता है। जाहिर है, आदर्श प्रेम की कथा है। कहानी ने एक विधा के तौर पर कई सोपान तय किए हैं। कोई जादुई यथार्थवाद, कोई सरल कहानी कोई ऐसी कहानी, कोई वैसी कहानी लेकिन इस कहानी में ऐसा क्या है कि यह हर बार नई लगती है?
जाहिर है इसके पास सबकुछ है। शीर्षक, कथानक, पृष्ठभूमि, संवाद सब एक से बढ़ कर एक। इसके अलावा फ्लैशबैक का इस्तेमाल। अमृतसर के बाजार में लड़की से इन्कार सुनने के बाद जब वह परेशान होकर घर पहुंचता है उसके बाद प्रथम विश्व युद्ध की खंदकों का दृश्य खुलता है।
जो लोग आंचलिकता का अर्थ केवल फणीश्वर नाथ रेणु तक सीमित रखते हैं उनके लिए भी यह कहानी शोध का विषय है कि कैसे ग्रेटर पंजाब से पहले के संयुक्त पंजाब या रियासती क्षेत्र की भाषा इस कहानी में ठूंसी नहीं गई है बल्कि सजाई गई है।
यह चंद्रधर शर्मा गुलेरी का कमाल ही था कि इस अविस्मरणीय प्रेम कहानी में प्रेम शब्द कहीं इस्तेमाल नहीं हुआ। लहना बचपन में मिली लड़की की कुड़माई पर पागल क्यों हो गया था, लहना ने बाद में उसके पति और बेटे की जान बचा कर स्वयं को शहीद क्यों किया? इस सबको देखते हुए क्या प्रेम शब्द लिखा जाना जरूरी था? नहीं। इसीलिए लहना ने वह सुना जो सूबेदारनी ने नहीं भी कहा था।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी
जन्म : 7 जुलाई, 1883
मृत्यु : 12 सितंबर, 1922
पिता : पंडित शिवराम शास्त्री, जयपुर राजदरबार से सम्मानप्राप्त
- 1900 में जयपुर में नागरी मंच की स्थापना में योगदान
- 1902 से मासिक पत्र 'समालोचकÓ का संपादन
- कुछ वर्ष काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के संपादक मंडल में भी रहे
- देवी प्रसाद ऐतिहासिक पुस्तकमाला और सूर्य कुमारी पुस्तकमाला का संपादन
- पहले खेतड़ी नरेश जयसिंह के और फिर जयपुर राज्य के सामंत-पुत्रों के अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्ययन के दौरान उनके अभिभावक रहे।
- 1916 में मेयो कॉलेज में ही संस्कृत विभाग के अध्यक्ष
- 1920 में पंडित मदन मोहन मालवीय के प्रबंध आग्रह पर बनारस आकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राच्यविद्या विभाग के प्राचार्य
- 1922 में प्राचीन इतिहास और धर्म से संबद्ध मनींद्र चंद्र नंदी पीठ के प्रोफेसर
- हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत बांग्ला, मराठी, जर्मन तथा फ्रेंच का ज्ञान
- धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुरातत्व, दर्शन भाषाविज्ञान शिक्षाशास्त्र और साहित्य से लेकर संगीत, चित्रकला, लोककला, विज्ञान और राजनीति आदि में रुचि