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जन्‍मदिन विशेष : विक्रम सारा भाई ने अब्दुल कलाम का लिया था इंटरव्‍यू, जाने फिर क्‍या हुआ

भारत के आजाद होने के बाद डा विक्रम साराभाई ने 1947 में फिजिकल रिसर्च लैबरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की। पीआरएल की शुरुआत उनके घर से हुई।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 08:18 PM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 08:18 PM (IST)
जन्‍मदिन विशेष : विक्रम सारा भाई ने अब्दुल कलाम का लिया था इंटरव्‍यू, जाने फिर क्‍या हुआ
जन्‍मदिन विशेष : विक्रम सारा भाई ने अब्दुल कलाम का लिया था इंटरव्‍यू, जाने फिर क्‍या हुआ

नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल। जिस समय देश अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र हुआ, तब भारत में विज्ञान संबंधी शोध प्रायः नहीं होते थे। गुलामी के कारण लोगों के मानस में यह धारणा बनी हुई थी कि भारतीय लोग प्रतिभाशाली नहीं है। शोध करना या नयी खोज करना इंग्लैंड, अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों का काम है इसलिए मेधावी होने पर भी भारतीय वैज्ञानिक कुछ विशेष नहीं कर पा रहे थे।

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पर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश का वातावरण बदला। ऐसे में जिन वैज्ञानिकों ने अपने परिश्रम और खोज के बल पर विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया, उनमें डॉ. विक्रम साराभाई का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उन्होंने न केवल स्वयं गंभीर शोध किए बल्कि इस क्षेत्र में आने के लिए युवकों में उत्साह जगाया और नए लोगों को प्रोत्साहन दिया। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ऐसे ही लोगों में से एक हैं।

डॉ. साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को कर्णावती (अहमदाबाद, गुजरात) में हुआ था। पिता अम्बालाल और माता सरला बाई ने विक्रम को अच्छे संस्कार दिए। उनकी शिक्षा माण्टसेरी पद्धति के विद्यालय से शुरू हुई। इनकी गणित और विज्ञान में विशेष रुचि थी। वे नयी बात सीखने को सदा उत्सुक रहते थे। अम्बालाल का संबंध देश के अनेक प्रमुख लोगों से था। रवींद्र नाथ टैगोर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. चन्द्रशेखर वेंकटरामन और सरोजिनी नायडू जैसे लोग इनके घर पर ठहरते थे। इस कारण विक्रम की सोच बचपन से ही व्यापक हो गई।

डॉ. साराभाई ने माता-पिता की प्रेरणा से बचपन में ही यह निश्चय कर लिया कि उन्हें जीवन विज्ञान के माध्यम से देश और मानवता की सेवा में लगाना है। स्नातक की शिक्षा के लिए वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए और 1939 में ‘नेशनल साइन्स ऑफ ट्रिपोस’ की उपाधि ली। द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ने पर वे भारत लौट आए और बंगलुरु में प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर वेंकटरामन के निर्देशन में प्रकाश संबंधी शोध किया। इसकी चर्चा सब ओर होने पर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें डीएससी की उपाधि से सम्मानित किया। अब उनके शोध पत्र विश्वविख्यात शोध पत्रिकाओं में छपने लगे।

इसरो जैसी विश्‍वस्‍तरीय संस्‍था बनाई

भारत के आजाद होने के बाद उन्होंने 1947 में फिजिकल रिसर्च लैबरेटरी (पीआरएल) की स्थापना की। पीआरएल की शुरुआत उनके घर से हुई। शाहीबाग अहमदाबाद स्थित उनके बंगले के एक कमरे को ऑफिस में बदला गया जहां भारत के स्पेस प्रोग्राम पर काम शुरू हुआ। 1952 में उनके संरक्षक डॉ.सीवी रमन ने पीआरएल के नए कैंपस की बुनियाद रखी। उनकी कोशिशों का ही नतीजा रहा कि हमारे देश के पास आज इसरो (ISRO) जैसी विश्व स्तरीय संस्था है।

 

उन्होंने कर्णावती (अमदाबाद) के डाइकेनाल और त्रिवेन्द्रम स्थित अनुसन्धान केन्द्रों में काम किया। उनका विवाह प्रख्यात नृत्यांगना मृणालिनी देवी से हुआ। उनके घर के लोग गांधीजी के पक्के अनुयायी थे। उनके घर के लोग उनकी शादी में भी शामिल नहीं हो पाए थे क्योंकि उस समय वे लोग गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में व्यस्त थे। उनकी बहन मृदुला साराभाई ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। डॉ. साराभाई की विशेष रुचि अंतरिक्ष कार्यक्रमों में थी।

वे चाहते थे कि भारत भी अपने उपग्रह अन्तरिक्ष में भेज सके। इसके लिए उन्होंने त्रिवेन्द्रम के पास थुम्बा और श्री हरिकोटा में राकेट प्रक्षेपण केन्द्र स्थापित किए। होमी भाभा की मदद से तिरुवनंतपुरम में देश का पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाया गया।

 

अब्‍दुल कलाम जैसी प्रतिभा को निखारा

डॉ. साराभाई ने न सिर्फ डॉ.अब्दुल कलाम का इंटरव्यू लिया बल्कि उनके करियर के शुरुआती चरण में उनकी प्रतिभाओं को निखारने में अहम भूमिका निभाई। डॉ.कलाम ने खुद कहा था कि वह तो उस फील्ड में नवागंतुक थे। डॉ.साराभाई ने ही उनमें खूब दिलचस्पी ली और उनकी प्रतिभा को निखारा।

डॉ. कलाम ने कहा था, 'डॉ. विक्रम साराभाई ने मुझे इसलिए नहीं चुना था क्योंकि मैं काफी योग्य था बल्कि मैं काफी मेहनती था। उन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए पूरी जिम्मेदारी दी। उन्होंने न सिर्फ उस समय मुझे चुना जब मैं योग्यता के मामले में काफी नीचे था बल्कि आगे बढ़ने और सफल होने में भी पूरी मदद की। अगर मैं नाकाम होता तो वह मेरे साथ खड़े होते।'

IIM और फिजिक्स रिसर्च लेबोरेट्री बनाने में की मदद

डॉ. साराभाई भारत के ग्राम्य जीवन को विकसित देखना चाहते थे। ‘नेहरू विकास संस्थान’ के माध्यम से उन्होंने गुजरात की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह देश-विदेश की अनेक विज्ञान और शोध सम्बन्धी संस्थाओं के अध्यक्ष और सदस्य थे। अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने के बाद भी वे गुजरात विश्वविद्यालय में भौतिकी के शोध छात्रों को सदा सहयोग करते रहे। उन्होंने अहमदाबाद में IIM और फिजिक्स रिसर्च लेबोरेट्री बनाने में मदद की। उन्हें भारत सरकार ने 1966 में पद्मभूषण और 1972 में पद्मविभूषण से नवाजा।

डॉ. साराभाई 20 दिसंबर, 1971 को अपने साथियों के साथ थुम्बा गये थे। वहाँ से एक राकेट का प्रक्षेपण होना था। दिन भर वहाँ की तैयारियां देखकर वे अपने होटल में लौट आए पर उसी रात में अचानक उनका देहांत हो गया। हालांकि 52 साल की उम्र में उनके निधन के बाद देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को लॉन्च किया गया, लेकिन उसकी बुनियाद डॉ. साराभाई तैयार कर गए थे।

उन्होंने पहले ही भारत के पहले सेटेलाइट के निर्माण के मकसद से मशीनीकरण शुरू कर दिया था। कॉस्मिक किरणों और ऊपरी वायुमंडल की विशेषताओं से संबंधित उनका शोध कार्य आज भी अहमियत रखता है। उनकी प्रेरणा से देश के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को 19 अप्रैल, 1975 को लॉन्च किया गया।  


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