विधानसभा चुनाव के नतीजों से परे बिहार में सियासी दलों के नेतृत्व पर शुरू होगा मंथन
बिहार चुनाव के नतीजे चाहे जो आएं सरकार का मुखिया चाहे जो भी हो लेकिन यह तय है कि भविष्य का चुनाव अलग होगा चेहरा अलग होगा समीकरण अलग होगा। नीतीश के बयान को आखिरी चुनाव अभियान से भी जोड़ा जा रहा है।
आशुतोष झा, नई दिल्ली। बिहार चुनाव के नतीजे चाहे जो आएं, सरकार का मुखिया चाहे जो भी हो, लेकिन यह तय है कि भविष्य का चुनाव अलग होगा, चेहरा अलग होगा, समीकरण अलग होगा। अब के बाद हर पार्टी के अंदर बड़ा मंथन होगा और भाजपा जदयू जैसे दलों में संभवत: अगले कुछ दशक के लिए नेतृत्व तय हो जाएगा। जबकि पारिवारिक रूप से तय नेतृत्व वाले दलों में भी दूसरी तीसरी पंक्ति का नेतृत्व स्थापित हो जाएगा।
अब बदलाव की तैयारी का वक्त आ गया
हाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनावी अभियान के दौरान अपने 'आखिरी चुनाव' की बात कही थी। हालांकि उसके आगे चुप्पी है और जदयू के अंदर ही असमंजस है। नीतीश के बयान को आखिरी चुनाव अभियान से भी जोड़ा जा रहा है। बहरहाल इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि अब बदलाव की तैयारी का वक्त आ गया है।
जदयू की कमजोर कड़ी: नेतृत्व का विकल्प नहीं, सारी क्षमता एक व्यक्ति पर केंद्रित
नीतीश ने जदयू को स्थापित कर दिया है पर नेतृत्व का विकल्प तैयार नहीं हो पाया है। राजद और लोजपा की तरह परिवार आधारित नेतृत्व न होने के बावजूद भी जदयू ऐसे मोड़ पर है जहां सारी क्षमता एक व्यक्ति पर केंद्रित हैं। यह जदयू की कमजोर कड़ी है और इसीलिए नीतीश का सक्रिय कार्यकाल चाहे जितना भी लंबा हो, उत्तराधिकारी या नेतृत्व का संकेत बहुत जरूरी है जो भविष्य में पार्टी की जिम्मेदारी उठा सके। लिहाजा नतीजे जो भी आएं, इस चुनाव के बाद यह प्रक्रिया शुरू हो सकती है। कम से कम प्रत्यक्ष या परोक्ष संकेत जरूर दिया जा सकता है।
भाजपा का संकट: गठबंधन के उलझन से बाहर नहीं निकल पाई
भाजपा का संकट दूसरा है। उसके पास केंद्र से लेकर प्रदेश के स्तर तक कई नेता हैं और आलाकमान के आदेश पर वह सर्वस्वीकार्य भी हो सकते हैं, लेकिन अब तक गठबंधन के उलझन से बाहर नहीं निकल पाई। भाजपा को यह खटकता है कि उस बिहार में अब तक भाजपा की सरकार नहीं बनी जहां पार्टी का ठोस आधार है। लगातार हर चुनाव मे बिहार से भाजपा को बड़ा आधार मिलता रहा है, लेकिन प्रदेश कभी मुट्ठी में नहीं आया। नीतीश की क्षमता के मुकाबले कभी चेहरा तैयार नहीं हो पाया, लेकिन माना जा रहा है कि अब भाजपा में मंथन तेज है। खासकर नीतीश के कुछ रहस्यमयी बयान के बाद देर नहीं होगी। ध्यान रहे कि नीतीश की गैरमौजूदगी में जदयू भाजपा से बहुत मोलभाव करने की स्थिति में नहीं होगा। ऐसे में गठबंधन तैयार हुआ भी तो नेतृत्व शायद भाजपा के ही हाथ रहे। यानी पूरा समीकरण बदला होगा। पर उससे पहले भाजपा को यह तय करना होगा कि बिहार में जातिगत आधार पर कितना प्रयोग किया जा सकता है। नेतृत्व की घोषणा में वक्त जरूर लग सकता है लेकिन इसकी कवायद तत्काल शुरू हो सकती है।
कांग्रेस बैसाखी के भरोसे
कांग्रेस फिलहाल इस मुकाम पर नहीं है कि किसी बैसाखी के बिना आगे बढ़े, लेकिन वह शायद यह तय करने की स्थिति में हो कि चेहरा अगड़े वर्ग से ही रखा जाए या पिछड़े वर्ग का। अगर महागठबंधन का साथ रास आया तो संभव है कि कांग्रेस अगड़े वर्ग के चेहरे के साथ ही आगे बढ़े।
राजद, लोजपा परिवार या फिर एक व्यक्ति केंद्रित दल हैं
राजद, लोजपा और दूसरे छोटे दल परिवार या फिर एक व्यक्ति केंद्रित दल हैं। लिहाजा वहां कोई चेहरा तो नहीं बन सकता है, लेकिन भविष्य के लिहाज से वहां भी दूसरी तीसरी पंक्ति तय हो सकती है।