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बेहतर बुनियादी ढांचे से बढ़ती है उत्पादकता और अर्थव्यवस्था को मिलती है ताकत

Economy and Infrastructure एक अध्ययन के मुताबिक अच्छे एवं मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किया गया हर पैसा आर्थिक गतिविधियों में तीन गुना तक का योगदान देता है। इसी तरह विकास केंद्रित सतत खर्च से चार गुना तक नतीजे मिलते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 23 Aug 2021 12:28 PM (IST)Updated: Mon, 23 Aug 2021 12:28 PM (IST)
बेहतर बुनियादी ढांचे से बढ़ती है उत्पादकता और अर्थव्यवस्था को मिलती है ताकत
गति शक्ति मिशन देश की तस्वीर को गुलाबी बनाने में अहम होगा।

डा. विकास सिंह। अपर्याप्त बुनियादी ढांचा विकास की राह में बड़ी बाधा है। सड़क, पुल, ऊर्जा, रेल नेटवर्क, स्पेक्ट्रम और इसी तरह के अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर किसी अर्थव्यवस्था की बुनियादी जरूरतें हैं। इनसे व्यापार को गति मिलती है और अर्थव्यवस्था में स्थायित्व आता है। बेहतर बुनियादी ढांचे से उत्पादकता बढ़ती है, मांग को गति मिलती है, रोजगार सृजित होते हैं और निवेश आता है। इससे अर्थव्यवस्था को ताकत मिलती है और विकास चक्र चलता है। भारत में बुनियादी ढांचे को 100 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है और इसमें से 40 फीसद खर्च अकेले शहरी क्षेत्रों में किया जाना चाहिए। 10 सबसे बड़े शहर और आर्थिक हब देश की जीडीपी में आधे से ज्यादा का योगदान देते हैं, जबकि यहां कुल आबादी के 10 फीसद लोग रहते हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सतत निवेश से स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार होगा। ये शहर अपनी वास्तविक क्षमता का दोहन कर पाने में सक्षम होंगे।

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इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य से हर सेक्टर उत्साहित है। सरकार को बराबर के भागीदार जैसी भूमिका रखनी होगी। प्रशासनिक स्तर पर पारदर्शिता किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। भरोसा, साझा लक्ष्य और किसी रिस्क से बचाव हर साङोदारी का मूल होते हैं। आमतौर पर सार्वजनिक-निजी भागीदारी में असमानता रहती है और आपसी भरोसे की कमी दिखती है। कई बार ऐसी साङोदारियां विफल हो जाती हैं। सरकार बड़े भाई जैसी भूमिका में रहती है, जो किसी भी साङोदारी के लिए सही नहीं है। लक्ष्य भी अक्सर अलग हो जाते हैं और परियोजना परवान नहीं चढ़ पाती है। अंतत: अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है, उद्योगों को कीमत चुकानी पड़ती है और नागरिक परेशान होते हैं।

चुनौतियां और भी हैं: इस मामले में कई और चुनौतियां भी हैं। कई बार पहचान और संपर्क से काम पर असर पड़ता है, जिससे संसाधनों का सही बंटवारा नहीं होता है। यह विकास के लिए घातक होता है। परियोजनाएं ठहर जाती हैं और लागत बढ़ जाती है। अर्थव्यवस्था का उत्पादक सेक्टर इसका शिकार हो जाता है। प्रधानमंत्री के लक्ष्य से लोग प्रेरित होंगे, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। बुनियादी ढांचे से जुड़ी हमारी नीति में ऐसे सिद्धांत होने चाहिए, जिनसे सभी समस्याओं को हल करने की राह निकले। परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए मजबूत फ्रेमवर्क अपनाया जाए। निगरानी की सुदृढ़ और व्यापक व्यवस्था हो। सरकारी खरीद की प्रक्रियाओं में सुधार हो और खर्च में पारदर्शिता आए। बेहतर नतीजों के लिए सोचने वालों और करने वालों दोनों की जरूरत है। सरकार अपनी संस्थाओं को मजबूत करे और ऐसे संस्थान तैयार करे, जहां बेहतर प्रतिभाओं को मौका दिया जाए। साथ ही क्षमता विस्तार की दिशा में प्रयास करने की भी जरूरत है।

निवेश का हो सही इस्तेमाल: निवेश के सही प्रयोग पर नीति निर्माताओं को ध्यान देना होगा। ज्यादा प्रभावकारी और विकास में योगदान देने में सक्षम परियोजनाओं पर केंद्रित रहना होगा। साथ ही मौजूदा परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने पर भी जोर देना होगा। अधूरी परियोजनाएं बाधा होती हैं, जबकि पूरी हो चुकी परियोजनाएं एक एसेट की तरह काम करती हैं।

सरकार को यह भी समझना होगा कि बुनियादी ढांचे का विकास एक जटिल प्रक्रिया है और इससे कई अन्य प्रक्रियाएं जुड़ी हुई हैं। सरकार परियोजनाएं शुरू करे और उन्हें सहयोग दे, उन्हें थोपने का प्रयास न करे। सरकार को समय से खरीद और अन्य मंजूरियों पर ध्यान देना चाहिए। वित्तीय मामलों में पारदर्शिता भी बहुत जरूरी कदम है। यह समझना होगा कि बुनियादी ढांचे का प्रशासन तकनीकी और विशेषज्ञता वाला मामला है और इसकी जिम्मेदारी क्षेत्र के विशेषज्ञों के हाथ में होनी चाहिए, जो उसे पूरी तरह समझते हों। निजी क्षेत्र की भी अपनी जिम्मेदारियां हैं। नई टेक्नोलाजी और विशेषज्ञता को मौका देना इनका काम है। गुणवत्ता सुनिश्चित करने में भी निजी क्षेत्र की भूमिका अहम है।

अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचा: कई बार छोटी लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजनाओं की अनदेखी हो जाती है। सरकार को तय रणनीति के तहत सामाजिक क्षेत्र की ऐसी परियोजनाओं पर फोकस करना चाहिए और निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना चाहिए। बुनियादी ढांचा थमी हुई अर्थव्यवस्था को गति देता है। इसके कई उदाहरण हैं। अमेरिका में 1930 और उसके बाद के वर्षो में बुनियादी ढांचे पर हुए निवेश ने मंदी से उबरने में मदद की थी। इसी तरह कई देशों ने 2007 में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर देते हुए खुद को वैश्विक आर्थिक संकट से उबारा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट लक्ष्य तय किया है और अब कमान नौकरशाही के हाथ में है। उन्हें पारस्परिक लाभ वाली साङोदारी पर जोर देना होगा और इसके बाद टेक्नोक्रेट व प्रोजेक्ट मैनेजमेंट टीम को जिम्मेदारी सौंपनी होगी। उनका जोर तेज क्रियान्वयन पर होना चाहिए। बुनियादी ढांचा आर्थिक विकास को गति देता है और आर्थिक विकास से बुनियादी ढांचे की मांग बढ़ती है। यह दोतरफा संबंध है। इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्रों में भी बुनियादी ढांचा बेहद अहम है। इससे ग्रामीण विकास को गति मिलती है और संतुलन आता है। लोगों के लिए अवसर बढ़ते हैं और हाशिए पर जी रहे लोगों को सम्मान से जीने का मौका मिलता है।

एक अध्ययन के मुताबिक, अच्छे एवं मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किया गया हर पैसा आर्थिक गतिविधियों में तीन गुना तक का योगदान देता है। इसी तरह विकास केंद्रित सतत खर्च से चार गुना तक नतीजे मिलते हैं। इस लिहाज से गति शक्ति मिशन देश की तस्वीर को गुलाबी बनाने में अहम होगा।

[मैनेजमेंट गुरु और वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ]


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