जंगलों में दहाड़ते हुए बस्तर के 'टाइगर' ने दी जान
रायपुर,(गणेश द्विवेदी)। सोमवार को महेंद्र कर्मा के अंतिम संस्कार में शरीक हुए गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह। रायपुर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ आंदोलन का सबसे मुखर और जुझारू नेता माना जाता था। जब सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत हुई तो महेंद्र कर्मा को ही उसका नेता माना गया।
रायपुर,(गणेश द्विवेदी)। सोमवार को महेंद्र कर्मा के अंतिम संस्कार में शरीक हुए गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह। रायपुर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ आंदोलन का सबसे मुखर और जुझारू नेता माना जाता था। जब सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत हुई तो महेंद्र कर्मा को ही उसका नेता माना गया।
अब नक्सलियों के खिलाफ होगी ये निर्णायक लड़ाई
छत्तीसगढ़ विधानसभा में 2003 से 2009 के बीच नेता प्रतिपक्ष रहे महेंद्र कर्मा ने अपने परिवार के दर्जन भर लोगों को नक्सली हमलों में खोया। इससे पूर्व भी नक्सली चार बार कर्मा पर प्राणघातक हमला कर चुके थे, जिनमें वे बच गए थे। शनिवार को उन पर पांचवां हमला हुआ, जिसमें वह नहीं बच पाए। जान हथेली पर रखकर राजनीति करने वाले इस बहादुर नेता का सोमवार को दंतेवाड़ा जिले में स्थित पैतृक गांव में अंतिम संस्कार कर दिया गया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में अपनी राजनीति शुरू करने वाले महेंद्र कर्मा चार बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।
इसके अलावा वह 1996 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लोकसभा का चुनाव भी जीते। जब माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस की स्थापना की तो महेंद्र कर्मा उनके साथ चले गए। बाद में वह कांग्रेस में आ गए। वह मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे। छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया।
विपक्ष के नेता पद पर वह दिसंबर, 2003 से जनवरी, 2008 तक रहे। इसी दौरान 2005 में उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम शुरू किया। आठ हजार प्रभावित आदिवासियों के साथ शुरू हुए इस नक्सल विरोधी अभियान को राच्य सरकार का समर्थन था। उनका यह आंदोलन पूरी दुनिया में विख्यात हुआ।
पांचवां हमला नहीं झेल पाए
कर्मा का परिवार नक्सल विरोधी परिवार के रूप में जाना जाता है। इससे पहले चार बार कर्मा पर हमला हो चुका था। वह हर बार बाल-बाल बचते रहे। इस दौरान उनके परिवार के दर्जन भर से अधिक सदस्यों की मौत हो गई। तीसरी बार उन पर छह महीने पहले आठ नवंबर, 2012 को हमला हुआ था। दंतेवाड़ा से महज चार किलोमीटर दूर कंवलनार के पास कर्मा के काफिले को निशाना बनाकर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट किया था, इस हमले में भी कर्मा बालबाल बचे थे।
उच्च सुरक्षा थी कर्मा के पास
नक्सली संगठनों के लगातार हमलों के मद्देनजर महेंद्र कर्मा को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी। हमले के दिन भी उनके साथ छह पीएसओ (व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी) के अतिरिक्त निर्धारित पुलिस बल था, लेकिन नक्सलियों की भीड़ से वह नहीं बच सके। (नई दुनिया)
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