Move to Jagran APP

कभी बन गया था नक्सलियों का गढ़, फिर लौटी छग के ‘कुतुल बाजार’ में रौनक

नक्सल गतिविधियों का गढ़ बन जाने के कारण दो साल पहले प्रशासन ने इसे बंद करा दिया था। इससे लगभग पचास गांवों के ग्रामीणों की वनोपज से होने वाली अतिरिक्त आमदनी रुक गई।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 20 Dec 2018 09:32 AM (IST)Updated: Thu, 20 Dec 2018 09:40 AM (IST)
कभी बन गया था नक्सलियों का गढ़, फिर लौटी छग के ‘कुतुल बाजार’ में रौनक
कभी बन गया था नक्सलियों का गढ़, फिर लौटी छग के ‘कुतुल बाजार’ में रौनक

बस्तर, मो. इमरान खान। अनोखा है छत्तीसगढ़ का बस्तर। एक ओर नक्सल खौफ से रोंगटे खड़े कर देने वाला बस्तर तो दूसरी ओर प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को अपनी आगोश में समेटे रखने वाला बस्तर। भोले-भाले आदिवासियों की लोक संस्कृति और परंपराओं का बस्तर, उनके संघर्ष व जिजीविषा का बस्तर। जिधर नजर डालो, एक कहानी निकल आती है। रहस्यमय अबूझमाड़ के कुतुल बाजार को ही लें। नक्सल गतिविधियों का गढ़ बन जाने के कारण दो साल पहले प्रशासन ने इसे बंद करा दिया था। इससे लगभग पचास गांवों के ग्रामीणों की वनोपज से होने वाली अतिरिक्त आमदनी रुक गई। छोटे-छोटे सामान के लिए भी काफी दूर जाना पड़ता था, लेकिन आखिरकार यहां के लोग प्रशासन का भरोसा जीतने और अपना दर्द समझाने में कामयाब हुए। बीते सात दिसंबर से यह बाजार एक बार फिर गुलजार हो गया है।

loksabha election banner

पहला दिन, गिनती की दुकानें, भीड़ भी कम लेकिन संदेश बड़ा। बदलाव का संदेश। जो भी पहुंचा, चेहरे पर चमक लिए। युवतियों ने चेहरे की क्रीम खरीदी तो व्यापारियों ने ग्रामीणों का लाया मक्का और कोसरा। ठंड के चलते गर्म कपड़े भी बिके। यहां कारोबार कितने का हुआ, यह मायने नहीं रखता। मायने रखता है -नक्सलियों के गढ़ में ग्रामीणों की इच्छाशक्ति का। कभी कुतुल में नक्सलियों की रंगशाला हुआ करती थी। नाट्य प्रस्तुति में वे खुद को मजलूम और व्यवस्था को जालिम की तरह पेश करते थे। खौफ इतना कि कोई विरोध नहीं कर पाता। रंगशाला अब बंद है।

वोट डालकर निभाया राष्ट्रधर्म
सरकारी सुविधाओं को मोहताज कुतुल पंचायत के ग्रामीण लोकतंत्र के महापर्व में आहुति देने में भी पीछे नहीं रहे। जागरूकता ऐसी कि वोट डालने के लिए 23 किलोमीटर पैदल चलकर कोहकामेटा तक पहुंचे। नक्सलगढ़ में पड़े मतदान के पीछे ग्रामीणों की ढेरों उम्मीदें हैं। उनके बार-बार निवेदन का ही परिणाम रहा कि चुनाव परिणाम के चार दिन पहले ही पुलिस अधीक्षक जितेंद्र शुक्ला ने कुतुल बाजार को फिर शुरू करने की अनुमति दे दी।

अबूझमाड़ को बिजली से रोशन कर देने के दावों के बीच कुतुल में हकीकत अलग है। यहां सालभर से ब्लैक आउट है। ग्रामीणों ने अफसरों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक की चौखट पर कई बार दर्द बयां किया, लेकिन कोई नहीं पसीजा। हफ्तेभर पहले ही सीएसईबी के अफसरों ने यह कहकर ग्रामीणों को भेजा था कि आपके गांव पहुंचने से पहले बिजली पहुंच जाएगी।

तस्वीर एक, दास्तां चार

कुतुल पहुंच जाएं तो एक तस्वीर में चार दास्तां निकल आती है। यहां का इकलौता हैंडपंप प्रशासनिक ढर्रे की हकीकत बयां करता है। दो दशक पुराना यह हैंडपंप कब सूख गया, लोगों को याद नहीं। ग्रामीण पीने के पानी के लिए झरिया पर निर्भर हैं। दूसरी कहानी ध्वस्त नक्सली स्मारक कह रहा है। यानी यहां नक्सल राज खत्म और सुरक्षाबलों की आमद। तीसरी कहानी कुतुल बाजार कह रहा, जहां बेखौफ होकर व्यापारी 40-50 किलोमीटर की दूरी तय कर आसमान या फिर पेड़ के नीचे दुकान सजा रहे हैं। चौथी कहानी कुतुल का स्वास्थ्य केंद्र कह रहा है। चार साल पहले इस भवन का निर्माण शुरू हुआ था, लेकिन छत नहीं ढल पाई और दो साल से काम भी बंद है। रामकृष्ण मिशन के आश्रम में स्वास्थ्य केंद्र जरूर चल रहा है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.