जल्द नए रंग रूप में सामने आएगा बैंकिंग बोर्ड ब्यूरो, अध्यक्ष की दौड़ में अरुंधति भट्टाचार्य
सरकार बीबीबी के काम के दायरे को भी बढ़ाने पर विचार कर रही है। सरकार नए बोर्ड के गठन के साथ ही उसे सरकारी बैंकों के विलय को लेकर रणनीति बनाने में ज्यादा अहम भूमिका निभाने का दायित्व दे सकती है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। फरवरी, 2016 में जब केंद्र सरकार ने बैंकिंग बोर्ड ब्यूरो (बीबीबी) का गठन किया तो कहा गया कि यह सरकारी क्षेत्र के बैंकों का पुनरुद्धार कर देगा। ऐसा तो कुछ नहीं हुआ, उल्टा बोर्ड के काम काज व इसके अधिकार को लेकर बहुतेरे सवाल उठ गये। पूर्व सीएजी विनोद राय की अध्यक्षता वाले ब्यूरो का कार्यकाल 31 मार्च, 2018 को खत्म हो चुका है। अब सरकार इसे नए सिरे से गठित करने जा रही है। एसबीआइ की पूर्व चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य ब्यूरो के नए अध्यक्ष की दौड़ में सबसे आगे है।
सरकार बीबीबी के काम के दायरे को भी बढ़ाने पर विचार कर रही है। सरकार नए बोर्ड के गठन के साथ ही उसे सरकारी बैंकों के विलय को लेकर रणनीति बनाने में ज्यादा अहम भूमिका निभाने का दायित्व दे सकती है। साथ ही बैंक किस तरह से घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजार से ज्यादा पूंजी जुटा सकते हैं, इस बारे में ब्यूरो को रणनीति बनाने की ज्यादा आजादी दी जा सकती है। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली नियुक्ति पर कैबिनेट कमिटी ब्यूरो के चेयरमैन की नियुक्ति पर फैसला करेगी।
पिछले दो वर्षों के दौरान बीबीबी के कार्य का लेखा जोखा लिया जाए तो साफ है कि बोर्ड और सरकार के बीच तालमेल का पूरी तरह से अभाव रहा। बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि बोर्ड ने बैंकों के निदेशक बोर्ड के अधिकार, उनके उत्तरदायित्व व उन्हें प्रोत्साहित करने को लेकर सुझावों की एक पूरी फेहरिस्त सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि देश के सरकारी बैंकों के सामने अभी प्रबंधन को लेकर जो समस्याएं हैं उनका इनसे समाधान संभव है। लेकिन कई महीने बीत जाने के बावजूद इस बारे में दोनों पक्षों में कोई विमर्श नहीं हुआ है।
हाल ही में बोर्ड की तरफ से अपने प्रदर्शन को लेकर एक रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को भेजी गई। इसमें परोक्ष तौर पर बोर्ड ने वित्त मंत्रालय पर ही आरोप लगाया है कि उसकी सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया। गठन के समय बोर्ड को मुख्य तौर पर 13 कार्य निर्धारित किये गये थे। बोर्ड का कहना है कि उसने सात मुद्दों पर अपना काम कर लिया है, जबकि तीन मुद्दों पर काम जारी है। बोर्ड की तरफ से यह भी कहा गया कि उच्च स्तर पर इस बारे में विचार करने के लिए उसने समय मांगा था। लेकिन वित्त मंत्रालय की तरफ से उसका जवाब नहीं दिया गया। इस रिपोर्ट में ब्यूरो ने यह भी कहा है कि वह अभी महज एक नियुक्ति बोर्ड के तौर पर काम कर रहा है।