आजाद हिंद फौज के सिपाहियों का गांव है ये... कूट-कूट कर भरा है देशभक्ति का जज्बा
यह ऐसा गांव है जहां के करीब एक दर्जन वीर सपूतों ने देश को स्वतंत्रता दिलाने को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में गठित आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर संघर्ष किया।
बागपत [जहीर हसन]। देश की आन-बान और शान की खातिर बलिदान देने में ढिकोली का कोई सानी नहीं। इस गांव के जांबाजों ने जान पर खेलकर पहले अंग्रेजों की नाक में दम किया और फिर आजादी के बाद पाकिस्तानी फौज को मुंहतोड़ जवाब दिया। यह ऐसा गांव है जहां के करीब एक दर्जन वीर सपूतों ने देश को स्वतंत्रता दिलाने को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में गठित आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर संघर्ष किया। देश की खातिर यहां के आठ जवानों की शहादत जनपद का सीना चौड़ा करती है।
जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर बागपत-चांदीनगर मार्ग किनारे स्थित ढिकोली गांव की आबादी 30 हजार है। खेती-पेशा इस गांव में देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा है। शुरुआत करते हैं देश को आजादी दिलाने के संघर्ष से। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1942 में भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराने के लिए आजाद हिंद फौज बनाई। नेताजी ने ङ्क्षसगापुर में उन भारतीय सैनिकों को आजाद सिंह फौज में लिया जिन्हें युद्धबन्दी बना रखा था। सिंगापुर की जेल में युद्धबंदी की हैसियत से बंद ढिकोली निवासी लहरी सिंह समेत 11 नौजवानों ने भारत माता को गुलामी की बेडिय़ों से मुक्ति दिलाने को आजाद हिंद फौज का दामन थाम लिया।
ये थे आजाद हिंद फौज के जांबाज
ढिकौली गांव के लहरी सिंह, गिरवर सिंह, कालू, बेगराज, अनूप सिंह, जिले सिंह, अलम सिंह, खचेडू सिंह, भीम सिंह, नादान सिंह और महावीर सिंह आजाद हिंद फौज में रहकर देश को आजादी दिलाने को अंग्रेजी फौज से लड़े। दरअसल, ये सभी भारतीय अंग्रेजी फौज के सिपाही थे और युद्ध के दौरान हिटलर की फौज ने इन्हें बंदी बनाकर सिंगापुर जेल में डाल दिया था। नेताजी के समझौता होने के बाद हिटलर ने सिंगापुर जेल में बंद भारतीयों को रिहा कर दिया, जिससे ये आजाद हिंद फौज के सिपाही की हैसियत से अंग्रेज फौज से लोहा लेने लगे। दुर्भाग्यवश युद्ध का पासा पलट गया। जर्मनी ने हार मान ली और जापान को भी घुटने टेकने पड़े। आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को बंदी बना लिया गया।
वो यातनाओं का दौर
ढिकौली निवासी सेवानिवृत्त कैप्टन राज सिंह की मानें तो लहरी सिंह ने आजाद हिंद फौज से पहले सिंगापुर जेल में दिलदहलाने वाली यातना झेली। सिंगापुर में रोटी में भी चूना मिलाकर खिलाया जाता था ताकि ये कमजोर होकर मर जाएं। जर्मनी के हार मानने के बाद अंग्रेजों ने आजाद हिंद फौज के जवानों को बंदी बना लिया। लहरी सिंह को दिल्ली के लाल किला में बनाई जेल में बंदी रखकर बेशुमार यातनाएं दी गईं लेकिन लहरी सिंह बिल्कुल भी नहीं टूटे। बल्कि फिरंगी अफसरों को मंशा जता दी कि भारत माता की खातिर एक बार नहीं, सौ बार जान देने से पीछे नहीं हटेंगे। पंडित जवाहर लाल नेहरु ने पैरवी की और मुकदमा लड़कर उनकी लाल किला जेल से रिहाई कराई। देश आजाद होने के बाद लहरी ङ्क्षसह ढिकोली गांव लौट आए।
इन्हें मिली काला पानी की सजा
आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को बंदी बनाने के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने ढिकोली के महावीर सिंह को कालापानी की सजा यानी अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की जेल में रखकर कहर बरपाने में कसर नहीं छोड़ी। असहनीय यातनाओं से उन्होंने जेल में दम तोड़ दिया। हालांकि, अंग्रेजों ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि वे उनके लिए काम करेंगे तो माफी देकर बढिय़ा सुख-सुविधाएं दी जाएंगी, लेकिन उन्होंने बिना विचार किए ही झटके में अंग्रेजों का यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। देश आजाद होने के बाद जेल के गेट पर उनके नाम का पत्थर लगा है।
दोनो भाई सिंगापुर में शहीद
ढिकौली के बेगराज तथा अनूप दोनों सगे भाई आजाद हिंद फौज की तरफ से लड़े। दोनों तरफ से भीषण युद्ध में दोनों भाई सिंगापुर में ही शहीद हो गए।
ये रहे नेताजी के अंगरक्षक
कैप्टन राज बताते हैं कि आजाद हिंद फौज के जवान लहरी सिंह उन्हें बताया करते थे कि अलम सिंह तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अंगरक्षक के रूप में हर वक्त उनके साथ रहते थे। अलम सिंह पठानी सूट पहनते थे ताकि किसी को पता न चले कि ये नेताजी के साथ हैं।
नहीं ली किसी ने सुध
आजाद हिंद फौज के इन हीरों की आजाद भारत में सरकार ने कोई सुध नहीं ली। ढिकौली के इन वीर जवानों में अब कोई जिंदा नहीं बचा है। अधिकांश ने शादी नहीं की थी और कइयों के तो परिजन अब गांव में नहीं रहते।
...और भी हैं स्वतंत्रता सेनानी
ढिकौली के बाशिंदों ने आजाद हिंद फौज के अलावा दूसरे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर अंग्रेजों की नाक में दम करने में कसर नहीं छोड़ी है। गिरवर सिंह, भरत सिंह, कसारे वाल्मीकी, वेद गुजराती, रामभिक माली व खजान सिंह नाई और बलबीर सिंह पंडित समेत अनेक वीर सपूतों ने जंग-ए-आजादी के आंदोलन को आगे बढाने में कसर नहीं छोड़ी थी।
पाकिस्तानियों को मुंह तोड़ा जवाब
ढिकौली निवासी शीशपाल सिंह, हरपाल सिंह और सुंदर सिंह साल 1965 में पाकिस्तान फौज से लड़ते हुए शहीद हो गए। शहीद होने से पहले कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार गए। 1971 की जंग में पाकिस्तानियों को सबक सिखाते हुए ढिकोली के श्योराज सिंह शहीद हो गए। कारगिल युद्ध में भी यहां के कई जवानों की भूमिका अहम रही।
लाहौर में सिखाया सबक
ढिकौली के कैप्टन राज सिंह साल 1948 में पाकिस्तान, साल 1962 में चीन और साल 1971 में पाकिस्तान से युद्ध लड़ चुके हैं। साल 1971 में दुश्मन के दो इंची बम लगने से उनका उल्टा कंधा डैमेज हो गया। बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और लाहौर तक घुसकर पाकिस्तानी फौज को सबक सिखाते हुए सबूत के तौर पर वहां की सेना का लोहे का संदूक उठा लाए जो आज भी उनके घर मौजूद है।
सैनिकों का गांव
प्रधान राजेश द्विवेदी के पति जयकुमार समेत कई ग्रामीण सीना चौड़ा कर बताते हैं कि उनके गांव में 400 से ज्यादा युवक देश की रक्षा को सेना में हैं। करीब 500 पूर्व सैनिक हैं। इतने सैनिक होने की गवाही गांव में बना सैनिक भवन भी दे रहा। वर्ष 1960 में सेना के अफसरों ने ढिकोली में युवाओं की भर्ती की। यह भर्ती गांव के मेजर यशपाल सिंह के प्रयास से हुई थी। शहीद धर्मपाल सिंह 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार में शहीद हो गए थे।
इस घर में मेजर जनरल तक
ढिकौली के लोग यह मिसाल देते नहीं थकते कि उनके गांव में हरबंश सेना में सूबेदार मेजर रहे थे। फिर उनके बेटा रणवीर सिंह व महेंद्र सिंह ब्रिगेडियर तथा सुरेंद्र मेजर जनरल तक पहुंचे।
मिसाल है ढिकौली
ढिकौली की प्रधान राजेश देवी कहतीं है कि हमारे गांव में आजाद हिंद फौज में 11 जवान रहे तथ दर्जनों स्वतंत्रता सेनानी रहे। अब चार सौ से ज्यादा युवक सेना में सेवा दे रहे हैं। गांव जाट बहुल है, लेकिन सभी बिरादरी के परिवार सौहार्द के साथ रहते हैं।