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योग के बाद आयुर्वेद भी बनेगा दुनिया में सॉफ्ट पॉवर का जरिया, जड़ी-बूटियों की खेती को मिलेगा प्रोत्साहन

विश्व में बड़े पैमाने पर अत्याधुनिक आयुर्वेदिक दवाएं उपलब्ध कराने में आयुष मंत्रालय की सबसे बड़ी चिंता देश के भीतर जड़ी-बूटियों की कमी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 07 Jul 2019 10:50 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jul 2019 10:50 PM (IST)
योग के बाद आयुर्वेद भी बनेगा दुनिया में सॉफ्ट पॉवर का जरिया, जड़ी-बूटियों की खेती को मिलेगा प्रोत्साहन
योग के बाद आयुर्वेद भी बनेगा दुनिया में सॉफ्ट पॉवर का जरिया, जड़ी-बूटियों की खेती को मिलेगा प्रोत्साहन

नीलू रंजन, नई दिल्ली। योग के बाद आयुर्वेद भी अब दुनिया में भारत के साफ्ट पावर के रूप में उभरने का नया जरिया साबित हो सकता है। दुनिया भर में प्राकृतिक चिकित्सा की तरफ बढ़ते रूझान को देखते हुए सरकार अब आयुर्वेद को जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के प्रभावी इलाज के रूप में पेश करने की तैयारी में है। इसके लिए देश की अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में नई आयुर्वेदिक दवाइयों के विकास और एलोपैथी दवाओं की तरह उन्हें कड़े वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजारा जाएगा। केंद्रीय आयुष मंत्रालय इसके लिए सीएसआइआर के साथ एक समझौता भी कर चुका है।

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दरअसल पिछले हफ्ते राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नाइक ने मधुमेह के इलाज के लिए सीएसआइआर की दो प्रयोगशालाओं के साझा प्रयास से तैयार बीजीआर-34 दवा के बार में जानकारी दी।

नाइक के अनुसार सीएसआइआर की लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरौमैटिक प्लांट्स और नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने आयुर्वेद में वर्णित लगभग 500 जड़ी-बूटियों के गहन विश्लेषण के बाद पांच जड़ी-बूटियों (दारूहरिद्रा, गिलोय, विजयसार और गुड़मार )की मदद से नई आयुर्वेदिक दवा विकसित की।

बाजार में इस दवा को बीजीआर-34 के नाम से उतारा गया और देखते ही देखते यह देश में डायबटीज के इलाज में प्रमुख दवाओं के ब्रांड का हिस्सा बन गया। इसी तरह डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने सफेद दाग के इलाज के लिए ल्यूकोस्किन नाम की आयुर्वेदिक दवा विकसित की है। सबसे बड़ी बात यह है कि अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में विकसित ये दवाएं ऐलोपैथी दवाओं को कड़ी टक्कर दे रही है।

आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में विकसित की गई आयुर्वेदिक दवाओं के देश में सफलता मिलने के बाद अब उन्हें बड़े पैमाने पर विदेशी बाजार में उतारने की तैयारी है। अभी तक पुराने तरीके से तैयार आयुर्वेदिक दवाओं को अमेरिका जैसे विकसित देश दवा के रूप में मान्यता नहीं देते थे, इस कारण उन्हें खाद्य पदार्थ की श्रेणी में बेचने की अनुमति दी जाती थी।

यही नहीं, परंपरागत आयुर्वेदिक दवाओं में शीशे व अन्य रसायनों की अधिक मात्रा भी विदेशी बाजार में रुकावट का बड़ा कारण बनी हुई थी, लेकिन अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरने के बाद तैयार आयुर्वेदिक दवाओं के लिए यह समस्या नहीं है।

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के लिए प्राकृतिक चिकित्सा की तरफ बढ़ते रूझान को देखते हुए विदेशों में आयुर्वेद को भी योग की तरह बड़ी सफलता मिल सकती है।

विश्व में बड़े पैमाने पर अत्याधुनिक आयुर्वेदिक दवाएं उपलब्ध कराने में आयुष मंत्रालय की सबसे बड़ी चिंता देश के भीतर जड़ी-बूटियों की कमी है।

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जड़ी-बूटियों की कमी को दूर करने के लिए किसानों को इन्हें उगाने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना है। इसके लिए अलग-अलग जड़ी-बूटियों के लिए अनुकूल क्षेत्रों की पहचान की जा रही है और किसानों को सामान्य फसलों के अलावा इन्हें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। जड़ी-बूटियों की खेती किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। 


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