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Ayodhya Verdict: 1949 में मस्जिद में मूर्तियों को रखा जाना वाद दायर करने की वजह बना

उच्चतम न्यायालय ने फैसले में कहा है कि बाबरी मस्जिद में 1949 में मूर्तियों को रखे जाने की घटना इस विवादित स्थल से जुड़े पांच मुकदमों में पहला वाद दायर करने का कारण रहा था।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 10:43 PM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 10:43 PM (IST)
Ayodhya Verdict: 1949 में मस्जिद में मूर्तियों को रखा जाना वाद दायर करने की वजह बना
Ayodhya Verdict: 1949 में मस्जिद में मूर्तियों को रखा जाना वाद दायर करने की वजह बना

नई दिल्ली, प्रेट्र। Ayodhya Verdict: उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद पर अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि बाबरी मस्जिद में 1949 में मूर्तियों को रखे जाने की घटना इस विवादित स्थल से जुड़े पांच मुकदमों में पहला वाद दायर करने का कारण रहा था। मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद एक मजिस्ट्रेट अदालत ने विवादित भूमि कुर्क करने का आदेश दिया था।

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शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस घटना से पहले सांप्रदायिक तनावों को लेकर 12 नवंबर 1949 को विवादित स्थल पर एक पुलिस पिकेट स्थापित करनी पड़ी थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने शनिवार को अपने फैसले में कहा कि इसके बाद जिले के पुलिस अधीक्षक ने फैजाबाद के (तत्कालीन) जिलाधिकारी केके नायर को एक पत्र भेजा। उन्होंने इस बारे में चिंता जाहिर की कि हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा वहां मूर्तियां स्थापित करने के लिए जबरन मस्जिद में प्रवेश करने की संभावना है। इसके बाद वक्फ निरीक्षक ने एक रिपोर्ट देकर कहा कि मुस्लिमों ने जब मस्जिद में नमाज अदा करनी चाही, तब हिंदू समुदाय के लोगों ने उन्हें प्रताड़ित किया।

पीठ ने इस बात का जिक्र किया कि नायर (जो फैजाबाद के उपायुक्त भी थे) ने छह दिसंबर, 1949 को उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को एक पत्र भेज कर कहा था कि मस्जिद की सुरक्षा को लेकर मुसलमानों की आशंका को सत्य मान कर स्वीकार करने की जरूरत नहीं है। हालांकि, 22-23 दिसंबर 1949 की रात करीब 50-60 लोगों के एक समूह ने मस्जिद का ताला तोड़ दिया और केंद्रीय गुंबद के नीचे भगवान राम की मूर्तियां स्थापित कर दीं, जिसके चलते प्राथमिकी दर्ज की गई।

नायर ने 26 दिसंबर, 1949 को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एक पत्र लिख कर इस घटना पर हैरानी जताई, लेकिन मस्जिद से मूर्तियों को हटाने के राज्य सरकार के आदेश का पालन करने से इन्कार कर दिया। उन्होंने अगले ही दिन एक और पत्र लिख कर कहा कि मूर्तियों को हटाने के लिए वह एक भी हिंदू को ढूंढ नहीं पाएंगे। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि पुजारियों की न्यूनतम संख्या को छोड़कर हिंदुओं और मुसलमानों को बाहर कर मस्जिद को कुर्क कर दिया जाना चाहिए।

इसके परिणामस्वरूप स्थिति को नाजुक बताते हुए फैजाबाद सह अयोध्या के अतिरिक्त नगर मजिस्ट्रेट (एसीएम) ने 29 दिसंबर, 1949 को विवादित स्थल को कुर्क करने का एक आदेश जारी किया। एसीएम ने इस स्थल को नगर निकाय बोर्ड के अध्यक्ष प्रिय दत्त राम को सौंप दिया, जो इसके रिसीवर भी नियुक्त किए गए थे। इसके बाद 16 जनवरी, 1950 को हिंदू श्रद्धालु गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद के दीवानी न्यायाधीश के समक्ष एक वाद दायर कर आरोप लगाया कि पूजा-अर्चना के लिए अंदरूनी ढांचे में प्रवेश करने से सरकारी अधिकारी उन्हें रोक रहे हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में अपनी दलीलों में निर्मोही अखाड़ा ने इस घटना (मूर्तियां स्थापित करने) से इन्कार किया और दावा किया कि मस्जिद के केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां पहले से ही थीं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद के अंदर मूर्तियां 22-23 दिसंबर 1949 की रात को रखी गई थीं और निर्मोही अखाड़ा यह साबित कर पाने में नाकाम रहा कि मूर्तियां पहले से मौजूद थीं।


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