Ayodhya Land Dispute Case: सुप्रीम कोर्ट ने अखाड़ा से पूछा, आप रामलला का विरोध कर रहे या समर्थन
Ayodhya Land Dispute Case कोर्ट ने कहा कि वह बेवजह देवता (रामलला विराजमान) के मुकदमे का विरोध क्यों कर रहे हैं। दोनों पक्ष साथ हो सकते हैं।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में राम जन्मभूमि के एक तिहाई हिस्से के मालिक निर्मोही अखाड़ा ने जब सोमवार को रामलला विराजमान की ओर से दाखिल मुकदमे का विरोध जारी रखा तो सुप्रीम कोर्ट ने अखाड़ा की पैरवी कर रहे वकील सुशील जैन से पूछा कि वह रामलाल के मुकदमे के समर्थन में हैं या विरोध में।
दशकों पुराने मामले में 12वें दिन सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि वह बेवजह देवता (रामलला विराजमान) के मुकदमे का विरोध क्यों कर रहे हैं। दोनों पक्ष साथ हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर देवता ही नहीं रहेंगे तो उनकी सेवा, पूजा और प्रबंधन का अधिकार कैसे रहेगा। वह मस्जिद के तो सेवादार हो नहीं सकते।
हाई कोर्ट ने 2010 में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था जिसमें एक हिस्सा रामलला विराजमान, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देने का आदेश था। सभी ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। कुल 14 क्रॉस अपीलें दायर की गई हैं जिन पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।
निर्मोही अखाड़ा की ओर से कहा गया कि राम जन्मभूमि मंदिर 1850 से भी पहले से है और हिंदू पूजा करते चले आ रहे हैं। हिंदुओं ने कभी यहां अपना अधिकार नहीं छोड़ा। निर्मोही अखाड़ा शुरू से यहां पूजा सेवा और प्रबंधन करता रहा है। निर्मोही अखाड़ा का ही जन्मभूमि मंदिर पर कब्जा था। जैन ने कहा कि कोर्ट उन्हें पूजा सेवा प्रबंधन और कब्जा दिलाए।
जब जैन ने रामलला विराजमान की ओर से निकट मित्र बन मुकदमा दाखिल करने वाले देवकी नंदन अग्रवाल पर सवाल उठाया तो कोर्ट ने कहा कि आप देवता के मुकदमे का विरोध कैसे कर सकते हैं। आप रामलला का मुकदमा खारिज करने की मांग कर रहे हैं।
जैन ने कहा कि वह रामलला और जन्मस्थान का विरोध नहीं कर रहे और न ही जमीन पर मालिकाना हक मांग रहे हैं, वह सिर्फ सेवा पूजा का अधिकार और कब्जा मांग रहे हैं। उनका विरोध निकट मित्र देवकी नंदन अग्रवाल को लेकर है। देवकी नंदन अग्रवाल को निकट मित्र की हैसियत से मुकदमा करने का अधिकार नहीं है। सेवा पूजा करने वाला प्रबंधक भगवान की ओर से मुकदमा कर सकता है और उसके मुकदमे में जरूरी नहीं है कि वह भगवान को भी पक्षकार बनाए।
जैन ने कहा कि अगर निकट मित्र का मुकदमा नहीं रहेगा तो जन्मभूमि पर सारा कब्जा उन्हें ही मिलेगा। इन दलीलों पर प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि मंगलवार को नोट दाखिल कर इस मुद्दे पर बहस करें और स्थिति स्पष्ट करें कि वह रामलला के मुकदमे का समर्थन कर रहे हैं या विरोध।
रामलला के मुकदमे के विरोध पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि वह बेवजह खिलाफत क्यों कर रहे हैं। दोनों एक साथ रह सकते हैं। वह अलग से सेवा और पूजा का अधिकार मांग सकते हैं। उन्हें टकराव में जाने की जरूरत ही नहीं है। ये सब तो सुन्नी वक्फ बोर्ड कहेगा। कोर्ट ने कहा कि वह अपने सेवादार होने के साक्ष्य पेश करें। जैन ने कई गवाहों के बयान और दस्तावेज का हवाला दिया। बहस मंगलवार को भी जारी रहेगी।
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