गांधी और नेहरू को पाती हूं खुद के करीब
ढाई दशक बाद यहां पहुंचीं म्यांमार में लोकतंत्र का अलख जगा रहीं विपक्ष की नेता आंग सान सू की ने बुधवार को कहा कि वह महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता सू की ने यह भी कहा कि वह दोनों को अपने सबसे करीब पाती हैं। साथ ही याद दिलाई कि नेहरू और उनमें कई चीजें किस तरह समान हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ढाई दशक बाद यहां पहुंचीं म्यांमार में लोकतंत्र का अलख जगा रहीं विपक्ष की नेता आंग सान सू की ने बुधवार को कहा कि वह महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता सू की ने यह भी कहा कि वह दोनों को अपने सबसे करीब पाती हैं। साथ ही याद दिलाई कि नेहरू और उनमें कई चीजें किस तरह समान हैं।
उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनके आवास पर करीब आधे घंटे बातचीत की। दोनों नेताओं ने म्यांमार में लोकतंत्र बहाली की कोशिशों पर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने सू की व वहां सत्तारूढ़ जुंटा सरकार के बीच संतुलन साधने की भी कोशिश की।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र लाने के लिए सू की और राष्ट्रपति थेन सेन की ओर से किए जा प्रयासों का स्वागत किया। भारत सू-की की मेजबानी ऐसे वक्त कर रहा है जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा इस सप्ताह म्यांमार पहुंच रहे हैं। नवंबर 2010 में ओबामा ने कहा था कि भारत को म्यांमार में लोकतंत्र जैसे मुद्दों पर खुलकर समर्थन में आना चाहिए। इसके बाद तत्कालीन विदेश सचिव निरुपमा राव ने सू-की से उनके घर में मुलाकात की थी। इसी साल मई में प्रधानमंत्री जब म्यांमार के राजकीय दौरे पर गए थे तो सू से भी मिले थे और उन्हें नवंबर में नेहरू स्मृति व्याख्यान देने दिल्ली आने के न्योता दिया था। सू की वहीं व्याख्यान दे रही थीं।
बुधवार को महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्पांजलि से अपनी यात्रा की औपचारिक शुरुआत करने वाली सू-की ने कहा, 'मेरे यहां आने उद्देश्य दोनों मुल्कों के लोगों के बीच सहयोग की संभावनाएं तलाशना है।' सरकारी सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री और सू-की के बीच मुलाकात में दोनों देशों की संसद और न्यायपालिका के बीच संपर्क बढ़ाने पर रजामंदी जताई गई।
अपनी युवा अवस्था का बड़ा वक्त भारत में बिताने वाली सू-की पांच दिनी दौरे पर मंगलवार को यहां आई। यात्रा में वो दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज भी जाएंगी, जहां से 1964 में उन्होंने राजनीति शास्त्र में स्नातक डिग्री प्राप्त की थी। इसके बाद 1987 में वह भारत आई थीं लेकिन बीते 20 साल से नजरबंदी के कारण वह जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार लेने भारत नहीं आ सकीं। वह बेंगलूर में सूचना प्रौद्योगिकी केंद्रों और आंध्रप्रदेश के ग्रामीण इलाके में विकास परियोजनाओं को देखने भी जाएंगी।
नेहरू ने सू की के पिता के लिए किए थे गर्म कपड़ों के इंतजाम
नई दिल्ली। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आंग सान सू की के पिता के लिए गर्म कपड़ों की व्यवस्था की थी। सू की ने बुधवार को उस वाकये को याद करते हुए कहा कि तब वह दो साल की थीं। खाकी कपड़े पहने उनके पिता जनरल आंग सान वर्ष 1947 के जनवरी में बर्मा [म्यांमार का पुराना नाम]की स्वतंत्रता के पहले चरण की वार्ता के लिए लंदन जा रहे थे तो नेहरू ने उनके लिए तत्काल दो सेट गरम कपड़े बनाने का आर्डर दे दिया था। तब वह पहनावे महत्व नहीं समझ पाई थीं, जबकि वह इंग्लैंड के इतिहास का एक सर्वाधिक ठंड वाला मौसम था।
सू की यहां विज्ञान भवन में नेहरू स्मारक व्याख्यान में कहा, 'तब मैं बच्ची थी, मेरे दिमाग में यही आया कि वह दयालु बुजुर्ग व्यक्ति हैं जिन्होंने मेरे पिता को कपड़े दिए।'
दु:ख है भारत से मुश्किल दौर में नहीं मिला साथ
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। म्यांमार की नेता विपक्ष आंग सान सू की बुधवार को तमाम पुरानी स्मृतियों और मीठी यादों के साथ-साथ मुश्किल दौर में नई दिल्ली से मिली नाउम्मीदी पर अपनी कसक का इजहार नहीं रोक सकी। राजधानी के विज्ञान भवन में दिए आधे घंटे के व्याख्यान के बाद आखिर में उन्होंने कह ही दिया कि 'दु:ख है कि कठिन वक्त में म्यांमार के लोगों को भारत का साथ नहीं मिल पाया।' उन्होंने भारत के साथ रिश्तों पर भरोसा जताते हुए कहा कि 'उम्मीद है कि आगे ऐसा नहीं होगा।'
लिखित भाषण के आखिर में अपनी तरफ से जोड़ते हुए कहा कि 'मेरी भारत यात्रा पर दो शब्द हर तरफ सुनने को मिल रहे हैं-अपेक्षा और निराशा। भारत से मेरी अपेक्षा और अपेक्षित समर्थन न मिलने पर निराशा। तो मैं न तो अपेक्षाओं से लदी हूं और न निराशा का कोई बोझ है। हां, इतना जरूर है कि भारत से मुश्किल के दौर में मजबूत मदद न मिलने का दु:ख है। हालांकि मुझे भारत के साथ संबंधों पर हमेशा भरोसा रहा।' इसी प्रवाह में सू की ने कहा कि अभी म्यांमार में लोकतंत्र के लिए काफी आगे जाना है। उम्मीद है भारत इसमें हमारे साथ होगा। क्योंकि देशों के रिश्ते सरकारों के मोहताज नहीं होते। सरकारें आती जाती हैं, लेकिन जनता के बीच रिश्ते स्थायी होते हैं। व्याख्यान में उनके पुराने स्कूल जीसस एंड मैरी और लेडी श्रीराम कॉलेज के छात्र भी मौजूद थे।
सू की के स्वागत में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मौजूदा समय की नामचीन शख्सियत सू की के लिए यह घर वापसी की तरह है। अंतराष्ट्रीय समझ के लिए नेहरू शांति पुरस्कार पाने के बीस साल बाद भारत आई सू की ने व्याख्यान के दौरान नेहरू की आत्मकथा व भारत एक खोज जैसी पुस्तकों से लेकर कल्हण रचित संस्कृत रचना राजतरंगिणी का भी उल्लेख किया। दो साल पहले नजरबंदी से बाहर आई सू की का बचपन नई दिल्ली में ही बीता है। मौजूदा कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड कभी उनका घर हुआ करता था जहां भारत में तत्कालीन राजदूत अपनी मां के साथ वह रहती थीं।
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