अपने लिखे हर शब्द की जिम्मेदारी लेते थे अटल जी, दैनिक जागरण के हिंदी हैं हम के मंच पर बोले उपन्यासकार वीरेन्द्र जैन
एक और दिलचस्प वाकया वीरेन्द्र जैन ने सुनाया। एक दिन वीरेन्द्र जैन उनसे मिलने गए और जल्दी वापस जाने लगे। अटल जी ने पूछा कि कहां जाने की जल्दी है। वीरेन्द्र जैन ने कहा कि हिंदी अकादमी प्रभाष जी को सम्मानित कर रही है उस समारोह में जाना है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। पूर्व प्रधान मंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी बेहतरीन कवि और संवेदनशील लेखक थे। वो अपने लिखे को बहुत गंभीरता से लेते थे और हर शब्द की जिम्मेदारी भी लेते थे। उनके साहित्यिक लेखन पर काम करने वाले उपन्यासकार वीरेन्द्र जैन ने दौनिक जागरण के हिंदी हैं हम के मंच पर आयोजित अटल स्मरण में उनसे जुड़ी कई यादें साझा की। अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध करने का दैनिक जागरण का उपक्रम है ‘हिंदी हैं हम’। एक बार वीरेन्द्र जैन ने अटल जी से कहा था कि अगर आप राजनेता नहीं होते तो अच्छे साहित्यकार होते। अटल जी ने तपाक से उत्तर दिया कि तो मैं भी राज्यसभा में आने की कोशिश करता। इस संबंध में उन्होंने दिनकर से जुड़ा एक किस्सा सुनाया। दिनकर जी का राज्यसभा का कार्यकाल जब खत्म हुआ तो उन्होंने अटल जी से कहा कि यहां की आदत सी हो गई है फिर से बुला लो। तब अटल जी ने कहा कि हमारे पास आपको राज्यसभा में बुलाने का संख्या बल नहीं है। इसपर वीरेन्द्र जैन ने उनसे कहा था कि जरूरी नहीं कि आप दिनकर होते, आप केदार होते, आप नागार्जुन, आप शमशेर होते आदि आदि। अटल जी सुनते रहे फिर बोले कि मैं आपसे झूठ नहीं बोलूंगा मैं होना तो दिनकर ही चाहा था पर हो नहीं सका।
एक और दिलचस्प वाकया वीरेन्द्र जैन ने सुनाया। एक दिन वीरेन्द्र जैन उनसे मिलने गए और जल्दी वापस जाने लगे। अटल जी ने पूछा कि कहां जाने की जल्दी है। वीरेन्द्र जैन ने कहा कि हिंदी अकादमी प्रभाष जी को सम्मानित कर रही है उस समारोह में जाना है। इतना सुनते ही अटल जी ने फौरन कहा कि वो भी साथ चलेंगे। और सचमुच अटल जी वीरेन्द्र जैन के साथ समारोह स्थल पहुंच गए। अटल जी को देखते ही आयोजक उनसे मंच पर बैठने का अनुरोध करने लगे। तब अटल जी ने कहा कि मैं तो श्रोता की हैसियत से आया हूं वो भी दूसरे के निमंत्रण पर, मैं तो सिर्फ सुनूंगा और वो भी श्रोताओं के साथ। वो नीचे ही बैठे और कार्यक्रम समाप्त होने तक रुके रहे।
इसी तरह एक दिन धर्मवीर भारती का काव्य पाठ होनेवाला था तो वीरेन्द्र जैन को साथ लेकर उनको सुनने पहुंच गए। वीरेन्द्र जैन बताते हैं कि एक बार राजेन्द्र यादव ने अपनी पत्रिका हंस में एक बेहद तीखा संपादकीय अटल जी के खिलाफ लिखा जिसका शीर्षक था सुनो अवाजो। अ मतलब अडवाणी, वा मतलब वाजपेयी और जो मतलब जोशी। वीरेन्द्र जैन न उनसे कहा कि आपको इस संपादकीय पर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। अटल जी उत्तर दिया कि वो सब तो दे दूंगा लेकिन राजेन्द्र यादव की तारीफ करनी चाहिए कि अकेले दम पर इतने वर्षों से साहित्यिक पत्रिका निकाले जा रहे हैं। ये उका बड़प्पन था कि अपने विरोधियों की भी प्रशंसा करते थे।
अटल जी का काव्य संग्रह छापने वाले किताबघर प्रकाशन के निदेशक सत्यव्रत ने पहले संग्रह छपने की कहानी बताई। कैसे वो अटल जी के मित्र लेखक चंद्रिका प्रसाद शर्मा को लेकर उनके पास पहुंचे थे। प्रस्ताव दिया था, जिसको सुनने के बाद अटल जी ने अपने मित्र पर सारी जिम्मेदारी डाल दी और संग्रह 1993 में प्रकाशित हुआ। तब से अबतक इस पुस्तक के 33 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
‘हिंदी हैं हम’ के इस कार्यक्रम में अटल जी के जीवनीकार विजय त्रिवेदी ने भी अपनी यादें साझा की। एक बार वो अटल जी का इंटरव्यू करने प्रधानमंत्री आवास पहुंचे थे। सुबह के नाश्ते पर इंटरव्यू आरंभ हुआ। बातचीत चलती रही और नाश्ते के साथ इंटरव्यू खत्म हुआ। सब उठने लगे तो अचानक कैमरामैन ने बताया कि वो तो कैमरे में टेप लगाना ही भूल गया और इंटरव्यू रिकार्ड नहीं हो सका। सबके चेहरे उतर गए। विजय त्रिवेदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय के लोगों को धीरे से बताया तो वो लोग नाराज होने लगे। तबतक अटल जी भांप चुके थे कि कुछ गड़बड़ हो गई है।
उन्होंने विजय त्रिवेदी से पूछा कि क्या हुआ। उन्होंने बताया कि कैमरामैन टेप डालना भूल गया और बातचीत रिकार्ड नहीं हो सकी। अटल जी ने जोरदार ठहाका लगाया और कहा कि चलो एक बार फिर से नाश्ता करते हैं। सबकी जान में जान आई। फिर से बातचीत रिकार्ड हुई। विजय त्रिवेदी का मानना है कि अटल जी ये सहजता ही उनको महान बनाती है। उन्होंने अटल जी की कविताओं पर भी अपनी बात रखी और बताया कि उनकी पुस्तक का शीर्षक अटल जी की कविता की ही एक पंक्ति है, हार नहीं मानूंगा। अटल जी दूसरी जीवनीकार डा रश्मि ने अटल जी के भोजन प्रेम और संघर्ष को रेखांकित किया। ये भी बताया कि कैसे अटल जी अपने पत्रकारिता के दिनों में प्रेस में ही ईंट को तकिया बनाकर सो जाया करते थे।
प्रभात प्रकाशन के निदेशक प्रभात कुमार ने अटल जी के साहित्यप्रेम के कई किस्से सुनाए। उन्होंने बताया कि उनके कार्यालय में दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्वर्गीय नरेन्द्र मोहन जी की पुस्तक का विमोचन हो रहा था। अटल जी मंच पर थे। विमोचन के बाद जब वो बोलने के लिए खड़े हुए तो उनके हाथ में नरेन्द्र मोहन जी की पुस्तक थी। उन्होंने कहा कि काश! इतनी ही आकर्षक उनकी पुस्तक भी छपती। साहित्यिक पत्रिका साहित्य अमृत का प्रकाशन भी अटल जी की प्रेरणा से ही आरंभ हुआ।
एक दिन प्रभात के पिता स्व श्याम सुंदर जी, स्व विद्यानिवास मिश्र जी और अटल जी केल साथ उस वक्त के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा से मिलने गए थे। बात होते होते साहित्यिक पत्रिका पर पहुंच गई। तब अटल जी ने कहा कि साहित्यिक पत्रिका के लिए दो व्यक्ति चाहिए एक संपादक और एक प्रकाशक। इस वक्त संपादक के तौर पर विद्यानिवास मिश्र भी हैं और प्रकाशक श्याम सुंदर जी भी हैं। शंकर दयाल शर्मा ने भी इसपर अपनी सहमति जताई। बात आई गई हो गई। एक दिन अटल जी की श्याम सुंदर जी से भेंट हुई तो उन्होंने कहा कि शंकर दयाल शर्मा पत्रिका के बारे में पूछ रहे थे। वहां से लौटकर श्याम सुंदर जी अपने कार्यलय पहुंचे और अपने तीनों बेटों को साथ बैठाकर पूछा कि पत्रिका निरंतर निकाल सकते तो अटल जी को हामी भरी जाए अन्यथा छोड़ दिया जाए। अपने पुत्रों की सहमति के बाद श्याम सुंदर जी ने साहित्य अमृत निकाला जिसके संस्थापक संपादक विद्यानिवास मिश्र बने। जब पत्रिका का प्रवेशांक छप कर आया तो अटल जी सबको साथ लेकर राष्ट्रपति के पास पहुंचे और उनको भेंट की। साहित्य अमृत अब भी प्रकाशित हो रहा है।