केंद्र और जम्मू-कश्मीर को एक-दूसरे से जोड़ने का एकमात्र रास्ता था अनुच्छेद 370
वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता में पांच जजों की खंडपीठ को अनुच्छेद 370 मामले को लेकर बड़ी बेंच को सुनवाई करना चाहिए।
नई दिल्ली, प्रेट्र। जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा गया है कि केंद्र और इस पूर्ववर्ती राज्य को एक-दूसरे से जोड़ने का एकमात्र रास्ता संविधान का यही प्रावधान था।
अनुच्छेद 370 मामले को लेकर बड़ी बेंच को सुनवाई करना चाहिए
जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता में पांच जजों की खंडपीठ को मंगलवार को पक्षकार प्रेमशंकर झा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि इस मामले को एक बड़ी बेंच को देखना चाहिए। चूंकि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को लेकर पांच जजों की खंडपीठ के दो फैसलों में मतभेद हैं। झा ने इस मामले में सात जजों की बड़ी पीठ से एक निश्चित न्यायिक फैसले के लिए केंद्र के अनुच्छेद 370 हटाने को फैसले को चुनौती दी है।
370 के प्रावधानों को लेकर पांच जजों की खंडपीठ के दो फैसलों में मतभेद हैं
द्विवेदी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने एक फैसला 1959 में प्रेमनाथ कौल बनाम जम्मू और कश्मीर किया था। जबकि दूसरा मामला 1970 का है, जिसमें संपत प्रकाश बनाम जम्मू और कश्मीर पर फैसला दिया गया था। यह दोनों ही मामले अनुच्छेद-370 के हैं।
अनुच्छेद 370 के लागू होने से जम्मू और कश्मीर का संविधान खत्म हो गया
द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 370 (1) और (3) के तहत जम्मू और कश्मीर में भारतीय संविधान के सभी प्रावधानों को लागू किया गया था। इससे जम्मू और कश्मीर का संविधान खत्म हो गया।
नागरिकता संशोधन कानून पर 144 याचिकाओं पर 22 को सुप्रीम कोर्ट करेगी सुनवाई
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता परखने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र को विभिन्न याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था। पीठ संभवत: 144 याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
सीएए समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है- मुस्लिम लीग
इनमें इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आइयूएमएल) और कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिकाएं भी शामिल हैं। मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका में कहा है कि सीएए समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। यह अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता देता है, जबकि धर्म के नाम पर कुछ लोगों को नागरिकता देने से वंचित करता है। इसने सीएए पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की है।
सीएए भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है
याचिका में कहा गया है कि सीएए भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को मंजूरी दी थी, जिससे यह कानून बन गया था।