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गंभीर तनाव में सेना के जवान, दुश्मनों से अधिक खुदकुशी और अपनों के होते हैं शिकार

सेना में हर साल खुदकुशी तथा साथी जवानों के गुस्से के कारण 100 से अधिक मौतें होती हैं। मतलब यह कि औसतन हर तीसरे दिन एक मौत। इसके अलावा कई जवान और अधिकारी उच्च रक्तचाप मनोविकार न्यूरोसिस तथा इनसे संबंधित अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 08 Jan 2021 08:37 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jan 2021 08:48 PM (IST)
यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया द्वारा किया गया अध्ययन

नई दिल्ली, प्रेट्र। एक अध्ययन में सामने आया है कि भारतीय सेना में आधे से ज्यादा जवान गंभीर तनाव में हैं। इसके मुताबिक पिछले दो दशकों में ऑपरेशनल तथा गैर-ऑपरेशनल कारणों से सैनिकों में तनाव का स्तर तेजी से बढ़ा है।

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यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) में वरिष्ठ शोधकर्ता कर्नल एके मोर द्वारा 2019-20 में किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि तनाव स्तर में वृद्धि का मुख्य कारण जवानों का लंबे समय तक उग्रवाद निरोधी (CI) तथा आतंकवाद निरोधी (CT) माहौल में रहना है। यह अध्ययन पिछले महीने यूएसआइ की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

औसतन हर तीसरे दिन एक जवान करता है खुदकुशी

इसके अनुसार, भारतीय सेना में हर साल खुदकुशी तथा अन्य अप्रिय घटनाओं में जितने जवान मारे जाते हैं, उतने तो दुश्मनों की कार्रवाइयों में भी शहीद नहीं होते हैं। सेना में हर साल खुदकुशी तथा साथी जवानों के गुस्से के कारण 100 से अधिक मौतें होती हैं। मतलब यह कि औसतन हर तीसरे दिन एक मौत। इसके अलावा कई जवान और अधिकारी उच्च रक्तचाप, मनोविकार, न्यूरोसिस तथा इनसे संबंधित अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं।

15 वर्षों से किए जा रहे कई तरह के उपाय

सेना तथा रक्षा मंत्रालय सैनिकों में तनाव कम करने के लिए पिछले करीब 15 वर्षो से कई तरह के उपाय कर रहा है, लेकिन अभी तक उनके वांछित परिणाम सामने नहीं आए हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि इसी प्रकार के तनाव के कारण सेना की यूनिटों तथा सब-यूनिटों में अनुशासनहीनता, प्रशिक्षण की असंतोषजनक स्थिति, उपकरणों के रखरखाव में कमी तथा मनोबल में कमजोरी दिखाई पड़ती है और इन सभी का असर युद्धक तैयारियों तथा ऑपरेशनल प्रदर्शन पर पड़ता है।


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