नियमों को ताक पर रखकर सेना प्रमुखों की एक अरब की फिजूलखर्ची
पिछले दो सालों में सेना के प्रमुखों ने 100 करोड़ रुपये से ज्यादा जनता का पैसा गैरजरूरी चीजों में खर्च कर दिया है। यह खुलासा रक्षा मंत्रालय द्वारा कराई गई एक आतरिक जाच में हुआ है। जांच में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह, जब ईस्टर्न आर्मी कमांडर थे तो उन्होंने पैराशूट खरीदने में फिजूलखर्ची
नई दिल्ली। रक्षा उपकरणों की खरीद में पूर्व सेना प्रमुखों पर नियमों को ताक पर रखकर अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा है। इन पूर्व सेना प्रमुखों ने उपकरणों को खरीदने में फिजूलखर्ची की, जिससे देश को पिछले 2 सालों में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की चपत लगी। इस बात का खुलासा रक्षा मंत्रालय की तरफ से कराए गए आंतरिक ऑडिट में हुआ। हैरान करने वाली बात यह है कि इन आरोपों से पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह भी नहीं बच पाए हैं। मामला सामने आने के बाद रक्षा मंत्री ने आदेश दिया है कि सेना के आला अफसरों को किसी खरीद से पहले मंत्रालय की मंजूरी लेनी जरूरी होगी।
रक्षा मंत्रालय की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक आर्मी चीफ जनरल बिक्रम सिंह, पूर्व आर्मी चीफ जनरल वी के सिंह और दूसरे कमाडरों ने उपकरणों की इमरजेंसी खरीद के लिए अपने विशेषाधिकार का गलत इस्तेमाल किया। इससे सरकार को 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की चपत लगी।
ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक जनरलों ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए चीन में बने संचार उपकरण खरीदे। इन उपकरणों को सीधे कंपनी से खरीदने के बजाय दलालों के जरिए खरीदा गया, जबकि मूल कंपनी के अफसर भारत में ही मौजूद थे।
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर ये उपकरण भारतीय फर्मो से लिए जाते तो सस्ते मिल जाते। ये मामला महज फिजूलखर्ची का नहीं बल्कि नियमों की अनदेखी और सुरक्षा से जुड़े मामलों को ताक पर रखने का भी है। यही नहीं, आर्मी हेडक्वार्टर ने जिन बुलेटप्रूफ जैकेटों को खराब क्वालिटी का बताकर रिजेक्ट कर दिया था, उन्हें नॉर्दर्न कमांड ने खरीद लिया।
इतना ही नहीं जाच के दौरान पाया गया कि चीन से खरीदे गए उपकरणों में जासूसी करने वाला सॉफ्टवेयर भी फिट किया गया था। चीन समेत कई देशों की खुफिया एजेंसिया जासूसी के लिए ऐसे हथकंडे अपनाती हैं।
सेना की डिटेक्टिव विंग ने संचार उपकरणों की खरीद के संबंध में कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक ये सारी खरीद उन नियमों का उल्लंघन करके की गई है। ऐसे में फिजूलखर्ची के साथ साथ देश की सुरक्षा से भी समझौता किया गया है।
रक्षा मंत्री ए के एंटनी के आदेश पर सीडीए यानी कंप्ट्रोलर ऑफ डिफेंस अकाउंट्स ने 2009-10 और 2010-11 के दौरान सेना के आला अफसरों के विशेष आर्थिक अधिकारों का ऑडिट किया। सीडीए ने सेना की 7 कमाड में से 6 के 55 लेनदेन की जाच की और अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कुल 103.11 करोड़ रुपये के नुकसान की बात कही है।
इस पूरे मामले में गंभीर बात ये भी है कि सेना के किसी कमाडर ने खरीद का पूरी जानकारी नहीं दी है। रिपोर्ट के मुताबिक खरीद के आदेश जारी होने के बावजूद उपकरणों की सप्लाई में एक से तीन साल तक का वक्त लगा है। इससे साफ जाहिर है ये इमरजेंसी खरीद नहीं थी।
जांच में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह, जब ईस्टर्न आर्मी कमांडर थे तो उन्होंने पैराशूट खरीदने में फिजूलखर्ची की। ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि पैराशूट के लिए की गई इस डील से सेना को 50 लाख रुपए का नुकसान हुआ।
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