सेना प्रमुख रावत वियतनाम के अहम दौरे पर, सामरिक समझौतों पर होगा जोर
सामरिक साझीदारों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना और आर्थिक समरसता बढ़ाने से लेकर स्वतंत्र इंडो-पेसिफिक क्षेत्र बनाने पर भारत का जोर।
नई दिल्ली, जेएनएन। एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के संग सैन्य रिश्तों को मजबूत करने की रणनीति के तहत थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत गुरुवार को चार दिवसीय यात्रा पर वियतनाम जाएंगे। इस यात्रा का उद्देश्य दो सामरिक साझीदारों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना होगा। सेना प्रमुख की इस यात्रा का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के वियतनाम दौरे के ठीक दो दिन बाद ही जनरल रावत का यह दौरा होने जा रहे है।
असल में दक्षिण पूर्वी देशों और पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र पर चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। भारत इस इलाके में आर्थिक समरसता बढ़ाने से लेकर स्वतंत्र इंडो-पेसिफिक क्षेत्र बनाने के लिए के नजर रखे हुए है। दक्षिण पूर्वी देशों के समूह के ज्यादातर देश इस क्षेत्र में भारत को चीन की शक्ति का संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी समझते हैं। लेकिन भारत इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में एक बहुपक्षीय सैनिक गठबंधन बना कर चीन को नाखुश करने के पक्ष में नहीं है, फिर भी वो आसियान देशों के साथ अपने सैन्य संबंधों को मजबूत करने में लगा हुआ है।
रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, जनरल रावत की मुलाकात वहां के रक्षा मंत्री जनरल नगो जुआन लिच सहित वियतनाम के सैन्य प्रतिष्ठान के शीर्ष अधिकारियों के साथ होनी है। वह हनोई और हो चि मिन्ह में कई सैन्य स्थानों और प्रतिष्ठानों का भी दौरा करेंगे।
सितंबर 2016 में प्रधानमंत्री मोदी हनोई गए थे, उन्होंने वहां 50 करोड़ डॉलर की सैन्य सहायता देने की घोषणा भी की थी। पीएम मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान ही दोनों देशों ने रक्षा पर साल 2015-2020 के लिए जॉइंट विजन स्टेटमेंट जारी किया था, जिसके तहत 'रणनीतिक साझेदारी' को 'व्यापक रणनीतिक साझेदारी' तक बढ़ाने का फैसला किया था।इतना ही नहीं भारत ने अपनी ब्रह्ममोस सुपरसॉनिक मिसाइल और सतह से हवा में मार करने वाले आकाश मिसाइल की तकनीक भी वियतनाम को देने का प्रस्ताव दिया था।
भारत ने वियतनाम के अलावा सिंगापुर, म्यांमार, मलयेशिया और इंडोनेशिया जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देशों के साथ भी सैन्य सहयोग को बढ़ावा दिया है। भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि दक्षिणी चीन सागर का विवाद सभी देशों के अधिकारों का सम्मान करते हुए सुलझाना चाहिए।