CAA पर जानें हर उन सवालों के जवाब जिनको लेकर समुदाय विशेष में हैं चिंता की लकीरें
केंद्र सरकार ने लोगों को भ्रमित करने वाले 13 सवालों के जवाब दिए हैं जिनके जरिए अफवाहों को बल देकर लोगों को भड़काया जा रहा है। आप भी पढ़ें यह स्पेशल रिपोर्ट...
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी हैं। विरोध करने वाले सीएए को राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) का पूर्व कदम मान रहे हैं। इस बीच सरकार ने अपनी बात रखी है और उन भ्रमों को दूर करने की कोशिश की है, जिसमें इस कानून को एक धर्म विशेष के प्रति भेदभाव करने वाला बताया जा रहा है। केंद्र सरकार ने लोगों को भ्रमित करने वाले 13 सवालों के जवाब दिए हैं, जिनके जरिए अफवाहों को बल देकर लोगों को भड़काया जा रहा है।
क्या सीएए में ही एनआरसी निहित है?
- ऐसा नहीं है। सीएए अलग कानून है और एनआरसी एक अलग प्रक्रिया है। सीएए संसद से पारित होने के बाद देशभर में लागू हो चुका है, जबकि देश के लिए एनआरसी के नियम व प्रक्रिया तय होने अभी बाकी हैं। असम में जो एनआरसी की प्रक्रिया चल रही है, वह माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश और असम समझौते के तहत की गई है।
क्या भारतीय मुसलमानों को सीएए और एनआरसी को लेकर किसी प्रकार परेशान होने की जरूरत है?
- किसी भी धर्म को मानने वाले भारतीय नागरिक को सीएए या एनआरसी से परेशान होने की जरूरत नहीं है।
क्या एनआरसी सिर्फ मुसलमानों के लिए ही होगा?
- बिल्कुल नहीं। इसका किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह नागरिकों का केवल एक रजिस्टर है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा।
क्या एनआरसी में धार्मिक आधार पर लोगों को बाहर रखा जाएगा?
नहीं, एनआरसी किसी धर्म के बारे में बिल्कुल भी नहीं है। जब एनआरसी लागू किया जाएगा, वह न तो धर्म के आधार पर लागू किया जाएगा और न ही उसे धर्म के आधार पर लागू किया जा सकता है। किसी को भी सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि वह किसी विशेष धर्म को मानने वाला है।
क्या एनआरसी के जरिये मुस्लिमों से भारतीय होने का सबूत मांगा जाएगा?
- सबसे पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी जैसी कोई औपचारिक पहल शुरू नहीं हुई है। सरकार ने न तो कोई आधिकारिक घोषणा की है और न ही इसके लिए नियम कानून बने हैं। भविष्य में अगर ये लागू किया जाता है तो यह नहीं समझना चाहिए कि किसी से उसकी भारतीयता का प्रमाण मांगा जाएगा।एनआरसी को आप एक प्रकार से आधार कार्ड या किसी दूसरे पहचान पत्र जैसी प्रक्रिया से समझ सकते हैं। नागरिकता रजिस्टर में अपना नाम दर्ज कराने के लिए आपको अपना कोई भी पहचान पत्र या अन्य दस्तावेज देना होगा, जैसा कि आप आधार कार्ड या मतदाता सूची के लिए देते हैं।
नागरिकता कैसे दी जाती है? क्या प्रक्रिया सरकार के हाथ में होगी?
- नागरिकता नियम 2009 के तहत किसी भी व्यक्ति की नागरिकता तय की जाएगी। ये नियम नागरिकता कानून, 1955 के आधार पर बना है। यह नियम सार्वजनिक रूप से सबके सामने हैं। किसी भी व्यक्ति के लिए भारत का
नागरिक बनने के पांच तरीके
1. जन्म के आधार पर नागरिकता
2. वंश के आधार पर नागरिकता
3. पंजीकरण के आधार पर नागरिकता
4. देशीयकरण के आधार पर नागरिकता
5. भूमि विस्तार के आधार पर नागरिकता
जब एनआरसी लागू होगा, तो क्या हमें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अपने माता-पिता के जन्म का विवरण उपलब्ध कराना होगा?
- आपको अपने जन्म का विवरण जैसे जन्म की तारीख, माह, वर्ष और स्थान के बारे में जानकारी देना ही पर्याप्त होगा। अगर आपके पास अपने जन्म का विवरण उपलब्ध नहीं है तो आपको अपने मातापिता के बारे में यही विवरण उपलब्ध कराना होगा। लेकिन कोई भी दस्तावेज माता-पिता के द्वारा ही प्रस्तुत करने की अनिवार्यता बिल्कुल नहीं होगी। जन्म की तारीख और जन्मस्थान से संबंधित कोई भी दस्तावेज जमा कर नागरिकता साबित की जा सकती है।
कौन से दस्तावेज करने होंगे पेश...?
- अभी तक ऐसे स्वीकार्य दस्तावेजों को लेकर भी निर्णय होना बाकी है। इसके लिए वोटर कार्ड, पासपोर्ट, आधार, लाइसेंस, बीमा के पेपर, जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र, जमीन या घर के कागजात या फिर सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी इसी प्रकार के अन्य दस्तावेजों को शामिल करने की संभावना है। इन दस्तावेजों की सूची ज्यादा लंबी होने की संभावना है, ताकि किसी भी भारतीय नागरिक को अनावश्यक रूप से परेशानी न उठानी पड़े।
क्या एनआरसी के लिए मुश्किल और पुराने दस्तावेज मांगे जाएंगे, जिन्हें जुटा पाना बहुत मुश्किल होगा?
- पहचान प्रमाणित करने के लिए बहुत ही सामान्य दस्तावेज की जरूरत होगी। राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी की घोषणा होती है तो उसके लिए सरकार ऐसे नियम और निर्देश तय करेगी, जिससे किसी को कोई परेशानी न हो। सरकार की यह मंशा नहीं हो सकती कि वह अपने नागरिकों को परेशान करे या किसी को दिक्कत में डाले।
अगर कोई पढ़ा-लिखा नहीं है और उसके पास संबंधित दस्तावेज नहीं है तो क्या होगा?
- इस मामले में अधिकारी उस व्यक्ति को गवाह लाने की इजाजत देंगे। साथ ही अन्य सबूतों और कम्युनिटी वेरिफिकेशन आदि की भी अनुमति देंगे। एक उचित प्रक्रिया का पालन किया जाएगा। किसी भी भारतीय नागरिक को अनुचित परेशानी में नहीं डाला जाएगा।
भारत में एक बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं, जिनके पास घर नहीं हैं, गरीब हैं और पढ़े-लिखे और उनके पास पहचान का कोई आधार भी नहीं है, ऐसे लोगों का क्या होगा?
- यह सोचना पूरी तरह से सही नहीं है। ऐसे लोग किसी न किसी आधार पर ही वोट डालते हैं और उन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। उसी के आधार पर उनकी पहचान स्थापित हो जाएगी।
क्या एनआरसी किसी ट्रांसजेंडर, नास्तिक, आदिवासी, दलित, महिला और भूमिहीन लोगों को बाहर करता है, जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं।
- नहीं, एनआरसी जब कभी भी लागू किया जाएगा, ऊपर बताए गए किसी भी समूह को प्रभावित नहीं करेगा।
अगर एनआरसी लागू होता है तो क्या मुझे 1971 से पहले की वंशावली को साबित करना होगा?
- ऐसा नहीं है। 1971 के पहले की वंशावली के लिए आपको किसी प्रकार के पहचान पत्र या माता-पिता/पूर्वजों के जन्म प्रमाण पत्र जैसे किसी भी दस्तावेज को प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं है। यह केवल असम एनआरसी के लिए मान्य था, वो भी ‘असम समझौता’ और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के आधार पर। देश के बाकी हिस्सों के लिए नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र का मामला) नियम, 2003 के तहत एनआरसी की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग है।
अगर पहचान साबित करना इतना ही आसान है तो फिर असम में 19 लाख लोग कैसे एनआरसी से बाहर हो गए?
- असम की समस्या को पूरे देश से जोड़ना ठीक नहीं है। वहां घुसपैठ की समस्या लंबे समय से चली आ रही है। इसके विरोध में वहां 6 वर्षों तक आंदोलन चला है। इस घुसपैठ की वजह से राजीव गांधी सरकार को 1985 में एक समझौता करना पड़ा था। इसके तहत घुसपैठियों की पहचान करने के लिए 25 मार्च, 1971 कट ऑफ डेट माना गया, जो एनआरसी का आधार बना।