दूसरे मंत्रालय बांटें रेलवे के सामाजिक दायित्व का बोझ
रेल बजट के विलय के उपरांत पहले आम बजट से पूर्व रेलमंत्री की वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ होने वाली इस मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारतीय रेल अब सामाजिक दायित्वों का बोझ अकेले ढोना नहीं चाहती। बल्कि इसका कुछ भाग दूसरे मंत्रालयों पर भी लादने का उसका इरादा है। मंगलवार को वित्त मंत्री के साथ मुलाकात में रेलमंत्री सुरेश प्रभु रेलवे की इसी मंशा को जाहिर करेंगे। रेल बजट के विलय के उपरांत पहले आम बजट से पूर्व रेलमंत्री की वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ होने वाली इस मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है।
इस मुलाकात के एजेंडे में तीन बातें प्रमुख हैं। पहली बात है रेलवे के सामाजिक दायित्वों का बोझ दूसरे मंत्रालयों में बांटने की। जिसके तहत प्रभु जेटली के समक्ष इस बात का प्रस्ताव रखेंगे कि रेल उपभोक्ताओं को मिलने वाली रियायतों और छूटों की सब्सिडी का बोझ अन्य संबंधित मंत्रालयों पर डाला जाए। उदाहरण के लिए विकलांगों को किराये में मिलने वाली छूट का बोझ सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय पर, खिलाडि़यों को छूट का बोझ खेल मंत्रालय पर, महिलाओं और बच्चों को छूट का बोझ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से तथा शौर्य पदक विजेताओं की सब्सिडी का बोझ गृह अथवा रक्षा मंत्रालय पर डाला जाना चाहिए। विभिन्न प्रकार की रियायतों के कारण रेलवे को यात्रियों पर होने वाले खर्च का केवल 57 फीसद ही वापस मिल पाता है। यात्री यातायात में सालाना 35 हजार करोड़ रुपये का घाटे की यह बड़ी वजह है।
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एजेंडे का दूसरा बिंदु है संरक्षा। जिसके तहत 1.20 लाख करोड़ रुपये के विशेष रेलवे संरक्षा कोष के लिए प्रभु वित्त मंत्री से मदद की गुहार लगाएंगे। वित्त मंत्रालय पहले इसे लेकर ना-नुकुर कर रहा था। लेकिन यूपी में लगातार दो रेल हादसों तथा नोटबंदी के बाद खजाने में बढ़ोतरी के बाद मंत्रालय का रुख ढीला पड़ा है। अब वह संरक्षा कोष के लिए धन देने को सैद्धांतिक रूप से राजी हो गया है। स्वयं रेलमंत्री प्रभु ने इसके संकेत दिए। नव वर्ष पर रेल संवाददाताओं से मुलाकात में प्रभु ने कहा कि, 'संरक्षा को लेकर पैसों की कोई समस्या न पहले थी और न अब। पिछले रेल बजट में इस मद में काफी अधिक धन आवंटित किया गया था। इस बार भी बजट में ज्यादा धन मिलने की उम्मीद है।' प्रभु की बातों से प्रतीत होता है कि बजट में विशेष रेलवे संरक्षा कोष की स्थापना का एलान हो सकता है।
तीसरे आइटम का संबंध सातवें वेतन आयोग से है। जिससे रेलवे पर लगभग 35 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा है। प्रभु चाहते हैं कि वित्त मंत्रालय इसकी यथासंभव भरपाई करे। इसके अलावा रेलवे टैरिफ अथारिटी के गठन जैसे अन्य मुद्दे भी चर्चा में शामिल हो सकते हैं। माना जाता है कि बजट सत्र में रेलवे टैरिफ अथारिटी के गठन का प्रस्ताव आ सकता है। टैरिफ अथारिटी पर रेल किराये-भाड़े के निर्धारण के अलावा पीपीपी परियोजनाओं के स्वतंत्र मूल्यांकन की जिम्मेदारी होगी।