Alzheimer disease treatment : अल्जाइमर की बीमारी से लड़ने में मददगार हो सकता है इस पौधे के तने का अर्क
अल्जाइमर एक खतरनाक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है जिसमें धीरे-धीरे स्मरण शक्ति कमजोर होने लगती है। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि अल्जाइमर से लड़ने में एक पौधे के तने का रस मददगार हो सकता है। पढ़ें यह रिपोर्ट...
नई दिल्ली, पीटीआइ। शोधार्थियों ने एक हालिया अध्ययन में पाया है कि अनानास के तने का अर्क अल्जाइमर से लड़ने में मददगार हो सकता है। अल्जाइमर एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है। इसमें सामान्य तौर पर धीरे-धीरे स्मरण शक्ति कमजोर होने लगती है। ऐसा मस्तिष्क में एमिलाइड-बीटा प्रोटीन के स्तर में वृद्धि के कारण होता है। गंभीर अवस्था में पीडि़त अपनी गतिविधियों पर काबू नहीं रख पाता।
अल्जाइमर के लक्षणों को दूर करने में हो सकता है मददगार
समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान पाया कि मौजूदा इलाज अल्जाइमर पीडि़तों की जीवन की गुणवत्ता के प्रबंधन में प्रभावी नहीं है। न्यूरोटाक्सिकोलाजी जर्नल में प्रकाशित शोध निष्कर्ष में बताया गया है कि चूहों पर प्रयोग के दौरान पाया गया कि ब्रोमेलैन नामक यौगिक अल्जाइमर के लक्षणों में सुधार ला सकता है।
बीमारी से लड़ने में मददगार
एलपीयू के स्कूल आफ फार्मास्युटिकल साइंस में प्रोफेसर व अध्ययन के लेखक नवनीत खुराना के अनुसार, 'हमें ब्रोमेलैन के जरिये इलाज के बाद चूहे के दिमाग में बीटा-सीक्रेटेज एंजाइम, बीटा-एमिलाइड, दिमाग से उत्पन्न न्यूरोट्राफिक फैक्टर, ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर-अल्फा व इंटरल्यूकिन-6 के स्तर में महत्वपूर्ण सुधार मिले।'
न्यूरांस की संरचनाओं में सुधार के संकेत
एलपीयू के स्कूल आफ फार्मास्युटिकल साइंस में प्रोफेसर व अध्ययन के लेखक नवनीत खुराना ने बताया, 'हिस्टोपैथोलाजिकल विश्लेषण में ब्रोमेलैन के जरिये इलाज से चूहों के न्यूरांस की संरचनाओं में भी सुधार के संकेत मिले। इन परिणामों ने ब्रोमेलैन के जरिये अल्जाइमर के इलाज की संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त किया है।'
अवसाद के इलाज से हुआ मस्तिष्क में बदलाव
इस बीच समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक अवसाद के इलाज के प्रभाव को जानने के लिए अब शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि रिपीटिटिव ट्रांसक्रैनियल मैग्नेटिक स्टिम्यूलेशन (आरटीएमएस) इलाज के दौरान मस्तिष्क में क्या बदलाव होते हैं। अमेरिकन जर्नल आफ साइकाइअट्री में यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया (यूबीसी) के शोधकर्ताओं के अध्ययन का निष्कर्ष प्रकाशित हुआ है।