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समुद्र मंथन के बाद निकला था आंवला, है बेहद गुणकारी, इसमें होता है भगवान विष्णु् का वास

अमृत फल देने वाले इस आंवले के एक पेड़ को अगर घर के आंगन या आसपास लगा दिया जाए तो पूरे परिवार का वैद्य बन यह सेहत की जरूरतें पूरी करता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 10:11 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 11:23 AM (IST)
समुद्र मंथन के बाद निकला था आंवला, है बेहद गुणकारी, इसमें होता है भगवान विष्णु् का वास
समुद्र मंथन के बाद निकला था आंवला, है बेहद गुणकारी, इसमें होता है भगवान विष्णु् का वास

नई दिल्ली [जेएनएन]। ईसा से पांच सौ साल पहले महान आयुर्वेदाचार्य चरक द्वारा लिखी चरक संहिता में एक मात्र जिस जड़ी- बूटी का बार-बार उल्लेख है, वह आंवला है। हमारे मनीषियों ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी पर अगर आंवले की पूजा का विधान किया है तो उसके पीछे यही कारण है कि आम नहीं, बहुत खास है आंवला। अमृत फल देने वाले इस आंवले के एक पेड़ को अगर घर के आंगन या आसपास लगा दिया जाए तो पूरे परिवार का वैद्य बन यह सेहत की जरूरतें पूरी करता है। ‘आओ रोपें अच्छे पौधे’ सीरीज के तहत आज आंवले के बारे में जानकारी दी जा रही है।

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वैज्ञानिक नाम: फाइलैंथस एम्बलिका

पेड़ की लंबाई : 20 से 25 फीट

प्राप्ति स्थान : एशिया, यूरोप और अफ्रीका। भारत में आंवला के पेड़ खूब पाए जाते हैं। इसकी खेती भी की जाती है।

महात्म्य

धार्मिक : मान्यता है कि इसमें भगवान विष्णु का वास होता है। माना जाता है कि जब समुद्र मंथन में अमृत निकला तो देवों और असुरों के बीच छीनाझपटी में कुछ बूंदें गिर गईं जिससे आंवले की उत्पत्ति हुई।

वैज्ञानिक : यह फल विटामिन सी का प्रचुर स्नोत है। प्रकृति में पाई जाने वाले किसी भी चीज में इतना विटामिन सी नहीं पाया जाता। वैज्ञानिक शोधों में तमाम रोगों के उपचार करने की खूबियों का पता। विषाणुओं से शरीर के प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत बनाता है।

फल एक गुण अनेक स्वास्थ्य

- आयुर्वेद में आंवला कब्ज का रामबाण, रक्त शोधक, पाचक, रुचिवर्धक तथा अतिसार, प्रमेह, दाह, पीलिया, अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्नाव, बवासीर,

कब्ज, अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, रक्त प्रदर नाशक तथा आयुवर्धक है।

सौंदर्य

- निरंतर प्रयोग से बाल टूटना, रूसी, बाल सफेद होना रूक जाते हैं। नेत्र ज्योति तेज होती है। दांत मजबूत होते हैं।

- रोज एक आंवला खाने से त्वचा की नमी बरकरार रहती है, इससे त्चचा पर कांति आती है और पिंपल्स जैसी समस्याएं भी दूर होती हैं।

परंपरागत प्रयोग

- आंवला आयुर्वेद और यूनानी पैथी की प्रसिद्ध दवाइयों, च्यवनप्राश, ब्रह्म रसायन, धात्री रसायन, अनोशदारू , त्रिफला रसायन, आमलकी रसायन, त्रिफला चूर्ण, धात्ररिष्ट, त्रिफलारिष्ट, त्रिफला घृत आदि के साथ मुरब्बे, शर्बत, केश तेल आदि निर्माण में प्रयुक्त होता है। रक्तवर्धक नवायस लौह, धात्री लौह, योगराज रसायन, त्रिफला मंडूर आंवले से बनाए जाते हैं।

- मानव शरीर में सिर्फ ल्यूकोडर्मा में आंवला उपयोग नहीं होता। इसके अलावा सिर से पैर तक का कोई ऐसा रोग नहीं जहां आंवला दवा या खुराक के रूप में उपयोगी न रहता हो।

- भारतीय गृहिणी की रसोई में भी आंवला, चटनी, सब्जी, आचार, मुरब्बे के रूप में सदा से विराजमान है।

- इसके प्रयोग से शरीर की प्रतिरक्षी शक्ति सुरक्षित रहती है। बार-बार होने वाली बीमारियों से बचाव करने वाला आंवला ‘विटामिन सी’ का सबसे बड़ा भंडार है। इसका विटामिन ‘सी’ पकाने, सुखाने, तलने, पुराना होने पर भी नष्ट नहीं होता। 


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