चीन के खिलाफ हरसंभव मदद भारत को देगा अमेरिका, गोपनीय दस्तावेजों के सार्वजनिक होने से सामने आई बात
अमेरिकी राष्ट्रपति भवन व्हाइटहाउस की तरफ से ये प्रपत्र हाल ही में सार्वजनिक किये गये हैं। इसमें कहा गया है कि चीन के साथ सीमा विवाद में या भारत आने वाली नदियों को मोड़ने की चीन की कोशिशों के संदर्भ में भारत को कूटनीतिक सैन्य व खुफिया सहयोग दिया जाएगा।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। क्या भारत और चीन के बीच पिछले चार वर्षों से बिगड़ते रिश्तों के पीछे भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते रणनीतिक सहयोग जिम्मेदार हैं। इस बात की तरफ से कई कूटनीतिक विशेषज्ञ इशारा कर चुके हैं और चीन भी संकेत दे चुका है। अब अमेरिकी प्रशासन के कुछ गोपनीय दस्तावेज जो सामने आये हैं वो बताते हैं कि अमेरिका काफी पहले यह फैसला कर चुका है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के मुकाबले भारत को मजबूत बनाने के लिए हरसंभव मदद करेगा।
भारत को नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर के तौर आगे बढ़ाएगा अमेरिका
इसमें कहा गया है कि भारत को ना सिर्फ सैन्य मदद दी जाएगी बल्कि भारत को एक 'नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर' के तौर पर आगे बढ़ाया जाएगा। वैसे इन दस्तावेजों को अब अमेरिकी सरकार ने सार्वजनिक किया है और इसमें कही गई बातों पर काफी हद तक अमल भी हो रहा है। लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि ये दस्तावेज 2017-18 के हैं और तभी से भारत और चीन के रिश्तों में तनाव बढ़ने शुरु हुए हैं।
देगा कूटनीतिक, सैन्य व खुफिया सहयोग
अमेरिकी राष्ट्रपति भवन व्हाइटहाउस की तरफ से ये प्रपत्र हाल ही में सार्वजनिक किये गये हैं। इसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि चीन के साथ सीमा विवाद में या भारत आने वाली नदियों को मोड़ने की चीन की कोशिशों के संदर्भ में भारत को कूटनीतिक, सैन्य व खुफिया सहयोग दिया जाएगा। भारत की एक्ट ईस्ट नीति को भी मदद दी जाएगी ताकि वह एक वैश्विक शक्ति के तौर पर स्थापित हो। इस संदर्भ में अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच ऐसे सहयोग को विकसित करने की बात कही गई है जिससे हिंद व प्रशांत क्षेत्र को सभी के लिए समान अवसरों वाला बनाने में मदद मिले।
भारत को एनएसजी का सदस्य बनाने की भी कही बात
रत को सैन्य मदद बढ़ाने, अत्याधुनिक सैन्य तकनीकी उपलब्ध कराने की बात है। इन सभी मुद्दों पर दोनों देशों के बीच काफी हद तक पर कदम उठाये जा चुके हैं। भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों (एनएसजी) के समूह में सदस्य बनाने की भी बात कही गई है। सनद रहे कि अमेरिका के मजबूत समर्थन के बावजूद चीन के विरोध की वजह से भारत अभी तक एनएसजी का सदस्य नहीं बन पाया है।
हिंद-प्रशांत देशों के बीच कनेक्टिविटी के स्तर को बेहतर करने की कोशिश
यह भी उल्लेखनीय है कि इसमें ब्रह्मपुत्र नदी का भी जिक्र है। इस नदी का एक बड़ा हिस्सा चीन से निकलता है जो भारत होते हुए बंगाल की खाड़ी में जा मिलता है। हाल के दिनों में यह खबर आ रही है कि चीन इसकी मूलधारा के साथ कुछ बदलाव करने की कोशिश कर रहा है। इससे भारत के एक बड़े हिस्से पर असर पड़ने की बात कही जा रही है। बहरहाल, सार्वजनिक किए गए प्रपत्र में यह बात भी कही गई है कि अमेरिका जापान व भारत के साथ मिल कर हिंद-प्रशांत देशों के बीच कनेक्टिविटी के स्तर को बेहतर करने की कोशिश करेगा। अमेरिका ने मालदीव, श्रीलंका व बांग्लादेश का खास तौर पर जिक्र किया है। इसके साथ सहयोग का स्तर और बढ़ाया जाएगा, ताकि इन देशों की सीमाओं को और खोला जा सके। वैसे मोटे तौर पर यह प्रपत्र ट्रंप प्रशासन की हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर नीतियों को स्पष्ट करता है। इन प्रपत्रों के सार्वजनिक होने पर कई अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिकारों ने अपनी राय जाहिर की है कि नए बाइडेन प्रशासन की नीति भी इससे बहुत अलग नहीं रहेगी।