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सारे जहां से अच्छा लिखने वाले अल्लामा इकबाल का भारत विभाजन से भी रहा नाता

भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इकबाल ने ही उठाया था। 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Mon, 20 Apr 2020 07:00 PM (IST)Updated: Mon, 20 Apr 2020 07:00 PM (IST)
सारे जहां से अच्छा लिखने वाले अल्लामा इकबाल का भारत विभाजन से भी रहा नाता
सारे जहां से अच्छा लिखने वाले अल्लामा इकबाल का भारत विभाजन से भी रहा नाता

भोपाल [अभय नेमा]। क्या आपको पता है भारत-पाकिस्तान के बीच हुए बंटवारे में मोहम्मद अली जिन्ना के अलावा एक दूसरा नाम अल्लामा मोहम्मद इकबाल का भी है। एक ओर जहां इन्होंने सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता जैसा बढ़िया गीत लिखा था वहीं दूसरी ओर उन्होंने द्विराष्ट्र के सिद्धांत की नींव भी डाली थी। ऐसे ही अल्लामा मोम्मद इकबाल की आज पुण्यतिथि है। स्कूलों में तमाम मौकों पर सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता गाना गाया जाता है, बच्चे इसके लिए रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम तैयार करते हैं।

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जीवन परिचय

1938 में आज ही के दिन लाहौर में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था। उनका जन्म 9 नवंबर 1877 और उनकी मृत्यु 21 अप्रैल 1938 को हुई थी। उनके व्यक्तित्व के दो छोर हैं, एक में वह गीत 'तराना-ए-हिंद (सारे जहां से अच्छा) लिखते नजर आते हैं तो दूसरे में द्विराष्ट्र के सिद्धांत की नींव डालते। बरसी के मौके पर उनके कृतित्व और भोपाल से उनके गहरे नाते का जिक्र प्रासंगिक है।

इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट आ गए। उन्होंने पाकिस्तान के लिए "तराना-ए-मिली" (मुस्लिम समुदाय के लिए गीत) लिखा, जिसके बोल- चीन-ओ-अरब हमारा, हिन्दोस्तां हमारा; मुस्लिम है वतन है, सारा जहाँ हमारा..." कुछ इस तरह से है। यह उनके 'मुस्लिम लीग' और "पाकिस्तान आंदोलन" समर्थन को दर्शाता है।

पाकिस्तान के जनक बने अल्लामा

इकबाल मसऊदी पाकिस्तान का जनक बन गए क्योंकि वह "पंजाब, उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक राज्य बनाने की अपील करने वाले पहले व्यक्ति थे। इंडियन मुस्लिम लीग के 21 वें सत्र में, उनके अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था जो 29 दिसंबर, 1930 को इलाहाबाद में आयोजित की गई थी।

भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इकबाल ने ही उठाया था। 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई, इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया। इन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है। इन्हें अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) भी कहा जाता है।

जिन्ना के साथ

पाकिस्तान बनाने में अग्रणी होने के संबंध में जिन्ना पर इकबाल का प्रभाव बेहद "महत्वपूर्ण", "शक्तिशाली" और यहां तक ​​कि "निर्विवाद" के रूप में वर्णित किया गया है। इकबाल ने जिन्ना को लंदन में अपने आत्म निर्वासन को समाप्त करने और भारत की राजनीति में फिर से प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया था। अकबर एस अहमद के अनुसार, अंतिम वर्षों में उनकी मृत्यु से पहले, इकबाल धीरे-धीरे जिन्ना को अपने विचार अनुसार परिवर्तित करने में सफल रहे। जिन्होंने अंततः इकबाल को उनके "मार्गदर्शक " के रूप में स्वीकार कर लिया।

1905 में तराना-ए-हिंद लिखा

भारत में अल्लामा इकबाल की पहचान और प्रसिद्धि के दो छोर हैं। पहला, वर्ष 1905 में 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा जैसा खूबसूरत और मकबूल तराना-ए-हिंद लिखना और दूसरा वर्ष 1930 में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में दिया गया उनका भाषण। माना जाता है कि यह भाषण आगे चलकर द्विराष्ट्र के सिद्धांत और फिर पाकिस्तान के निर्माण का आधार बना। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने तत्कालीन भारत के पश्चिमोत्तर इलाके के मुस्लिम बहुल प्रांतों को एकीकृत कर एक मुस्लिम प्रांत के गठन की मांग रखी थी।

सारे जहां से अच्छा लिखा और पाकिस्तान के राष्ट्र कवि बने

अल्लामा ने द्विराष्ट्र की बात की थी, जब भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना तो उनको वहां का राष्ट्रीय कवि घोषित किया गया। हालांकि इतिहासकार शमसुल इस्लाम इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वे कहते हैं कि 'इकबाल ने कभी यह नहीं कहा कि भारत में हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते। वे भारत को एक राष्ट्र के रूप में देखते थे। अल्लामा इकबाल का मानना था कि मुस्लिमों को भारत के भीतर ही सेल्फ गवर्नेंस चाहिए। उन्होंने पंजाब और उत्तर पश्चिम भारत के इलाकों की मुस्लिम आबादी के संदर्भ में यह बात कही थी। 1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद में हुए अधिवेशन में अल्लामा इकबाल ने जो कहा था उसे खुद मुस्लिमों ने ही तवज्जो नहीं दी थी।

1910 में तराना-ए-मिल्ली लिखा

दरअसल, इकबाल का व्यक्तित्व इन दोनों छोरों के बीच ही कहीं मिलता है। 1905 में तराना-ए-हिंद लिखने वाले इकबाल ने 1910 में तराना-ए-मिल्ली यानी कौमी तराना लिख डाला, जिसकी शुरुआत कुछ इस तरह हुई-'चीनो-अरब हमारा, हिंदोस्तां हमारा। मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहां हमारा।

सीमाओं से परे हैं इकबाल

इकबाल दरअसल कौन थे? यह एक ऐसी पहेली है जिसे आसानी से हल नहीं किया जा सकता। प्रसिद्ध शायर मंजर भोपाली कहते हैं कि निश्चित रूप से उन्होंने हिंदुस्तान से अलग मुल्क की अवधारणा दी थी, लेकिन इसे तत्कालीन हालातों और राजनीति से जोड़कर देखा जाना चाहिए। पाकिस्तान बनने से सबसे ज्यादा नुकसान भी दोनों मुल्कों में रह रहे मुस्लिमों का हुआ। लेकिन शायर इकबाल को भारत-पाकिस्तान की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। वे पूरब के शायर थे। उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना भी 'सारे जहां से हिंदोस्तां हमारा ही है।

इस तरह है भोपाल से नाता,

यहां है इकबाल मैदान भी

- इतिहास बताता है कि अल्लामा इकबाल 1931 से 1936 के बीच चार अलग-अलग मौकों पर भोपाल आए थे।

- उन्होंने कुल मिलाकर करीब छह महीने का समय भोपाल में बिताया था।

- इकबाल ने अपनी 14 प्रसिद्ध नज्में भोपाल में ही लिखीं, जिसे जर्ब-ए-कलीम नाम की किताब में संग्रहित किया गया।

- अल्लामा इकबाल पहली बार 10 मई 1931 को भोपाल आए थे और 'राहत मंजिल में रुके थे।

- अन्य यात्राओं में वे 'रियाज मंजिल और 'शीशमहल में भी रहे।

- 'शीशमहल के सामने मौजूद मैदान को बाद में सरकार ने इकबाल मैदान का नाम दे दिया।

- यहां उनके नाम से एक बड़ी भूमिगत लाइब्रेरी भी संचालित की जाती है।

- भोपाल रियासत से उन्हें 500 रुपए महीना पेंशन भी दी जाती थी।

- मप्र सरकार का संस्कृति विभाग भी उनके नाम से उर्दू साहित्यकारों को इकबाल सम्मान देती है। 


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